विश्व विरासत बन चुका पश्चिम बंगाल का डेल्टाई इलाका सुंदरवन खतरे में है. सिर्फ भौगोलिक तौर पर ही नहीं बल्कि ग्लोबल वार्मिंग की मार झेल रहे इस इलाके में रहने वाली जनबस्तियों के डूबने के पीछे कौन से खतरे हैं, बता रही हैं साधना शाह.
पश्चिम बंगाल का डेल्टाई इलाका सुंदरवन, बन तो चुका है विश्व विरासत लेकिन आज भी इस क्षेत्र से हमारा पूरी तरह से परिचय नहीं हो पाया है. शायद यही कारण है कि यहां के ‘यंग डेल्टा’ पर पर्यावरण का खतरा लाल निशान को छूने लगा है जिस के लिए जिम्मेदार है ग्लोबल वार्मिंग. सुंदरवन के डेल्टाई क्षेत्र का बहुत सारा हिस्सा खारे पानी में समा चुका है. यहां के निवासियों पर दोहरी मार पड़ रही है. उन की जमीन और आजीविका दोनों ही छिनती जा रही हैं. पर्यावरणविद और समाजशास्त्री उन्हें पर्यावरण शरणार्थी का नाम दे रहे हैं.
पर्यावरण शरणार्थी की समस्या लगातार गहराती जा रही है. राष्ट्रसंघ की ओर से भी इस मामले को ले कर सर्वेक्षण चल रहा है. राष्ट्रसंघ के सर्वेक्षण में कहा गया है कि महज 45 सेंटीमीटर यानी आधे मीटर से भी कम जल स्तर के और बढ़ने से सुंदरवन का 75 फीसदी हिस्सा बंगाल की खाड़ी के खारे पानी में समा जाएगा. जादवपुर विश्वविद्यालय की ओर से एक सर्वेक्षण किया गया था, जिस में जो तथ्य निकल कर आया वह भी चिंताजनक था. पता चला कि डेल्टाई क्षेत्र मे ं3.14 मिलीमीटर की दर से जल स्तर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है, जबकि अन्य समुद्रों का जल 2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है. इस सर्वेक्षण को 8 साल बीत चुके हैं. राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार बंगाल की खाड़ी के पश्चिम बंगाल इलाके में जल स्तर 5 मिलीमीटर और बंगलादेश में 10 मिलीमीटर की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रहा है. जाहिर है समस्या गंभीर होती जा रही है.
डेल्टा में विलीन होती जमीन
?गंगा और ब्रह्मपुत्र के मुहाने के बीच प्राकृतिक वनांचल में मूलतया मैनग्रोव के जंगल हैं. अनगिनत छोटीबड़ी सहायक नदियां व उन की उपधाराओं से पटा पड़ा है यह क्षेत्र. इस पूरे इलाके का निर्माण ही नदी की गाद या पौली से हुआ है. वर्षों से गंगा और ब्रह्मपुत्र द्वारा बहा कर लाई गई गाद से यहां के टापू निर्मित हुए हैं. लेकिन जो चिंता का विषय है वह यह कि हजारों सालों में भी ये टापू सख्त हो कर पत्थर में परिणत नहीं हुए हैं. यही कारण है कि हाल ही में भू वैज्ञानिकों ने न केवल इस क्षेत्र को बल्कि कोलकाता समेत पूरे दक्षिण बंगाल को यंग डेल्टा क्षेत्र करार दिया है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र में बने टापुओं के पानी में समाने का खतरा गंभीर होता जा रहा है. हर महीने नदी का जलस्तर बढ़ने से यहां के लोगों की आजीविका का सहारा इन की जमीन डेल्टा में विलीन होने लगी है. बीते बरसात के मौसम में इस क्षेत्र के बहुत सारे लोगों की जमीन को डेल्टा ने निगल लिया है. जमीन यहां के लोगों की आजीविका का जरिया है. पिछले साल मई महीने से ले कर अब तक पश्चिम बंगाल की सीमा क्षेत्र के कम से कम 10 लोगों की जमीन खारे पानी में विलीन हो चुकी है. वन विभाग का दावा है कि बंगलादेश के डेल्टाई क्षेत्र का भी यही हाल है.
ग्लोबल वार्मिंग की मार
पिछले वर्ष पहली बार 16 मई को अचानक आए जलोच्छ्वास से क्षेत्र के पायलागिरी के सुबोध कुमार पात्र की 1 एकड़ से भी ज्यादा जमीन खारे पानी में विलीन हो गई. सुबोध की इस जमीन में बड़े पैमाने पर तरहतरह की सब्जियां उगाई जाती थीं. अब सुबोध के परिवार के पास रहने के लिए न कोई ठिकाना है और न रोजगार का जरिया. बंगाल के इस डेल्टाई क्षेत्र के आसपास के इलाके देगंगा, बासंती, संदेशखाली, मीनखां, हाड़ोया जैसे कई द्वीपों में जलस्तर बढ़ रहा है. दिलचस्प बात यह है कि यहां के लोगों ने ग्लोबल वार्मिंग का नाम तक नहीं सुना है. पर इस की मार ये लोग झेल रहे हैं. यही नहीं, यहां के पानी के खारेपन में वृद्धि हो रही है. इस बीच भांगादुयानी, केंदो और डलहौजी द्वीप को खारे पानी ने लील लिया है.
इस डेल्टाई क्षेत्र का थोड़ा सा हिस्सा (महज 1330.10 वर्ग किलोमीटर) भारतीय सीमा के अंतर्गत आता है. बाकी पूरा क्षेत्र बंगलादेश की सीमा के अंतर्गत पड़ता है. दोनों देशों को मिला कर इस पूरे डेल्टाई क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 10 हजार वर्ग किलोमीटर है. दोनों देशों के बीच बंटवारे के समय स्थल हिस्से का तो बंटवारा हुआ लेकिन जंगल का नहीं. जाहिर है दोनों देशों की सीमा में कांटेदार तार से सुंदरवन अछूता ही रहा. राज्य वन विभाग का मानना है कि सुंदरवन के गहरे जंगल में कांटेदार तार लगाना संभव नहीं. यह इलाका इतना दुर्गम है कि कांटेदार तार लगाने के लिए यहां तक पहुंचना ही संभव नहीं.
जंगल का अतिक्रमण
इस क्षेत्र को बहुत ही करीब से जानने वाले पर्यावरणविद चंद्रशेखर भट्टाचार्य का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र के निवासी आजीविका के लिए वैकल्पिक उपाय की खोज में जंगल की ओर बढ़ने लगे हैं. धीरेधीरे जंगल का अतिक्रमण होने लगा है. उस पर तुर्रा यह कि बंटवारे के बाद बंगलादेश की आबादी में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इस वृद्धि के चलते सुंदरवन के डेल्टाई क्षेत्र पर दबाव लगातार और भी बढ़ता चला जा रहा है.
दूसरा खतरा है ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक उष्णता, जिस के कारण हिमनद का आकार लगातार बड़े पैमाने पर छोटा होता जा रहा है. नतीजतन, नदियों का जलस्तर बढ़ता चला जा रहा है. जाहिर है डेल्टाई क्षेत्र में बसी जनबस्तियां इस की चपेट में आ रही हैं. सो, महानगर कोलकाता और इस के आसपास के उपनगरों में पर्यावरण शरणार्थी की समस्या बढ़ती चली जा रही है. इन में बहुत सारे बंगलादेशी भी हैं.
जलस्तर बढ़ने से न केवल जनजीवन पर असर पड़ रहा है, बल्कि वन्य जीवन भी प्रभावित हो रहा है. यहां की प्राकृतिक संपदा, जैसे रौयल बंगाल टाइगर, मेनग्रोव के जंगल, सुंदरी पेड़ को भी खतरा है. यह सुंदरवन अब भी बहुत सारे विशेष प्रजातियों के जीवजंतुओं का आश्रयस्थल है. दुनिया में वन बिलाव की तादाद भले ही विलुप्ति के कगार पर है लेकिन ये आज भी यहां पाए जाते हैं. इस के अलावा यहां जंगली सूअर, विशेष तरह का रंगा सियार और बंदर की एक विशेष प्रजाति के साथ चीतल, हिरण, पैंगोलिन पाए जाते हैं. यहां के लोगों की आजीविका में सुंदरवन के प्राकृतिक संसाधन बड़ा महत्त्व रखते हैं. इसलिए इस क्षेत्र में बसे लोग पानी में मगरमच्छ और जंगल में बाघ के आतंक के बीच अपना जीवन गुजारते हैं.
कभी इस क्षेत्र में हाथी भी हुआ करते थे. बताया जाता है कि ‘अकबरनामा’ में सुंदरवन के दक्षिणी क्षेत्र हाटथुवा जंगल से हाथी पकड़ कर सेना में भरती करने का जिक्र है. लेकिन अब यहां हाथी नहीं पाए जाते हैं. हाथी के अलावा इस क्षेत्र में जावा व सुमात्रा में पाए जाने वाले विशेष प्रजाति के गैंडों के अलावा लाल सींगवाले गैंडे, खारे पानी के हिरण, जंगली भैंसे भी पाए जाते थे. ये सभी अब विलुप्त हो चुके हैं. पश्चिम बंगाल वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 1900 में आखिरी बार लाल सींग वाला गैंडा पाया गया था. लेकिन जहां तक लाल सींग वाले गैंडे का सवाल है तो ये वर्ष 1935 से विलुप्त हो चुके हैं.
विलुप्त होते जीवजंतु
सुंदरवन में पाए जाने वाले जीवजंतुओं की सूची बहुत लंबी है. वन विभाग की ओर से प्राप्त इस सूची का कहीं कोई अंत नहीं है. इन में ज्यादातर जीवजंतु दुर्लभ प्रजाति के हैं. कुछ नाम इस प्रकार हैं : ओपेन बिल्ड स्टर्क, ह्वाइट आइबिस, वाटर हेन, कूट, पारिया काइट, ब्रह्मिनी काइट, मार्स हेरियस, रैड जंगल फाउल, स्पौटेड आउल, जंगली कव्वा, मिनस, कौटन टिल, कैस्पियन टर्न, नाइट हेरन, कौमन स्नाइप, विशेष प्रजाति का कठफोड़वा, हरे कबूतर, रोज रिंग्ड पैराकीट, पैराडाइज फ्लाईकैचर, करमारेंट, समुद्री स्पौटेड ईगल, विभिन्न प्रजातियों के सीगल, वुड सैंड पइपर, पेरिग्रीन फैलकौन, ह्वीमब्रेल, ब्लैक टेल्ड गौडविट, गोल्डन प्लोवर, पिनटेल आदि.
फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती. यहां सैकड़ों प्रजाति के सांप पाए जाते हैं. इन में बहुत सारे भयंकर विषैले सांप हैं.
सुंदरवन के ये तमाम प्राकृतिक और वन्य संसाधन राष्ट्रीय ही नहीं, विश्व विरासत हैं. यही कारण है कि 1977 में यूनेस्को ने इसे वाइल्ड लाइफ सैंचुरी घोषित किया था. इस के बाद 1985 में इसे विश्व विरासत की सूची में शामिल कर लिया गया. लेकिन आज यह विशाल प्राकृतिक और वन्य संपदा समेत सुंदरवन पर पर्यावरण खतरा पहले से ज्यादा गंभीर होता जा रहा है. यहां के निवासियों के साथ इस क्षेत्र के सैकड़ों द्वीपों पर पर्यावरण खतरा गहराता जा रहा है. राज्य के पर्यावरणविदों का मानना है कि यह खतरा राज्य की राजधानी समेत बंगाल के दक्षिणी हिस्से को भी प्रभावित कर रहा है.
पर्यावरण समस्या की अनदेखी
पर्यावरणविद चंद्रशेखर भट्टाचार्य कहते हैं कि बंगाल की खाड़ी से उठने वाले समुद्री तूफान के वेग को तोड़ने का अहम काम यहां के मैनग्रोव के जंगल करते हैं. एक हद तक मैनग्रोव के ये जंगल टापुओं की भी रक्षा करते हैं. उधर जादवपुर के समुद्री विज्ञान विभाग का कहना है कि पिछले 37 वर्षों में 45 फीसदी मैनग्रोव के जंगल नष्ट हो चुके हैं. वहीं, जलस्तर बढ़ने से खाड़ी के पानी का खारापन बढ़ रहा है. इस से गाद तेजी से नरम पड़ती
जा रही है. नरम गाद से बनी जमीन को पानी में समाने में ज्यादा समय नहीं
लगता. ऐसे में आने वाले समय में अगर सुंदरवन के टापू खाड़ी के पानी में समा गए तो कोलकाता समेत दक्षिण बंगाल के कम से कम 2 जिलों, उत्तर और दक्षिण 24 परगना पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
सचाई यह भी है कि औद्योगिकीकरण और शहरीकरण एक समस्या है और हम सब इस समस्या को प्रत्यक्ष देख भी रहे हैं. लेकिन वैश्विक उष्णता से पैदा हुई समस्या को एक हद तक हम देख नहीं पाते हैं. इसलिए पर्यावरण की इस समस्या की अनदेखी कर रहे हैं.

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