Bodily Autonomy : शादी के बाद पति को अपनी पत्नी के साथ कुछ भी करने का अधिकार मिल जाता है. भारतीय समाज में शादी का मतलब यही है. सवाल यह है कि क्या शादीशुदा होने के बाद पत्नी शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर सकती है? क्या पति को यह अधिकार है कि वह अपनी पत्नी की मरजी के बिना उस से सैक्स संबंध बना सके? क्या इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा? क्या कहता है कानून, आइए जानते हैं.
मर्दों की बनाई सामाजिक व्यवस्था में औरतें सिर्फ ऑब्जेक्ट ही हुआ करती थीं. दहेज का भार लड़की के वजन से कम होने पर उसे छोड़ दिया जाता या जला दिया जाता था. पुराने जमाने में औरतें भोग की वस्तु से ज्यादा कुछ न थीं. भारतीय समाज में कन्या को दान में देने की मान्यताएं आज भी मौजूद हैं. आजादी के बाद बदलते दौर के हिसाब से कानून बदले और नारी की स्थिति में बदलाव आया. कॉन्स्टिट्यूशन ने औरतों को भी इंसान माना और बराबरी से जीने का अधिकार दिया लेकिन समाज आज भी औरतों को इंसान मानने को तैयार नहीं. कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जिन में औरतों को सिर्फ ऑब्जेक्ट ही समझा जाता है.
झांसी में एक औरत को उस के पति ने शारीरिक संबंध बनाने से मना करने पर तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया. इस जोड़े ने 3 साल पहले मंदिर में सात फेरे ले कर एक दूजे का हाथ थामा था. 3 साल में ही दोनों के बीच का यह प्रेम संबंध एक डिजास्टर बन गया. पत्नी ने सैक्स के लिए मना किया तो पति ने उसे तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया. फिलहाल गंभीर हालत में महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहां उसका इलाज जारी है.
यह घटना मर्दवादी मानसिकता का एक उदाहरण है. शादीशुदा जोड़ों के बीच सैक्स संबंध जरूरी है लेकिन शादी का मतलब सिर्फ सैक्स की पूर्ति नहीं होता. सैक्स संबंध अगर दोनों पार्टनर की रजामंदी से बने तो यह दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज होती है लेकिन अगर सैक्स के लिए कोई एक पार्टनर तैयार न हो तो यह बलात्कार जैसा ही होता है.
कई बार पत्नी की मरजी न होने पर भी वह पति की भावनाओं का खयाल कर सैक्स के लिए अनुमति दे देती है लेकिन ऐसा बार बार होने पर पत्नी का सैक्स के प्रति रुझान कम होने लगता है. औरतों की इस समस्या को मर्द नहीं समझते और वे जबरदस्ती पर उतर आते हैं. पत्नी से संभोग करना पति अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है, इसलिए भारत में मैरिटल रेप आम बात है.
कई मामलों में मनमुटाव या किसी अन्य कारण से भी पत्नियां शारीरिक संबंध से दूरी बना लेती हैं जिस से पति तनाव में जीने लगते हैं. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अगर किसी शादीशुदा जोड़े के बीच बिना उचित कारण के लंबे वक्त तक शारीरिक संबंध नहीं है और इसे ले कर पति तनाव में जी रहा है तो इसे मानसिक क्रूरता (मैंटल क्रूएल्टी) की श्रेणी में माना जा सकता है जो तलाक के लिए एक आधार बन सकता है.
पत्नी से सैक्स की पूर्ति नहीं होने के कारण पति मानसिक तनाव में चले जाते हैं और कानून इसे मानसिक क्रूरता मान भी लेता है लेकिन कानून की नजर में बालिग पत्नी के साथ उस की मरजी के खिलाफ सैक्स करना कोई अपराध नहीं है. क्या यह कानून का विरोधाभासी चरित्र नहीं है?
विद्या विश्वनाथन बनाम कार्तिक बालकृष्णन मामला
विद्या विश्वनाथन और कार्तिक बालकृष्णन की शादी 6 अप्रैल, 2005 को चेन्नई में हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी. शादी के बाद दोनों लंदन चले गए. विद्या ने लंबे समय तक बिना कोई कारण बताए कार्तिक से शारीरिक संबंध नहीं बनाए. इस से कार्तिक मानसिक तनाव में जीने लगा. आखिरकार कार्तिक ने चेन्नई की फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर कर दी और पत्नी ने काउंटरक्लेम दायर कर शादी को बनाए रखने की मांग की. इस के अलावा विद्या ने कार्तिक के परिवार पर भी आरोप लगाए लेकिन अदालत में वह अपने आरोप सिद्ध नहीं कर पाई.
फर्स्ट एडिशनल फैमिली कोर्ट, चेन्नई ने 11 अगस्त, 2011 को पत्नी के काउंटरक्लेम को मान लिया. ट्रायल कोर्ट ने विद्या द्वारा कई वर्षों तक शारीरिक संबंध से इनकार करने को मानसिकता क्रूरता नहीं माना और पति की तलाक याचिका खारिज कर दी.
कार्तिक ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील दायर की. हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का फैसला पलट दिया. हाईकोर्ट ने पत्नी का लंबे समय तक शारीरिक संबंध न बनाने को मानसिक क्रूरता मानते हुए कार्तिक के पक्ष में फैसला सुना दिया.
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ विद्या सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. 22 सितंबर, 2014 को जस्टिस के एस राधाकृष्णन और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बैंच ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा, ‘बिना पर्याप्त कारण के लंबे समय तक साथी को शारीरिक संबंध से वंचित रखना मानसिक क्रूरता है.’ यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विद्या को 3 माह के भीतर परमानेंट एलिमनी के रूप में 40 लाख रुपए देने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से पहले क्रूरता को शारीरिक हिंसा से जोड़ा जाता था लेकिन इस केस के बाद शारीरिक संबंध से वंचित रखना भी तलाक का जायज आधार बन गया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्रूरता का आकलन स्थापित नियमों के अनुसार नहीं बल्कि सिचुएशनल होता है.
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पुरुषों के पक्ष में ही है. सवाल यह है कि पत्नी यदि 18 साल से ऊपर हो और किसी भी कारण से वह पति से शारीरिक संबंध बनाना न चाहती हो तो इसे मानसिक क्रूरता की श्रेणी में क्यों माना जाए? अगर यह मानसिक क्रूरता ही है तो बिना पत्नी की सहमति से सैक्स करना बलात्कार की श्रेणी में क्यों नहीं है?
शादी का मतलब बलात्कार का लाइसेंस?
अपनी पत्नी से जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाना कानूनी रूप से अपराध है लेकिन केवल तभी जब पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम हो. आईपीसी की धारा 375 कहती है कि यदि कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है तो वह बलात्कार है लेकिन इस में 2 अपवाद हैं : एक, पुरुष अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है तो वह बलात्कार नहीं माना जाएगा.
वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की मांग लंबे समय से चल रही है. दिल्ली हाईकोर्ट ने 2022 में इस पर फैसला सुरक्षित रखा था लेकिन केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि इस से विवाह संस्था कमजोर और अस्थिर हो जाएगी. 2023 के आपराधिक कानून सुधार यानी बीएनएस की धारा 63 में भी यह अपवाद बरकरार है.
मैरिटल रेप के खिलाफ 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई जिस पर 2 जजों की बेंच को फैसला देना था लेकिन इस मामले में दोनों जजों के विचार बंट गए. एक जज ने बालिग पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध को जायज माना दूसरे ने इसे बलात्कार माना.
2023 के एक मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था, ‘पति का पत्नी पर यौन अधिकार नहीं है, सहमति जरूरी है लेकिन अगर सहमति के बिना भी संबंध बने तो यह संवैधानिक तौर पर अपराध नहीं है.’
इस का मतलब है कि विवाह के बाद पत्नी की उम्र 18 वर्ष या अधिक होने पर उस की मरजी के कोई मायने ही नहीं. उस के साथ जबरदस्ती की जा सकती है. 18 साल से ऊपर की पत्नी के साथ बलात्कार भी करो तो कोई अपराध नहीं. हैरानी की बात यह है कि यह प्रावधान 1860 से चला आ रहा है.
बालिग पत्नी के साथ उस की मरजी के खिलाफ सैक्स संबंध बनाना अपराध है या नहीं, अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हैं. यदि मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के पक्ष में फैसला दिया तो बालिग पत्नी के साथ भी जबरदस्ती संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा.
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 3 के तहत वैवाहिक बलात्कार को घरेलू हिंसा के रूप में मान्यता दी गई है. पत्नी इस आधार पर अदालत में सुरक्षा या मुआवजा मांग सकती है लेकिन इस कानून में भी पत्नी की सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाए जाने को बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा गया.
दो लोगों के बीच शादी और सहवास के लिए आपसी सहमति जरूरी है. यदि पत्नी की मरजी के खिलाफ पति उस के साथ सैक्स करे तो इसे बलात्कार ही माना जाना चाहिए लेकिन भारतीय समाज में आज भी औरतों की मरजी के कोई मायने नहीं. मर्दवादी समाज आज भी औरतों को अपनी प्रॉपर्टी ही समझता है. कॉन्स्टिट्यूशन के प्रिएंबल में ही व्यक्ति की गरिमा की बात कही गई है लेकिन मैरिटल रेप के नाम पर भारतीय समाज में आज भी औरतों की गरिमा को तार तार किया जाता है.
मैरिटल रेप के मामले में कानून भी मर्दवादी मानसिकता के साथ खड़ा नजर आता है. ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय से उम्मीद है कि वह इस मर्दवादी मानसिकता को ध्वस्त करते हुए कानून में बदलाव करे और औरतों की गरिमा को बरकरार रखते हुए उन की सहमति/असहमति के महत्व को समझें. Bodily Autonomy.

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