‘कौन कहता है आसमान में सूराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो…’ एक कविता की इन पंक्तियों को बिहार में सदियों से जमी पोंगापंथ की गंदगी को साफ करने में लगे कुछ लोग सच साबित कर रहे हैं. अंधविश्वास और पाखंडी बाबाओं के किले को ढहाने के लिए शुरू की गई छोटीछोटी कोशिशें, धीरेधीरे ही सही, रंग लाने लगी हैं. ऐसे लोगों पर पाखंड के धंधेबाजों ने कई दफे हमले भी किए पर उन्होंने हार नहीं मानी और अपने मकसद में लगे रहे. फिल्म ‘पीके’ ने न सिर्फ देश के सामाजिक और रूढि़वादी तानेबाने पर सीधा प्रहार कर पोंगापंथ के खिलाफ उठ रही आवाजों को मजबूती दी बल्कि मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारा और चर्च के नाम पर सियासी रोटियां सेंकने वालों व पाखंड की दुकान चलाने वालों के चेहरे से नकाब हटाने की पुरजोर कोशिश की.

देशभर में 8 साल से ‘अंधविश्वास भगाओ, देश बचाओ’ मुहिम चलाने वाले बुद्ध प्रकाश भंते कहते हैं कि उन की जिंदगी का मकसद भाग्य, भगवान, मूर्तिपूजा, पंडित, मुल्ला और पाखंडियों की पोल खोलना बन गया है.  भंते कहते हैं कि पंडेपुजारियों ने अपना धंधा चलाने के लिए प्रचारित किया है कि कणकण में भगवान है, पर असलियत यह है कि कणकण में विज्ञान है. आदमी, समाज, देश और दुनिया की तरक्की विज्ञान और तकनीक की बदौलत हो रही है न कि इस के पीछे भगवान नाम की चीज का हाथ है.

बुद्ध प्रकाश भंते तर्कों और विज्ञान के कमालों के सहारे लोगों के जेहन में गहरे बैठे पोंगापंथ को भगाने की मुहिम में लगे हुए हैं. हरियाणा के तहसील सोसाइटी से उन्होंने हाथ की सफाई की विधिवत ट्रेनिंग ली है. वे बिहार अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य रह चुके हैं.  वे स्कूलों, कालेजों, जेलों, पुलिस कार्यालयों, पंचायतों और गांवों में जा कर लोगों को बाबाओं व ओझाओं की करतूतों की पोलपट्टी वैज्ञानिक तरीके से खोलते हैं. वे बताते हैं कि सदियों से हमारा समाज डायन, बलि, टोटका, झाड़फूंक, जादूटोना, तंत्रमंत्र के चक्कर में इस तरह फंसा हुआ है कि उस से छुटकारा मिलने में काफी समय लगेगा. धीरेधीरे ही सही, पर लोग इन ठगों की असलियत को समझने लगे हैं. सांप के काटने से भारत में हर साल डेढ़ लाख लोगों की जान जाती है. इन में 80 फीसदी लोगों की जान झाड़फूंक के चक्कर में फंस कर समय बरबाद करने की वजह से जाती है. जिस आदमी को सांप ने काटा हो, अगर तुरंत उसे अस्पताल ले जा कर सही इलाज कराया जाए तो मरीज की मौत नहीं होगी.

बाबाओं से नजात जरूरी

पब्लिक अवेयरनैस फौर हैल्थफुल अप्रोच फौर लिविंग (पहल) के मैडिकल डायरैक्टर डा. दिवाकर तेजस्वी 14 सालों से स्वास्थ्य के क्षेत्र में फैले अंधविश्वास के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं. एड्स जैसी जानलेवा बीमारी के बारे में समाज में फैले अंधविश्वास को दूर करने के लिए उन्होंने एड्स पीडि़त महिला का जूठा बिस्कुट उस के ही हाथों से खाया और यह साबित करने की कोशिश की कि एड्स छुआछूत की बीमारी नहीं है और किसी मरीज के छूने या उस के साथ खाने से यह नहीं फैलता है. उस वाकये को याद करते हुए दिवाकर कहते हैं कि सेफ सैक्स नहीं करने की वजह से ही मुख्तार और उस की बीवी रामपति एड्स की चपेट में आए. अगर सही समय पर उन का सही इलाज शुरू कर दिया जाता तो उन की जिंदगी तबाह होने से बच सकती थी.

हैल्थ के क्षेत्र में काफी ज्यादा अंधविश्वास फैला हुआ है. पहले हैजा, प्लेग, चेचक आदि को भगवान का प्रकोप माना जाता था. आज कुष्ठ, कैंसर, चेचक आदि को दैवीय प्रकोप मान कर लोग पहले बाबाओं और तांत्रिकों के चक्कर में फंसते हैं. बाबाओं के चक्कर में फंस कर लोग जान और माल दोनों का नुकसान कर डालते हैं और नतीजा सिफर ही रहता है. वे बताते हैं कि आजकल डिप्रैशन यानी अवसाद की बीमारी लोगों में तेजी से फैल रही है, जिसे लोग सिर पर भूत, प्रेत, डायन या बुरी आत्मा का सवार होना मानते हैं. जब कोई इंसान हताशा, निराशा, नाकामी, धोखा आदि मिलने के बाद दिमागी तौर पर परेशान हो कर उलटीसीधी हरकतें या बातें करने लगता है तो उस के घर वाले बीमार आदमी को झाड़फूंक के लिए तांत्रिकों के पास ले जाते हैं. जबकि मानसिक रोगी के न्यूरो मीटर को इलाज के जरिए कंट्रोल या पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है.

अकसर यह दलील दी जाती है कि अनपढ़ लोग ही अंधविश्वास व बाबाओं के चक्कर में फंसते हैं, जबकि उस से ज्यादा खतरनाक पढ़ेलिखे तबके में फैला अंधविश्वास है.इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके डा. अजय कुमार बाबाओं की ठग विद्या के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. खासकर रामदेव के योग और दवाओं से हर तरह की बीमारियों को ठीक करने के दावों के खिलाफ वे मुहिम चलाते रहे हैं. वे कहते हैं कि एड्स, डायबिटीज, ब्लडप्रैशर, गठिया, अंधापन, हार्ट, किडनी, लिवर आदि की बीमारियों को योग से ठीक करने का प्रचार कर कई धूर्त बाबा अपना गोरखधंधा चला रहे हैं. कुछ की अपनी कंपनी के सीईओ और अब राजनेता बनने की उन की कोशिश यही साबित करती है कि आम आदमी को ठग कर पैसा कमाने की उन की भूख लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है. अगर जड़ीबूटी और झाड़फूंक आदि से लाइलाज बीमारियों का इलाज हो सकता तो आज एलोपैथ और पूरी मैडिकल साइंस का भट्ठा बैठ चुका होता. योग के जरिए काफी हद तक बीमारियों को कंट्रोल में रखा जा सकता है, लेकिन बीमारी का इलाज नहीं किया जा सकता. ऐसा दावा करने वाले बीमारों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं.

गंगा मैली क्यों

सफेद बाल और दाढ़ी के साथ सफेद लिबास में उन की शख्सीयत को देख कर ही अंदाजा लग जाता है कि वे कुछ अलग किस्म के इंसान हैं और उन का काम भी औरों से अलग है. नाम तो उन का विकास चंद्र है लेकिन वे गुड्डू बाबा के नाम से मशहूर हैं. वे पूजापाठ के लिए बनी मूर्तियों समेत लावारिस लाशों को गंगा में बहाने के विरोध में पिछले 17 सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं. ‘गंगा बचाओ अभियान’ संस्था बना कर वे साल 1998 से गंगा को पाखंड और आडंबरों से बचाने की मुहिम चला रहे हैं. वे बताते हैं कि 31 मई, 1999 का दिन था और वे गंगा में नाव से घूम रहे थे. अचानक ही पटना मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल के पिछवाड़े में कुत्तों के भौंकने की आवाजें सुनाई पड़ीं. वहां पहुंच कर देखा तो हौस्पिटल के पोस्टमार्टमरूम के पीछे कटीफटी लावारिस लाशें रखी हुई हैं और कुछ लोग उन लाशों को उठा कर गंगा नदी में फेंक रहे हैं. उसी दिन से उन्होंने गंगा को बचाने की लड़ाई शुरू करने की ठान ली. उन की मुहिम की वजह से ही पटना हाईकोर्ट ने उन्हें ‘पब्लिक स्प्रिटेड सिटीजन’ और ‘ह्विसिल ब्लोअर’ का खिताब दिया है. रिलायंस इंडस्ट्रीज उन्हें ‘रीयल हीरो’ की उपाधि दे कर सम्मानित कर चुकी है.

उन्होंने बताया कि गंगा में गंदगी की सब से बड़ी वजह पाखंड और पोंगापंथ हैं. इंसानों की लावारिस लाशें और मरे हुए जानवरों को गंगा में बहाने पर तो लंबी लड़ाई के बाद अदालत ने रोक लगा दी है लेकिन मूर्तियों और पूजापाठ के सामानों को गंगा में फेंकने पर रोक लगाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने की दरकार है. पोंगापंथ के धंधेबाजों ने गंगा को डस्टबिन बना कर रख दिया है. गंगा के किनारे विकास चंद्र के साथ घूमने पर गंगा को साफ रखने की उन की दीवानगी से रूबरू हुआ जा सकता है. रोज नदी के किनारे पड़ी लावारिस लाशों को जमा कर वे जला देते हैं और जहांतहां बिखरे पूजापाठ के सामानों को उठा कर एक जगह जमा करते हैं और मिट्टी में दबा देते हैं. वे कहते हैं कि गंगा की आरती पर हजारोंलाखों रुपया और समय बरबाद किया जाता है पर आरती करने वालों को गंगा की गंदगी नहीं दिखाई देती है. 

कुष्ठ रोग संबंधी भ्रांति

कुष्ठ रोग के बारे में समाज में यह धारणा है कि यह बीमारी गलत काम करने की वजह से होती है या यह पिछले जन्मों के पाप का नतीजा है, यह गलत है. इसे ले कर समाज में पोंगापंथियों ने जम कर भ्रम फैला रखा है. बाबाओं ने यह प्रचार कर रखा है कि गलत काम करने, गलत संबंध बनाने, खून गंदा होने या सूखी मछली खाने से कुष्ठ रोग होता है. जबकि ऐसा कुछ नहीं है, पोंगापंथियों ने अपना धंधा चलाने के लिए इस बीमारी को ले कर भ्रम का जाल फैला रखा है. डा. दिवाकर तेजस्वी कहते हैं कि जिस किसी को कुष्ठ रोग हो जाता है उस मरीज को ज्यादा देखभाल और सहानुभूति की जरूरत होती है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है.  डा. विमल कारक कहते हैं कि यह रोग माइक्रोबैक्टीरियम लेप्री की वजह से होता है. इस बीमारी का सही तरीके से इलाज किया जाए तो मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है. बिहार के आरा रेलवे स्टेशन के पास छोटा सा इलाका है – अनाइठ. इस इलाके में गांधी कुष्ठ आश्रम नाम की संस्था है. उस में कुष्ठ रोगियों के 68 परिवार रहते हैं जिन की आबादी 152 है. उस में रहने वाले सभी लोग अपनी बीमारी से तो तड़प ही रहे हैं पर उन का दर्द बीमारी से कहीं ज्यादा यह है कि उन के घर वालों ने देवता का प्रकोप मान कर उन्हें घर से निकाल दिया और तिलतिल मरने के लिए छोड़ दिया.

भारत में करीब 15 लाख से ज्यादा कुष्ठ रोगी हैं. उन में से 24 फीसदी बिहार में हैं. सूबे में कुष्ठ रोगियों की 40 बस्तियां हैं, जिन की हालत बद से बदतर है. बिहार में प्रति 10 हजार की आबादी पर 1.12 कुष्ठ रोगी हैं. बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में सब से ज्यादा कुष्ठ रोग के मरीज हैं. बिहार अनुसूचित एवं पिछड़ी जाति संघर्ष मोरचा के संयोजक किशोरी दास कहते हैं कि गरीब और पिछड़ों के दर्द को सुनने और उसे दूर करने वाला कोई नहीं है. उन के नाम पर पटना से ले कर दिल्ली तक सत्ता की रोटियां सेंकी जाती रही हैं पर उन के हालात में बदलाव आजादी के बाद से अब तक नहीं हो सका है.

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