मेघा और शशांक को वैवाहिक बंधन में बंधे 3 साल हो चुके थे. चूंकि कैरियर में सैटल होने के चलते दोनों का विवाह देर से हुआ था इसलिए दोनों चाहते थे कि जल्द ही दोनों की जिंदगी में एक हंसतेखिलखिलाते स्वस्थ शिशु का आगमन हो जो उन के जीवन को संपूर्णता दे सके. काफी प्रयासों के बाद भी जब मेघा गर्भवती नहीं हुई तो दोनों ने डाक्टरी जांच कराई जहां पता चला कि मेघा के गर्भाशय में संक्रमण है जिस के चलते वह कभी मां नहीं बन पाएगी. यह सुन कर मेघा व शशांक के मातापिता बनने के सपने पर मानो पानी फिर गया.

वे पूरी तरह निराश हो गए थे. तभी उन के एक दोस्त ने उन्हें बच्चे का सुख पाने के लिए सरोगेसी की सहायता लेने की सलाह दी. लेकिन मेघा और शशांक को शक था कि क्या सरोगेसी के जरिए जन्म लेने वाला बच्चा बायोलौजिकली उन दोनों का ही होगा या उस में सरोगेट मां का अंश होगा? डाक्टर ने उन्हें बताया कि सरोगेसी में सरोगेट मां की सिर्फ कोख होती है और जन्म लेने वाले बच्चे का डीएनए दंपती का ही होता है. तब जा कर दोनों को तसल्ली हुई और उन्होंने काफी दुरूह प्रक्रिया के बाद सरोगेसी क्लीनिक के जरिए सरोगेट मां यानी किराए की कोख का चुनाव किया.

9 महीने के लंबे इंतजार के बाद आखिर वह दिन आ ही गया कि जब वे अपने बच्चे को गले लगाने वाले थे. नर्सिंग होम के लेबररूम के बाहर बैठे दोनों के लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा था. कुछ देर बाद आखिर वह घड़ी आ गई जिस का उन्हें इंतजार था. लेबररूम से बच्चे के रोने की आवाज सुन कर दोनों की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर उस नन्ही सी जान को उन की गोद में दिया, उन्हें लगा मानो उन्होंने दुनियाभर की खुशियां पा ली हों. खुशी के अनमोल क्षण में वे उस सरोगेट मां को बारबार धन्यवाद कर रहे थे जिस ने 9 महीने उन के इस अंश को अपनी कोख में रख कर उन्हें यह खुशी दी थी. आज उन की गोद में जो नन्ही सी जान उन्हें मातापिता बनने की खुशी दे रही थी वह उस सरोगेट मां के प्रयासों की बदौलत संभव हो पाई थी. मेघा और शशांक की तरह सरोगेसी के माध्यम से हर साल हजारों दंपतियों की सूनी गोद भरती है और उन के जीवन में बच्चे की किलकारियां गूंजती हैं.

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