धर्मनगरी हरिद्वार और ऋषिकेश में धर्म और संन्यास की आड़ में यहां के साधुओं का छिपा असली चेहरा चौंकाने वाला है. कई निठल्ले नशे और ऐशोआराम से भरा जीवन जी रहे हैं तो कई कामवासना और अपराध के धार्मिक सागर में गोते लगा रहे हैं. पढि़ए  नितिन सबरंगी की रिपोर्ट.

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 45 किलोमीटर दूर आध्यात्मिक चेतना का केंद्र कही जाने वाली धर्मनगरी ऋषिकेश में कदम रखने के साथ सब से पहले आप की मुलाकात विभिन्न वेशभूषा वाले साधुओं से होगी. जैसेजैसे कदम गंगा किनारे बने आश्रमों, मठों, स्नान घाटों व मंदिरों की तरफ बढ़ेंगे, यह संख्या सैकड़ों में पहुंच जाएगी. सड़कों पर टहलते, विदेशी पर्यटकों से कुछ मांगते या चिलम के जरिए नशीले पदार्थ पीते गेरुए वस्त्रधारी मिल जाएंगे. उन्हें देख कर कई अंधभक्त ऐसे गद्गद हो जाते हैं मानो किसी दिव्य शक्ति से साक्षात्कार हो गया हो. यों भी अंधभक्तों के लिए बाबाओं का बड़ा बाजार मौजूद है.

ऋषिकेश की पहचान धर्मनगरी के रूप में है. इस के बारे में कहा जाता है कि रैभ्यमुनि द्वारा इस स्थान पर इंद्रियों पर जीत अर्जित की गई थी. इसलिए इस स्थान का नाम हृषिकेश पड़ा, लेकिन उच्चारण दोष के कारण बाद में नाम ऋषिकेश हो गया.

गंगा नदी के इर्दगिर्द बसे इस नगर में सैकड़ों आश्रम, प्राचीन व नवनिर्मित मंदिर, मठ, धार्मिक स्थान हैं. देश के अलावा विदेशों से भी लाखों लोग आतेजाते हैं. हर भगवाधारी भले ही साधु न हो, लेकिन यहां साधुओं की बड़ी जमात का डेरा होता है जो पाखंडी, ढोंगी व ठग होते हैं. उन का वेश बेहद प्रभावशाली होता है. भांतिभांति के वस्त्रों में रह कर वे विचरण करते हैं. ऐसे साधु आखिर होते कौन हैं? उन की दिनचर्या को नजदीक से परखने की हम ने कोशिश की.

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