जो मिल जाए उस से संतुष्ट हो लो और जो न मिले उस के प्रति असंतुष्टि मत जताओ यानी स्थितप्रज्ञ हो जाओ. भगवान की तरह सरकार से सवाल मत करो और न ही असहमति प्रकट करो, इसी में सार है. क्या ऐसा हो सकता है कि कोई सुख में खुश और दुख में व्यथित न हो?   प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान। आत्मन्येंयेंवात्मना तुष्ट स्थित्प्रग्यस्त्दोच्य्त ।।(श्रीमद्भागवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 55) श्रीभगवान बोले, हे अर्जुन, जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित संपूर्ण कामनाओं को भलीभांति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में स्थितप्रज्ञ होता है.

जिंदगी से निराशहताश और चारों तरफ से दुखी लोगों के लिए यह श्लोक बशर्ते वे अर्थ सम झ पाएं तो, रामबाण औषधि है. और मतलब बहुत सीधा है कि बस, इच्छाएं त्याग दो और आत्मा में लीन हो जाओ. श्रीमदभगवतगीता वाकई चमत्कारिक और अद्भुत ग्रंथ है जिसे आम लोग पढ़ते और रटते तो बहुत हैं लेकिन न तो सम झ पाते और न उस पर अमल कर पाते हैं. इस के एक ही नहीं, बल्कि एकएक श्लोक में ज्ञान भरा पड़ा है. उक्त श्लोक को कोई अगर सम झने की कोशिश करता है तो वह बिना शराब पिए या भांग अफीम या धतूरा चाटे बगैर आधाएक घंटे में स्थितप्रज्ञ हो जाता है और जब कुछ न सम झ आने पर इस नश्वर संसार में वापस आता है तो फिर घबरा कर बारबार स्थितप्रज्ञ होने की कोशिश करता है. झं झट बहुत साधारण है और इस श्लोक के सेवन के साथ ही शुरू हो जाती है कि भगवान तो खुद कह रहे हैं कि कामनाएं त्याग दो और पढ़ने वाला स्थितप्रज्ञ होने की कामना पाल बैठता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...