लेखक- मधु शर्मा कटिहा

कटिहा प्रेम विवाह के खिलाफ अड़चनों की शुरुआत घरपरिवार व मातापिता से ही होती है. ज्यादातर मामलों में लड़की को जबरदस्त विरोध झेलना पड़ता है. जातिबिरादरी, धर्म और अमीरीगरीबी की ऊंचनीच को ले कर प्रेमी युगल को मुश्किलों के दौर से गुजरना पड़ता है. ऐसे में इन मसलों में आ रही कठिनाइयां व उन के उपाय सम झें इस लेख में. शिवांगी ने जब अपने सहकर्मी साहिल को मातापिता के समक्ष प्रेमी के रूप में प्रस्तुत किया तो उन के होश उड़ गए. 2 वर्ष पहले शिवांगी की बड़ी बहन के लिए वर की खोज करते हुए जाति, उपजाति की लकीर पीटने वाले शिवांगी के मातापिता यह कैसे स्वीकार करते कि उन का छोटा दामाद किसी अन्य धर्म का हो.

बात बढ़ने पर न तो शिवांगी उन की कोई बात सुनने को तैयार हुई और न ही वे शिवांगी की. परिणाम यह हुआ कि शिवांगी ने कोर्ट मैरिज कर ली और परिवार से उस का संबंध टूट गया. एक अन्य घटना में सुरभि ने जीवनसाथी के रूप में चुने गए रितेश के विषय में जब मातापिता को बताया तो उन की ओर से हरी झंडी नहीं मिली, जबकि दोनों एक ही जाति से थे. यहां समस्या लड़के का आर्थिक स्तर लड़की से निम्न था. अपना आपा न खो कर सुरभि ने एक बार उन्हें रितेश से मिलने को तैयार कर लिया.

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मुलाकात हुई तो बातचीत के दौरान मातापिता ने यह जान लिया कि रितेश किसी भी दृष्टिकोण से अयोग्य न हो कर सुरभि के लिए एक उचित वर है. दोनों परिवारों की रजामंदी से विवाह सोल्लास संपन्न हो गया. विवाह की बुनियाद प्रेम है, लेकिन हमारा समाज प्रेम को ही हेयदृष्टि से देखता है और प्रेम विवाह को अपराध के समान मान लिया जाता है. एक सर्वे के अनुसार, हमारे देश में 80 प्रतिशत मातापिता चाहते हैं कि उन की संतान, खासकर बेटियां, वहीं विवाह करें जहां वे चाहते हों. आज भी इस हाईटैक समय में 95 प्रतिशत शादियां अरेंज्ड होती हैं. जहां तक बेटियों की अपनी इच्छा से विवाह की बात है, 98 प्रतिशत मातापिता ऐसे हैं जो पहली बार में ही बेटी के प्रेमी को भावी पति के रूप में अस्वीकार कर देते हैं. प्रेम विवाह युवा वर्ग, विशेषकर लड़कियों, के लिए एक चुनौती है.

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