पिछले कुछ सालों में हमारे देश में बर्थ रेट तेजी से घट रही है. आबादी कम हो रही है. महिलाएं मां बनने से इनकार कर रही हैं.
बौम्बे बेगम्स मूवी में एक डायलौग था कि “अगर आप की शादी और बच्चे आप की सक्सेस हैंडल नहीं कर सकते तो वह बेकार हैं.”

कुछ महिलाएं हैल्थ रिलेटेड रीजन्स से तो कुछ अपनी मर्जी से मां नहीं बनना चाहतीं पर न तो ये महिलाएं कमतर हैं और न हीन स्वार्थी और अधूरी.

बच्चों के आसरे रहने की उम्मीद रखने या उन पर बोझ बनने की बजाय महिलाएं अपने बारे में सोचें तो गलत क्या है? इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बच्चे सहारा बनेंगे. पूरी पोसिबिलिटी है कि जीवन के आखिरी पड़ाव में बच्चों के बिना बाद में अकेले ही रहना पड़े इसलिए अपनी लाइफ सक्रिफाइस का क्या फायदा.

माना कि यह खयाल सोसायटी के नियमों के हिसाब से गलत या समाज के विरुद्ध होगा लेकिन अगर कोई महिला का मदरहूड के बिना रहना चाहती है तो उस में कोई बुराई या गलत बात नहीं है.

आज हमारे आसपास ऐसी अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जिन्होंने मां न बनने का फैसला किया है और वे अपनी लाइफ अपनी मर्जी, अपने तरीके से जीना चाहती हैं क्योंकि वे समझने लगी हैं कि शादी और बच्चों के चक्कर में फंस कर उन्हें अपने कैरियर अपनी इच्छाओं को पीछे छोड़ना पड़ेगा, इस लिए वे वह नौबत ही नहीं आने देना चाहतीं.

महिलाएं मां बनने से हट रही हैं पीछे

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2019-21 में किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) प्रति महिला 2.2 बच्चों से घट कर 2.0 बच्चे प्रति महिला हो गई है और यह आंकड़ा रिप्लेसमेंट रेट 2.1 से कम है. आप की जानकारी के लिए बता दें कि रिप्लेसमेंट रेट उस बर्थ रेट को कहते हैं, जिस में जन्म और मृत्यु का संतुलन बना रहता है और जनसंख्या स्थिर रहती है लेकिन किसी देश का बर्थ रेट रिप्लेसमेंट रेट से कम हो जाए तो वहां की आबादी घटने लगती है.

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