RA Studio Mumbai Case: मुंबई के आर ए स्टूडियो में ऑडिशन के नाम पर 17 बच्चों का अपहरण किया जाना सिर्फ एक आपराधिक घटना ही नहीं है बल्कि इस ने माता-पिता, सिस्टम और फिल्म इंडस्ट्री की ऑडिशन प्रक्रिया पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा सिर्फ पुलिस का है या फिल्मी ग्लैमर के पीछे अभिभावकों की जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है?
हाल ही में मुंबई के पवई इलाके में स्थित ‘आर ए स्टूडियो’ में रोहित आर्या ने 17 नाबालिग बच्चों को एक वेब सीरीज के लिए बाल कलाकारों के चयन के नाम पर औडिशन लेने के बहाने बंधक बना लिया था. मुंबई पुलिस पूरी मुस्तैदी से हरकत में आई और महज 2 घंटे के अंदर सभी 17 बच्चों के साथ ही एक वयस्क पुरुष और एक वयस्क महिला को छुड़ा लिया पर इस कार्यवाही के दौरान पुलिस की गोली रोहित आर्या के सीने में लगी, अस्पताल में रोहित आर्या को मृत घोषित कर दिया गया. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सभी 17 बच्चों के माता-पिता और कुछ स्थानीय निवासी आम दर्शक बने इमारत के बाहर खड़े रहे और अब प्रत्यक्षदर्शी अपनी पहचान छिपा कर कह रहे हैं कि यह सब किसी फिल्म की शूटिंग जैसा ही उन्हें लग रहा था.
सभी 17 बच्चे सकुशल अपने माता-पिता के साथ अपने-अपने घर पहुंच गए. पुलिस अपना काम कर चुकी. एक वकील ने अदालत का रुख कर मांग की है कि पुलिस बल पर रोहित आर्या की हत्या करने का मुकदमा चलाया जाए. अदालत व पुलिस व प्रशासन क्या करेगा, यह तो वक्त की बात है लेकिन इस घटनाक्रम ने कई सवाल जरूर छोड़े हैं, जिन पर कोई विचार नहीं करना चाहता.
माना कि रोहित आर्या ने अक्षम्य अपराध किया था लेकिन एक बैंकर से समाजसेवी बने रोहित आर्या 2013 से सामाजिक कार्य करते आ रहे थे. वे कोई आतंकवादी नहीं थे. रोहित आर्या ने बच्चों को छोड़ने के लिए किसी भी तरह की फिरौती की रकम की मांग नहीं की थी. वे कुछ बात करना चाहते थे. घटना वाले दिन से पहले भी रोहित आर्या ने कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए थे. उन सभी पर नजर दौड़ाई जाए तो सिस्टम, प्रशासन, महाराष्ट्र सरकार व पुलिस पर कई तरह के सवाल उठते हैं जिन का शायद नाटकीय अंदाज में पटाक्षेप कर दिया गया.
हमें लगता है कि इस पूरे घटनाक्रम के लिए सिस्टम, प्रशासन व सरकार को कटघरे में खड़ा करने या रोहित आर्या को दोषी बताने के साथ इस पूरे घटनाक्रम के लिए बच्चों के माता-पिता व फिल्म इंडस्ट्री में मौजूद ऑडिशन प्रक्रिया को भी कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए. रोहित आर्या की कार्य-शैली को देख कर हमें फिल्म ‘अ थर्सडे’, ‘द वेडनेसडे’, ‘पोशमपा’, सेक्टर 36, ‘तथास्तु’ और इरफान खान की फिल्म ‘मदार’ सहित कई फिल्मों की याद आती है.
वेब सीरीज में काम करने का अवसर देने के लिए ऑडिशन का एंगल समाज, बच्चों के माता-पिता तथा फिल्म इंडस्ट्री के ऑडिशन सिस्टम पर भी कई सवाल खड़े करता है.
प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से जो खबर आई है उस के अनुसार पवई की 27 मंजिली इमारत में यह स्टूडियो पहली मंजिल पर स्थित एक फ्लैट में बना हुआ था. कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि इसे एक सप्ताह पहले ही रोहित आर्या ने किराए पर लिया था और इसे ‘आर ए स्टूडियो’ नाम दिया था. इस इमारत में निर्माण कार्य चल रहा था.
बताया जा रहा है कि इस फ्लैट को किराए पर लेने से पहले ही रोहित आर्या ने सोशल मीडिया पर एक वेब सीरीज के लिए बाल कलाकारों की जरूरत व उन के ऑडिशन का विज्ञापन दिया था. यह अलग बात है कि हम ने काफी खोजा पर हमें ऐसा कोई विज्ञापन किसी भी सोशल मीडिया पर नहीं मिला. शायद बच्चों को बंदी बनाते ही यह विज्ञापन हटा दिया गया हो. अब लोग दावा कर रहे हैं कि रोहित आर्या मुंबई के बजाय महाराष्ट्र के दूरदराज इलाकों, मसलन ज्यादातर बच्चे नांदेड़ व उस के आसपास के इलाके के स्कूलों, से ले कर आया था. सभी बच्चे 14 साल की उम्र से कम थे. बच्चों की संख्या को ले कर भी प्रत्यक्षदर्शी और मीडिया रिपोर्ट्स भ्रामक हैं. कहा जा रहा है कि 25 बच्चों को ऑडिशन के लिए लाया गया था पर छुड़ाए तो 17 ही गए.
ऑडिशन प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में
अमूमन फिल्म या टीवी सीरियल या किसी भी एड फिल्म के लिए कलाकारों के चयन के ऑडिशन बंद कमरों में नहीं होते. मुंबई के अंधेरी इलाके में आराम नगर में कम से 25 से 40 ऑडिशन सेंटर हैं, जहां हर दिन ऑडिशन चलते ही रहते हैं. इस के लिए कलाकार खुले मैदान में कतार लगा कर खड़े होते हैं और जिस कमरे में नए कलाकार का ऑडिशन होता है, उसे कोई भी इंसान बड़ी आसानी से देख सकता है. कुछ कास्टिंग कंपनियां ऑडिशन कमरे के अंदर लेती हैं, पर उन के कमरे के दरवाजे बंद नहीं होते. ऐसे में सवाल उठता है कि रोहित आर्या ने 17 बच्चों को एक-साथ ऑडिशन के लिए कमरे में कैद क्यों किया था और इन के माता-पिता इस के लिए तैयार क्यों हुए?
दूसरा अहम सवाल यह है कि ऑडिशन के लिए कैमरा व अन्य सामग्री उस फ्लैट में मौजूद थी या नहीं, इस पर पुलिस खामोश है. 17 बच्चों के साथ एक पुरुष और एक वयस्क महिला को भी छुड़ाया गया तो ये कौन थे, इन के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है. 14 साल से कम उम्र के बच्चों को ऑडिशन या अभिनय करने के लिए भेजना भी कानूनन जुर्म है. ऐसे में पुलिस ने बच्चों के माता-पिता से पूछ-ताछ क्यों नहीं की?
बॉलीवुड में इन दिनों 2 चीजें धड़ल्ले से हो रही हैं. पहला नैपोकिड को बिना किसी ऑडिशन के घर बैठे फिल्मों में काम करने का अवसर मिल रहा है तो दूसरी तरफ ऑडिशन के नाम पर एक बहुत बड़ा रैकेट चल रहा है. कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा एक फिल्म के लिए कास्टिंग करने के लिए निर्माता से कई करोड़ रुपए लेते हैं. इस से फिल्म का बजट बढ़ जाता है. फिल्म के मुख्य कलाकारों का चयन निर्माता या निर्देशक खुद करते हैं. जी हां, सलमान खान या अक्षय कुमार या शाहरुख खान या अजय देवगन का चयन कोई कास्टिंग डायरेक्टर नहीं करता. फिल्म में मुख्य भूमिकाओं से इतर भूमिकाओं के लिए कलाकारों का चयन कास्टिंग डायरेक्टर करते हैं, जिन के ऑफिस के सामने ऑडिशन देने वालों की कतार लगी रहती है.
पहले राज कपूर, राज खोसला, ऋषिकेश मुखर्जी सहित सभी निर्देशक कलाकर को देख कर ही समझ जाते थे कि उस के अंदर प्रतिभा है या नहीं.
बालश्रम कानून व अन्य निर्देश
भारत में बालश्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम 2016 के तहत बाल कलाकारों को संरक्षण प्राप्त है. नाबालिगों से जुड़े प्रोडक्शन हाउस को सख्त नियमों का पालन करना होता है. इन में काम के घंटे सीमित करना, यह सुनिश्चित करना कि शैक्षिक प्रतिबद्धताओं से समझता न हो, सुरक्षित परिवहन और स्वच्छ वातावरण प्रदान करना आदि शामिल होते हैं. वहीं, माता-पिता का कर्तव्य होता है कि वे प्रोडक्शन हाउस से इन नियमों के अनुपालन के बारे में सवाल करें. क्या आर ए स्टूडियो में इन का पालन हो रहा था? अगर नहीं, तो सवाल उठता है कि पालकों ने अपने बच्चों को ऐसी जगह क्यों भेजा?
कानूनन नाबालिग बच्चे को किसी भी ऑडिशन, टीवी के रियलिटी शो का हिस्सा बनने या अभिनय करने के लिए किसी भी एग्रीमेंट पर साइन करने का हक नहीं है, यह सारा काम बच्चों के लिए उन के माता-पिता करते हैं.
21वीं सदी में पूरा समाज बदला हुआ है. हर जगह मटेरियलिस्टिक दुनिया की ही मांग है. हर इंसान कम समय में ज्यादा से ज्यादा धन कमाने के साथ ही समाज में शोहरत व नाम चाहता है. इसी वजह से हम अपने 6 माह के बच्चे से ले कर किशोरवय बच्चों के साथ कास्टिंग एजेंसियों के दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए देखते हैं.
बच्चे बन रहे सीढ़ी
आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या माता-पिता अपने बच्चों के प्रति निष्ठुर होते हैं? जी नहीं. हर मां-बाप अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं. मगर बदले हुए समाज में प्राथमिकताएं बदल गई हैं. आज हर माता-पिता की पहली प्राथमिकता यही होती है कि पड़ोसी या परिवार से जुड़ा कोई शख्स हो या कोई रिश्तेदार, उन सभी के सामने उन का अपना बच्चा हर मामले में बीस साबित होना चाहिए. दूसरी बात, सभी चाहते हैं कि उन के पास जो मान-सम्मान या शोहरत है वह उन के बच्चे के काम से रातों-रात आसमान पर पहुंच जाए.
कहने का मतलब यह कदापि नहीं है कि हर माता-पिता महज पैसे के लालच में अपने बच्चों को ऑडिशन के लिए या अपने अधूरे सपनों को बच्चों के माध्यम से पूरा करने के लिए उन्हें भेजते हैं. यह एक जटिल मुद्दा है जिस के कई कारण हो सकते हैं. कुछ माता-पिता वास्तव में अपने बच्चे की प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए ऑडिशन में भेजते हैं.
हम एक बाल कलाकार से पांच-छह सालों से परिचित हैं. इस बाल कलाकार के पिता देश के एक राज्य के हाईकोर्ट में नौकरी कर रहे थे. उस वक्त उन की सैलरी करीबन एक लाख रुपए थी पर अपने बेटे के टैलेंट को देख कर उस के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए उसे ले कर मुंबई पहुंचे. मेन मुंबई से काफी दूर उपनगर में किराए के मकान में रहना शुरू किया. बेटे को ले कर सुबह से देर शाम तक ऑडिशन दिलाने के लिए भटकते रहते पर उन्होंने उस की पढ़ाई पर भी खास ध्यान दिया.
यह बाल कलाकार पढ़ाई में भी अव्वल है. यह बाल कलाकार कई बड़े बजट की फिल्मों के साथ ही दो-तीन फिल्मों में हीरो बन कर आ चुका है. अच्छा नाम कमा रहा है पर उस के पिता ने उस के सपनों को पूरा करने, उस के अंदर की प्रतिभा को निखारने के लिए अपना व्यवस्थित करियर दांव पर लगा दिया. तो वहीं हम देख रहे हैं कि कई माता-पिता खुद अभिनेता या गायक नहीं बन पाए. वे अपने ही टूटे सपनों को अपने बच्चे के माध्यम से पूरा करने की उम्मीद लगाए हुए उसे उकसाते रहते हैं. तो कुछ लोग अपनी संतान के माध्यम से सिर्फ धन कमाने पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं, ऐसे ही माता-पिता की कमजोर नस को रोहित आर्या जैसे लोग दबा कर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं पर इस तरह के कार्य में लिप्त माता-पिता का जमीर भी इन से इस सच को कबूल नहीं करवा पाता.
जल्दी शोहरत पाने का जरिया
कुछ माता-पिता अपने बच्चों के लिए ऐसे करियर की तलाश करते हैं जो स्थिर और सुरक्षित हो, जैसे कि उच्च वेतन वाले क्षेत्र, ताकि उन के बच्चों के पास एक सुदृढ़ और सफल भविष्य हो. लेकिन ग्लैमर व शानो-शौकत के दीवाने तो सभी हैं.
जी हां, सिनेमा की चमक-दमक और शानो-शौकत के साथ ही अटूट धन कमाने के लालच में कई माता-पिता यह उम्मीद करते हैं कि उन का बच्चा जल्दी से टीवी या फिल्म में अभिनय कर अच्छा पैसा कमा कर परिवार को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के साथ समाज में एक रुतबा दिलाए.
इस तरह के माता-पिता धन पाने की लालसा में इस कदर अंधे होते हैं कि वे सही या गलत का फैसला नहीं करते और रोहित आर्या जैसे लोगों के जाल में बड़ी आसानी से फंस कर अपने बच्चे की सुरक्षा को भी दांव पर लगा देते हैं. इस तरह के माता-पिता यह भूल जाते हैं कि अगर ऑडिशन या एक्टिंग के लिए बहुत कम उम्र में ही बच्चे पर दबाव डाला जाए तो यह उस के बचपन के आनंद को छीन सकता है और उसे एक मशीन की तरह महसूस करा सकता है.
हर माता-पिता को यह याद रखना चाहिए कि अगर वे अपने बच्चे पर उस क्षेत्र के लिए दबाव बना रहे हैं जिस में बच्चे की रुचि नहीं है तो फिर बच्चे पर जब माता-पिता की उम्मीदों का बोझ पड़ता है तो उसे मानसिक दबाव और निराशा का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे बच्चे के मन में असुरक्षा और हीन भावना का आना स्वाभाविक है.
जिम्मेदारियां समझनी जरूरी
ऐसा नहीं है कि हर माता-पिता स्वार्थी होते हैं. बदले वक्त व बदले हुए समाज में कई माता-पिता अलग सोच या उद्देश्य के चलते भी अपने बच्चों को औडिशन या एक्टिंग के लिए भेजते हैं. ऐसे में यदि उन का अपने बच्चे के साथ स्वस्थ संवाद न हो और आपसी समझ की कमी हो तो कई बार तनावपूर्ण हालात बनते देर नहीं लगते. ऐसे ही हालात रोहित आर्या जैसे लोगों को आपराधिक कृत्य में सहयोगी बन जाते हैं.
पिछले दिनों एक बाल कलाकार के पिता ने कहा कि सपनों को पूरा करने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है. जबकि उन की पत्नी यानी कि बाल कलाकार की मां का कहना था कि जब बच्चा खुद यह न समझे कि अपने सपनों को पाने के लिए उसे खुद प्रयास करना होगा, तब तक उस पर कुछ भी थोपना गलत है.
देश के हर नागरिक (माता-पिता, अभिभावक आदि) का कर्तव्य है कि वह बच्चों को हर तरह के दुर्व्यवहार से बचाते हुए सुनिश्चित करें कि बच्चे बालश्रम में शामिल न हों.
अफसोस की बात यह है कि सामाजिक रूप से खुद को बड़ा दिखाने व अन्य स्वार्थवश हर इंसान अपने बच्चे के प्रति अपने सही दायित्व व कर्तव्य का निर्वाह जाने-अनजाने नहीं कर रहा है. इसी का फायदा रोहित आर्या जैसे लोग अपने मकसद के लिए करने में सफल हो जाते हैं पर इस तरह के घटनाक्रमों का बालमन पर जो मनोवैज्ञानिक असर होता है, वह कब सामने आएगा, कोई नहीं बता सकता. RA Studio Mumbai Case.





