Society Issues : बड़ा मकान हर किसी का सपना होता है जो अब, होम लोन के जरिए ही सही, साकार होने लगा है. इस की बड़ी कीमत भी लोग अदा कर रहे हैं लेकिन इन में से भी अधिकतर लोग एक वक्त के बाद बड़े मकान को ले कर पछताते नजर आते हैं. बड़ा मकान कुंठा है, स्मार्ट इन्वेस्टमेंट है या जरूरी सहूलियत, इस बात को सम झ पाना एकदम आसान भी नहीं है.
‘‘साढ़े 3 कमरे का मकान और उस में रहने वाले हम 8 लोग. आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि वह कितना तकलीफदेह था,’ अब से कोई चार दशक पहले को याद करते वे बताती हैं, ‘‘खासतौर से युवा होती हम तीनों बहनों के लिए तो जिंदगी बहुत कठिन थी जो अम्मा के साथ एक बेडरूम में सोती थीं. बाहर वाला कमरा जो महज थोड़ा बड़ा होने और लकड़ी का एक पुराना सोफा सेट युक्त होने के चलते ड्राइंग रूम के खिताब से नवाज दिया गया था वह पापा का स्थायी बेडरूम था और भाई लोग बाहर के कमरे में सोते थे.
‘‘जगह कम होने के चलते हमें कपड़े बदलने तक में बहुत एहतियात बरतनी पड़ती थी. पीरियड्स के दिनों में तो हम बहनों को जिंदगी दुश्वार लगने लगती थी कि कैसे सब से छिपा कर कपड़ों की पुटलिया बाहर जा कर फेंके और सुबह सुबह लेट बाथ के लिए पब्लिक टॉयलेट जैसी लाइन में लगे अपनी बारी आने का इंतजार करते रहें.
‘‘हिंदी की प्राध्यापिका होने के बाद भी मैं उन तकलीफों यानी छोटे मकान की जिंदगी को पूरी तरह बयां नहीं कर सकती.’’ पिछले दिनों ही भोपाल के एक सरकारी कॉलेज से रिटायर हुईं बिंदिया मिश्रा (बदला नाम) याद करते आगे बताती हैं, ‘‘बात एक तो करेला और ऊपर से नीम चढ़ा जैसी बात तब हो जाती थी जब घर में कोई मेहमान आ जाता था. उस दौर में अधिकतर मेहमान बिन बुलाए ही होते थे. किसी को इंटरव्यू देना होता था, कोई अपने बेटे या बेटी के रिश्ते की बात करने आया होता था और किसी को राजधानी होने के कारण किसी सरकारी दफ्तर में कोई काम होता था, या कोई यों ही हम से मिलने की आड़ ले कर भोपाल घूमने फिरने की गरज से आ जाता था.
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