राजस्थान के आतंकवाद निरोधक दस्ते ‘एटीएस’ के एडीजी उमेश मिश्रा जयपुर स्थित अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन्हें सूचना मिली कि राज्य में बड़े पैमाने पर अवैध हथियार खरीदनेबेचने और फर्जी आर्म्स लाइसेंस बनाने का कारोबार चल रहा है. यह गिरोह 10 साल पुराने लाइसेंस को नया करा कर पुलिस से भी सत्यापित करा लेता है. लेकिन संबंधित थाने में हथियारों को दर्ज नहीं कराया जाता.

ये लाइसेंस जम्मूकश्मीर और नागालैंड से बनवाए जाते हैं. सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं, जो लाइसेंस लेने के लिए फर्जी तरीके से सेना और बीएसएफ के जवान बन गए हैं.

यह बात मई, 2017 महीने की है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी. उमेश मिश्रा ने एटीएस के मातहत अधिकारियों को बुला कर विचारविमर्श किया और एटीएस के आईजी बीजू जौर्ज जोसफ व एसपी विकास कुमार के निर्देशन और एडिशनल एसपी बरजंग सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में इंसपेक्टर श्याम सिंह रत्नू, मनीष शर्मा, राजेश दुरेजा, कामरान खान और प्रदीप सिंह को शामिल किया गया.

एटीएस की उदयपुर इकाई के इंसपेक्टर श्याम सिंह रत्नू लाइसेंस बनाने वाले गिरोह के बारे में सूचनाएं जुटाने लगे. उमेश मिश्रा ने इस औपरेशन का नाम रखा था- ‘जुबैदा.’ गोपनीय तरीके से ‘औपरेशन जुबैदा’ की शुरुआत कर दी गई. पुलिस टीमें जम्मू और पंजाब के अबोहर में भेजी गईं.

पुलिस जांच में जुटी थी, तभी उदयपुर के एक आदमी ने एटीएस मुख्यालय को सूचना दी कि अजमेर के जुबेर ने लाइसेंस बनाने और हथियार मुहैया कराने के लिए उस से 12 लाख रुपए लिए हैं. जबकि हथियार और लाइसेंस संदिग्ध नजर आ रहे हैं.

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