अनोखा मुल्क है भारत. देश के शहर, कसबे और गांव सब अजीबोगरीब और अव्यवस्थित नजर आते हैं. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी अपनी सरकारों के गुड गवर्नेंस के जुमले बेशर्मी से दोहराते हैं लेकिन जरा जा कर तो देखें बाजार, सड़क, गलियां, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सरकारी दफ्तरों में कुशासन की गंदगी सड़ांध मार रही है. भ्रष्टाचार और प्रदूषण के संक्रमण से बीमार होते हमारे देश की कुछ ऐसी ही तसवीर पेश करती जगदीश पंवार की रिपोर्ट.
देश के 2 बड़े नेता भाजपा के नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राहुल गांधी अपनीअपनी सरकारों के विकास के ढोल पीटते दिखाई देते हैं, गुड गवर्नेंस पर भी बोलते हैं पर उन का विकास कैसा है, किस के लिए है, उन का सुशासन कैसा है?
छोटे शहर, कसबे कूड़ेकचरे के ढेर से अटे पड़े हैं. सड़कें, गलियां टूटीफूटी हैं. नालियों का पानी गंदगी से सड़ांध मार रहा है. चौराहों के कोनों पर नगरपालिका या परिषदों ने कूड़ाघर बना रखे हैं. वाहन सड़कों, गलियों में बेतरतीब खड़े दिखते
हैं. रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार, गलीमहल्ले, कालोनियां, सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, सरकारी दफ्तर और धर्मस्थल सभी व्यवस्था पर सवाल उठाते नजर आ रहे हैं.
धरती पर अगर कहीं व्यवस्था का बंटाधार है तो वह भारत में है. राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक अव्यवस्था के बीच हर तरफ लोगों की रोजमर्रा की परेशानियों का आलम है पर चुनावी चिल्लपों के बीच किसी भी नेता या राजनीतिक दल के घोषणापत्रों, नारों व भाषणों में उन समस्याओं का जिक्र नहीं है, जिन से लोग रोजाना रूबरू होते हैं. कोई भी राजनीतिक दल उन व्यावहारिक दिक्कतों की बात करता सुनाई नहीं दिया जिन से हर शहर, कसबा और गांववासी दोचार होता आ रहा है.
चुनाव आते ही वादों की झड़ी लगा कर हर दल का नेता सत्ता पर काबिज होते ही जनता को अनसुना कर देता है. आम जनता के सामने आने वाली बिजली, पानी, शिक्षा, महंगाई, भ्रष्टाचार और न्याय व्यवस्था जैसी आधारभूत चुनौतियों से मुंह चुराते इन सियासतदां की बदौलत ही इस देश की ऐसी दुर्गति हुई है. पता नहीं कब तक और हमारे जनप्रतिनिधि जनता की चुनौतियों से निबटने के बजाय उन से भागते फिरेंगे.
आम जनता के लिए पगपग पर परेशानियां मुंहबाए खड़ी हैं. 23 मार्च की सुबह 6 बजे हम एनसीआर के कुछ शहरों, कसबों के विकास का जायजा लेने दिल्ली के रोहिणी स्थित घर से निकले. एक के बाद एक 3-4 आटोरिकशा वालों को रुकने का इशारा किया. लेकिन वे रुके नहीं, सभी अनदेखा कर चले गए. फिर एक आटो रुका.
‘सराय रोहिल्ला चलोगे?’
‘250 रुपए लगेंगे’, आटो वाले ने किराया बताया.
‘लेकिन मीटर से 120 के आसपास लगते हैं?’
जाम मिलेगा, टै्रफिक वाले नहीं जाने देंगे जैसे रटेरटाए बहाने बनाए. जिदबहस के बाद 150 रुपए में जाने को तैयार हुआ. 6.40 बजे उस ने रेलवे स्टेशन पर उतार दिया. हम खुश थे कि ट्रेन 7.10 की है. समय से पहले पहुंच गए. 2 टिकट खिड़की थीं लेकिन दोनों पर भीड़. फिर भी तसल्ली थी कि 10-15 मिनट में नंबर आ ही जाएगा. ज्योंज्यों खिड़की के नजदीक पहुंचने लगे, आसपास अव्यवस्था का नजारा दिखने लगा.
बगैर लाइन दोनों तरफ 10-10,
12-12 लोग टिकट लेने के लिए खड़े थे. पीछे से आवाजें आ रही थीं, लाइन में आ जाओ पर लोग टस से मस नहीं हो रहे थे. एक तरफ महिलाएं टिकट लेने की जद्दोजहद में थीं. महिलाएं भी बिना लाइन एकदूसरे से धक्कामुक्की कर रही थीं.
टिकट खिड़की के आसपास पुलिस का कोई जवान नहीं था जो लोगों को लाइन में लगने को कह सके. टिकट लेना ही परेशानी नहीं, टिकट लेने के बाद भीड़ से बाहर निकलना और भी मुश्किल था. भीड़ को हटा कर लाइन के लिए बनी दोनों ओर लोहे की रेलिंग के नीचे बैठ कर निकलना पड़ रहा था. महिलाओं के लिए भीड़ के बीच रेलिंग के नीचे से निकलना बड़ा मुश्किल हो रहा था, किसी तरह जूझ कर निकल रही थीं. पुरुषों ने अपने साथ की महिलाओं को इसलिए टिकट लेने भेजा ताकि महिलाओं को जल्दी टिकट मिल सके पर उलटा देरी और परेशानी अधिक उठानी पड़ रही थी. शोरशराबा, हायतौबा मची थी.
लाइन में खड़े 40 मिनट बीत चुके थे पर नंबर नहीं आया. अभी भी 10-12 लोग आगे थे, साइड में बगैर लाइन वाले अलग. तभी किसी सवारी ने कहा कि ट्रेन चल पड़ी है. 7.10 बजे वाली गाड़ी निकल गई. अब तक हम लाइन में ही थे. किसी ने बताया अब अगली ट्रेन 8.20 पर है. धीरेधीरे लाइन के खिसकने से हम आगे पहुंच चुके थे. सामने अंदर 50-55 साल के मुरदे से दिखने वाले टिकट क्लर्क के मरे हुए से हाथ चल रहे थे. उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था कि बाहर लाइन में खड़े लोगों का क्या हाल है, किस कदर परेशान हैं. टिकट लेने के बाद बड़ी राहत मिली. लगा, जैसे कोई बड़ी मुहिम जीत ली हो.
ऐसे माहौल में किसी का सामान गायब हो जाए, किसी की जेब कट जाए, किसी का बच्चा इधरउधर हो जाए तो कोई जिम्मेदार नहीं, किसी की जवाबदेही नहीं है. यह देश की राजधानी दिल्ली के एक बड़े रेलवे स्टेशन का हाल है. यहां से गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और दक्षिणी राज्यों के लिए ट्रेनों के आवागमन की सुविधा है.
उस के बाद हम 8.20 बजे की ट्रेन में बैठ गए. करीब डेढ़ घंटे बाद हरियाणा के रेवाड़ी और फिर बस से इतने ही समय में महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल कसबे में उतरे. यह तहसील मुख्यालय है. बस स्टैंड काफी बड़ा था पर चारों तरफ गंदगी का साम्राज्य. करीब 1 दर्जन बसों के खड़े होने की स्टैंड में व्यवस्था थी. बस स्टैंड चारों तरफ से दीवारों से घिरा था पर अंदर गंदगी भरी पड़ी थी. यात्री परेशान थे. अंदर टौयलेट बना हुआ था. टौयलट के बाहर एक अपंग व्यक्ति बैठा था पर भीतर बदबू थी. नाक पर रूमाल रख कर फारिग होना पड़ रहा था. यात्री इस टौयलेट का इस्तेमाल करने के बजाय बस स्टैंड के भीतर ही दीवारों पर पेशाब करते हैं. समूचे परिसर में कूड़ेदान कहीं दिखाई नहीं दिया.
दोपहर के 12 बज चुके थे. बुकिंग खिड़कियों के पास प्रबंधक का केबिन दिखाई दिया. सामने एक सज्जन माथे पर हाथ रखे तनाव और सोचने की मुद्रा में बैठे दिखाई दिए. टेबल पर कोई फाइल, कागज नहीं. कुछ कर्मचारी आ कर उन से अभिवादन कर के जा रहे थे. लगा, इस अधिकारी का काम शायद कर्मचारियों की नमस्ते का जवाब देना ही हो. जब हम अंदर दाखिल हुए और सफाई व्यवस्था व यात्रियों की सुविधा से संबंधित उन से सवाल किए तो सोच व तनाव में दिखने वाले ये सज्जन अब मुसकराहट और विनम्रता के साथ पिघले हुए नजर आने लगे.
वीरभान नाम के इस अधिकारी ने बताया कि बस स्टैंड की सफाई व्यवस्था के लिए सरकारी कर्मचारी भी हैं और प्राइवेट भी. रोजाना यहां से अलगअलग राज्यों के लिए लगभग 120 बसों का संचालन होता है इसलिए यहां यात्रियों की भरमार रहती है. लेकिन फैले कूड़े और बदबू पर उन का कोई जवाब नहीं था.
न्याय की उड़ती धज्जियां
बगल में सटे केबिन के बाहर रणवीर सिंह, स. जिला न्यायवादी की तख्ती लगी थी. अंगरेजी में लिखा था, एडीए, एचपीएलएस. वीरभान से जब हम ने उन के बारे में पूछा कि पास वाले केबिन में बैठे सज्जन क्या देखते हैं? तो उन्होंने बताया कि वे रोडवेज के अदालती मामले देखते हैं. उन के बारे में जानने की उत्सुकता इसलिए हुई क्योंकि न्यायवादी के नेमप्लेट लगे केबिन में मुख्य सीट पर बैठे हुए धूम्रपान कर रहे यह शख्स न्याय की धज्जियां धुएं में उड़ाते दिख रहे थे.
बस स्टैंड पर कई लोग खाली बैठे थे. कोई ताश खेल रहा था, कोई गप लड़ा रहा था. कोई कामधाम नहीं. ये लोग स्थानीय लग रहे थे, मुसाफिर नहीं. यात्री चोरउचक्कों, उठाईगीरों से हरदम डरे, सहमे. सुरक्षा का कोई बंदोबस्त नहीं.
उस के बाद हम बस स्टैंड से बाहर निकल कर मुख्य सड़क पर आ गए. अद्भुत, अजीबोगरीब नजारा था. समूची सड़क पर अव्यवस्थित दृश्य. करीब 40 फुट लंबी इस रोड के दोनों ओर आड़ेतिरछे वाहनों की कतार, दुकानों के आगे दोनों तरफ 8-8,10-10 फुट पर फैला सामान. आनेजाने वाले वाहनों और आम लोगों के लिए बीच में बची संकरी सड़क. सड़क भी टूटीफूटी. यहां से गुजरना जांबाजों के ही वश की बात थी. आम लोगों के लिए पैदल चलना बड़ा दूभर था.
नारनौल पुराना कसबा है. बाजारों में सजी दुकानें, जगहजगह मंदिर, सड़कों पर टैंपो, आटोरिकशा, खच्चर गाडि़यां, यह नजारा था यहां के महावीर चौक से रेलवे स्टेशन, लोहा मार्केट, नई मंडी का. बस स्टैंड से रेलवे स्टेशन की ओर करीब
4 किलोमीटर का खस्ताहाल रास्ता, दुकानों के आगे 7-8 फुट तक सामान रख कर सड़कों का आवागमन मुश्किल. राहगीरों के लिए अड़चनों का अंबार. रेलवे रोड पर नई मंडी की अधिकांश दुकानें मानो बाहर मुख्य सड़क पर आ गई हैं. श्रीअंबा ट्रेडर्स, गुजरमल पंसारी, सतीश इंटरप्राइजैज, रेलवे स्टेशन के आगे छज्जूराम हलवाई की भट्ठी सड़क पर ही सुलग रही थी.
सिविल अस्पताल की तो बात ही छोड़ दीजिए. ऐसा लगता है अस्पताल कूड़ाघर के बीच में बना हुआ हो. मुख्य दरवाजे के भीतर पुलिस चौकी और आगे अस्पताल. बाहरी दीवारों के आसपास कूड़ेकचरे के ढेर. 2 बड़े कूडे़दान लगे हुए थे जो कचरे से उफन रहे थे. सामने श्री अग्रवाल सभा का विशाल भवन. भवन से जुड़े श्रीदुर्गा मंदिर में महिलाओं का भजनकीर्तन चल रहा था पर उस के सामने अस्पताल के कोने में कूड़े में से धुआं निकल कर आसपास का माहौल दुर्गंधयुक्त और प्रदूषित बना रहा था पर यहां रहने वाले दुकानदारों व अन्य लोगों को मानो कोई परवा नहीं. शायद इसलिए नहीं है कि दुर्गा माता सब संकट दूर कर देंगी.
लोहा मंडी के आगे सड़क पर सामान फैला हुआ था. नीचे 3 फुट गहरा, इतना ही चौड़ा नाला दुकानों के आगे से बह रहा था. कहींकहीं से नाले की हटी पट्टी के कारण गंदे पानी की बदबू फैल रही थी. काठ मंडी का भी यही हाल था.
सड़क के किनारे लगे खंभों के तार खुले पड़े हुए थे. गलियों में मिट्टी के ढेर लगे थे. महल्ला कूड़े के ढेर में तबदील दिख रहा था. जगहजगह नालियों की गाद निकाल कर बाहर छोड़ दी गई थी.
अव्यवस्था का आलम
केंद्र सरकार के दफ्तरों में एक पोस्टऔफिस का भवन नया और सुंदर तो था पर 3 दरवाजों वाले इस कार्यालय में प्रवेश के लिए नाक पर रूमाल रख कर जाना पड़ा. पोस्टऔफिस के बाहर की करीब 200 फुट की दीवार कचरे, मिट्टी के ढेर से अटी पड़ी थी. एक कमरे में
3 कर्मचारी हंसीठट्ठों में लीन थे. कमरे के बाहर और भीतर गर्द, मिट्टी जमे कागजों के बंडलों के सैकड़ों ढेर. सामने ही पोस्टमास्टर के एस झाझोलिया की नेमप्लेट लगी थी पर साहब नदारद थे.
दोपहर के साढे़ 3 बज चुके थे. बाहर कोई चौकीदार नहीं था और न ही औफिस में ज्यादा भीड़ नजर आई. 4-5 युवक नौकरियों के फौर्म और लिफाफा लिए रजिस्ट्री के लिए खड़े थे पर अंदर 8 काउंटरों में 7 लोग थे जिन में 3 महिला और 4 पुरुष थे. बीचबीच में बाहर से एक कर्मचारी आ कर जोर से बोल कर सब का ध्यान बंटा रहा था.
पोस्टऔफिस के नजदीक स्थित नगरपरिषद कार्यालय के मुख्य दरवाजे के बाहर बड़ा सा कूड़े का ढेर लगा था. समझा जा सकता है कि जब स्वयं साफसफाई कराने वाले विभाग के दरवाजे पर कचरे का पहाड़ लगा हो तो वह शहर की सफाई कैसे सुनिश्चित करा सकता है.
जहां नजर गई वहीं अव्यवस्था का आलम. मार्केट कमेटी के बाहर आड़ेतिरछे स्कूटर, मोटरसाइकिलें कीचड़ और कूड़े के ऊपर खड़ी थीं. आसपास गाय, कुत्ते, सूअर मंडरा रहे थे. यहां आने वाले किसान, व्यापारियों को किस कदर जूझते हुए इन सब से बचतेबचाते हुए आनाजाना पड़ता होगा, दिख रहा था.
अनोखा देश है भारत. हमारे शहर, कसबे किसी बाहरी को सचमुच अजीबोगरीब लगते हैं. कुछ भी सुव्यवस्थित नहीं है. बाजार, सड़कें, गलियां, बस स्टैंड, बसें, रेलवे स्टेशन, रेलगाडि़यां, सरकारी दफ्तर, धर्मस्थल सभी व्यवस्था को ठेंगा दिखाते नजर आते हैं. लोग परेशान दिखते हैं.
सड़कों पर जानलेवा गड्ढे हैं. सड़कों, गलियों में बाहर कपड़े सूख रहे हैं. किनारे पर गाय, भैंसों का गोबर और उपले सुखाए जा रहे हैं.
शहर में मंदिरों की लाइन है पर लोगों को शांति, सुकून नहीं है. अंगरेजी स्कूलों की भरमार है लेकिन शिक्षा नहीं.
केंद्र सरकार के एक और विभाग रेलवे स्टेशन की बात करें तो नया और काफी विशाल भवन है. दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई रूट वाले इस स्टेशन से ट्रेनों का आवागमन अधिक नहीं है. इस वजह से यात्रियों को लोकल ट्रेनों की जरूरत है पर जनता की परेशानी कौन हल करे. यहां दोपहर ढाई बजे के बाद रेवाड़ी के लिए रात को साढे़ 8 बजे गाड़ी है. यानी पूरे 8 घंटे बाद. माल के लिए बने शैड के नीचे जानवरों का जमावड़ा, स्टेशन पर गंदगी फैलाने वालों के लिए कानूनी दंड की चेतावनी जरूर दी गई है पर यह व्यवस्था देखने वाला कोई नजर नहीं आया.
रेलवे पूछताछ कार्यालय में कोई नहीं था. चारों टिकट खिड़कियां बंद थीं. स्टेशन मास्टर के कमरे के बाहर डी एस चौहान की तख्ती लटकी हुई थी पर साहब थे नहीं. प्रवेशद्वार के बाहर फैली गंदगी रेल अधिकारियों की उस कानूनी चेतावनी को ठेंगा दिखा रही थी जिस में कहा गया है, ‘भारतीय रेल अधिनियम 212 के अंतर्गत रेल परिसर में किसी तरह की गंदगी फैलाने पर रेल अधिनियम 1989 की धारा 198 के तहत 500 रुपए तक जुर्माना किया जा सकता है.’
शाम के 6.30 बज चुके थे. अहिंसा तिराहे के पास पाताली हनुमान मंदिर से कानफोड़ू शोर गूंज रहा था. वाहनों के शोरशराबे ने वातावरण को दमघोंटू बना दिया था. आसपास रहने वाले दुकानदार और बड़ेबूढे़, बीमार, बच्चे कैसे सहन कर रहे होंगे. पर आस्था के अंधों की भीड़ को भला दूसरों की परेशानियों से क्या लेनादेना. रेलवे रोड पर श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर, श्रीदुर्गा मंदिर अंदर से मार्बल के बने सुंदर दिखते थे पर बाहर भक्तों का दुख, क्लेश बढ़ता जा रहा था. कोई देखने, सुनने वाला नहीं था.
जनता हलकान नेता अनजान
यादव बाहुल्य इस क्षेत्र में लोकसभा चुनावों की चर्चा का मामला था. विकास, वादों और वादाखिलाफी की बातें. जाट आरक्षण पर चर्चा. इलाके से मौजूदा सांसद श्रुति चौधरी हैं जोकि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के परिवार की हैं. उन्हें ताकतवर नेता माने जाने के बावजूद उन के इलाके की जनता को पगपग पर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
नारनौल से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर हरियाणाराजस्थान सीमा से सटा सिंघाना कसबा है. इस कसबे की तसवीर भी कोई अलग नहीं थी. एक जैसी समस्याएं. आधा घंटा बारिश के बाद सड़कों, गलियों की दशा बुरी हो गई थी. लोग सड़क किनारे चलने वाले वाहनों से बच कर चल रहे थे. पानी, कीचड़ उछल कर आसपास बिखर रहा था. मुख्य सड़क के पास से गुजर रही इस गली का बुरा हाल था. करीब
15 फुट की इस गली के दोनों ओर नालियां हैं. नालियों का कीचड़ निकाल कर बाहर छोड़ दिया गया था. आनेजाने वालों के लिए बीच में महज 5 फुट की जगह बची. छोटे वाहन भी यहीं से गुजर रहे थे.
यह देश के मशहूर उद्योगपति सेठ पीरामल का बगड़ कसबा है. बस स्टैंड पर यात्रियों के लिए छाया का कोई साधन नहीं था. लोग पेड़ के नीचे खड़े थे. दिल्ली से झुंझुनू के बीच स्थित इस कसबे में सेठ ने स्कूल, कालेज, बागबगीचे, अस्पताल, मंदिर बनवाए पर उस पैसे की कीमत न प्रशासन ने समझी, न जनता ने. मुख्य सड़क के दोनों ओर गंदगी के ढेर लगे हुए थे.
कसबे में निर्दलीय प्रत्याशी डा. राजकुमार की चुनावी रैली निकलने वाली थी. सड़क के दोनों ओर आड़ीतिरछी खड़ी करीब 200 गाडि़यों ने जाम लगा दिया था. रोडवेज बसों और अन्य आनेजाने वाले वाहनों का रास्ता रुका हुआ था. रेंगरेंग कर वाहन चल रहे थे. पुलिस के दर्जनों जवान खड़े थे, जिन में 3 स्टार लगे पुलिस अफसर भी थे पर दूसरों को हो रही परेशानी कोई नहीं देख रहा था.
रात्रि को लौटते हुए रेवाड़ी रेलवे स्टेशन पर नौकरी की परीक्षा दे कर आ रहे युवाओं का भारी रेला था. अजमेर से जम्मूकश्मीर सुपर फास्ट पूजा ऐक्सप्रैस के रिजर्वेशन डब्बों में युवकों की भीड़ घुस गई. रिजर्वेशन वाले यात्री परेशान. ट्रेन के दरवाजों पर लटके हुए थे लोग. ऐसे हालात आएदिन शहरों में गाडि़यों, बसों में देखे जा सकते हैं पर न तो रेलवे प्रशासन न ही रोड यातायात विभाग युवाओं के लिए अलग से ट्रेन या बस की व्यवस्था करता है. सरकारें राजनीतिक पार्टियों के अधिवेशनों के लिए स्पैशल ट्रेनों की व्यवस्था तो कर सकती हैं पर युवाओं के लिए नहीं.
बसों में सवारियां ठूंसठूंस कर भरी जाती हैं. प्राइवेट बसें बेलगाम चलती हैं. आएदिन बेकुसूर लोग लापरवाही, अव्यवस्था के कारण मारे जाते हैं.
रेवाड़ी से लगभग 25 किलोमीटर दूर धारूहेड़ा के सरकुलर रोड व बस स्टैंड के पास गंदे पानी का बड़ा सा दरिया बना हुआ है. स्थानीय लोग कहते हैं कि इसे हटाने की मांग की जा रही है पर न तो नगरपालिका और न ही विधायक इस पर कोई ध्यान दे रहे हैं. 6 महीने से दोनों मुख्य मार्गों पर दूषित पानी होने पर नगरपालिका द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर देने के बावजूद इस की निकासी का प्रबंध नहीं हो पाया.
सरकुलर रोड धारूहेड़ा की मुख्य रोड है और इस पर से प्रतिदिन 2 हजार लोग गुजरते हैं. लोगों को सीवर के गंदे पानी के बीच से निकलना पड़ता है. इस के अलावा यहां के भगतसिंह चौक से दिल्ली की ओर आने वाली सड़क पर रेहड़ी व दुकानदारों द्वारा अवैध कब्जा करने से वाहन चालकों और आम लोगों को आनेजाने में दिक्कतें उठानी पड़ती हैं. क्षेत्र में प्रदूषण से बुरा हाल है.
अमल करने वाला नहीं
ताजा सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल गंदगी और वायु प्रदूषण से 80 लाख लोग बीमार पड़ रहे हैं. गंदगी से लोग परेशान हैं. सफाई व्यवस्था का न तो सरकार के पास और न ही समाज के पास कोई कारगर हल है. अगर इस का समाधान है भी तो अमल करने वाला कोई नहीं.
चारों ओर बदहाली, अव्यवस्था का आलम है. किसी भी पार्टी के एजेंडे में आम जनता के सामने आ रही व्यावहारिक दिक्कतों का समाधान नहीं है. ये समस्याएं एजेंडे में हैं ही नहीं. यह सब व्यवस्था कौन ठीक करेगा. कांग्रेस और भाजपा इन दिक्कतों के बारे में बात ही नहीं करतीं. ये दल इन समस्याओं से अनजान हैं. जनता भी इन बातों को नहीं उठाती. वह इसे अपनी नियति मान बैठी है.
शहरों में जो चमक है वह महज 10 फीसदी लोगों के पैसों की है. शेष 90 फीसदी बदहाल हैं. तरक्की हुई है लेकिन अमीर और आम आदमी के अनुपात में भारी फर्क है. छोटे शहरों, कसबों में तरक्की कम, बदहाली, अव्यवस्था अधिक दिखाई देती है.
नगरीय विकास में क्या ये चीजें नहीं आतीं? इन समस्याओं में भारी भ्रष्टाचार भी है पर भ्रष्टाचार और व्यवस्था परिवर्तन की बात केवल आम आदमी पार्टी करती है. वह झाड़ू से अव्यवस्था का सफाया करना चाहती है पर दिक्कत है कि राजनीतिक दल और जनता दलदल में रहने की आदी हो चुकी है पर इन दोनों को यह पता नहीं है कि इस से नुकसान इन का ही हो रहा है.
अपनी ढपली अपना राग
भाजपा तो साधुसंतों के चमत्कारों की कहानियों में आस्था रखने वाली पार्टी है. संघ की पाठशाला से दीक्षित पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी कृष्णसुदामा की कथा पर यकीन करने वाले व्यक्ति हैं. इस कथा में गरीब सुदामा कृष्ण से मिलने जाता है और जब लौट कर अपने घर आता है तो टूटाफूटा झोंपड़ा सोने के महल में तबदील मिलता है. गंदगी की जगह साफसफाई मिलती है. इसी तरह की कांग्रेस की सोच है. अमीरीगरीबी को वह ऊपर वाले की देन मान कर चलती आई है.
अगर मोदी देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो जनता अपनी रोजमर्रा की व्यावहारिक समस्याओं के किसी तरह के समाधान की उम्मीद नहीं करे. उन के पास युवाओं, महिलाओं, वृद्धों, बच्चों, व्यापारियों, गरीबों सब के लिए व्रत, मंत्र, कथाएं हैं और फिर वे खुद बनारस में भगवान शिव से सब के कल्याण की प्रार्थना करेंगे ही.
आम जनता की दिक्कतों का व्यक्ति की तरक्की पर असर पड़ता है. विकास दर प्रभावित होती है. सरकारें केवल 10 प्रतिशत लोगों के लिए तमाम तरह की सुविधाएं मुहैया करा रही हैं बाकी 90 प्रतिशत मुसीबतें झेलते हुए रोजीरोटी कमा रहे हैं. नई सरकार के सामने मानव विकास के लिए लोगों में कार्यक्षमता बढ़ाना चुनौती है. साफसफाई, स्वच्छता, स्वस्थ माहौल, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं.सरकारों को आम जनजीवन से जुड़ी व्यावहारिक दिक्कतों के समाधान के रास्ते ढूंढ़ने को प्राथमिकता देनी चाहिए. जनता को खुद भी अपनी इन समस्याओं के प्रति संजीदा होने की जरूरत है.
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