Abortion Law India: यह उन मुकदमों में से एक था जो अदालतों का ध्यान कानूनी खामियों की तरफ खींचते हैं और उन में सुधार के लिए अदालतों को मजबूर कर देते हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस एक फैसले ने खासतौर से कैसे गर्भपात को अविवाहिताओं के लिए आसान बनाया और कैसे कई सहूलियतों के बाद भी कुछ दुश्वारियां कायम हैं इस के लिए इस मामले को थोड़े से में समझना जरूरी है.
इस मामले में याचिकाकर्ता एक 25 वर्षीय युवती काल्पनिक नाम मान लें सीमा था जिसे 22-23 सप्ताह की प्रेगनैंसी थी. हर कभी साथ जीनेमरने की कसमे खाने वाला, सुखदुःख में साथ निभाने का वादा करते रहने वाला सीमा का प्रेमी उसे छोड़ कर गायब हो गया था जिस से वह परेशान थी. पार्टनर के साथ छोड़ देने के बाद पेट में पल रहा बच्चा उसे भार लगने लगा था. यह कोई नई बात नहीं थी क्योंकि ऐसा अक्सर होता है कि प्रेमिका या गर्लफ्रेंड के प्रेग्नैंट होते ही प्रेमी के हाथपांव फूलने लगते हैं. हाथपांव युवती के भी फूलते हैं क्योंकि एक अनचाही स्थिति उसके सामने भी होती है. ऐसे में प्रेमी साथ दे तो वह हिम्मत कर भी लेती है अबार्शन की भी और बच्चे को जन्म देने की भी बशर्ते वक्त रहते शादी हो जाएयह और बात है कि सहमती अक्सर अबार्शन पर ही बनती है.
सीमा के साथ जो हुआ उससे उसका टूट जाना स्वभाविक बात थी ऐसी हालत में युवतियों की सामने ज्यादा विकल्प नहीं होते सिवाय इस के कि वे दुनिया से छिप छिपाकर बच्चे को जन्म दे कर उसे किसी की मदद से यहांवहां कहीं देदे और फिर इसे बुरा सपना मानते छुटकारा पाकर सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश करें.
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