कालू लैब्राडोर नस्ल के उस काले कुत्ते का नाम है जो इन दिनों गोरखपुर के मठ की शान है. दान में मिला कालू उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रिय है, इसलिए वह हर समय सुर्खियों में रहता है. नवंबर के तीसरे सप्ताह में जब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर गए तो उन्होंने शाकाहारी कालू को पुचकारते उसे पनीर के टुकड़े भी खिलाए. मंदिर प्रबंधन मानता है कि कालू योगीजी के लिए शुभ है क्योंकि उस के आने के 3 महीने बाद ही वे सीएम बन गए. साबित हो गया कि किसी बड़े आदमी का कुत्ता होना या बनना भी कुत्ते के पूर्वजन्म के संचित पुण्यों का फल होता है.
योगी आदित्यनाथ का विदेशी नस्ल के कुत्ते से ही लगाव क्यों है, यह जरूर शोध का विषय है कि क्या देशी कुत्ते वफादार नहीं होते. अगर सचमुच यह कुत्ता शुभ है तो इसे 24 अक्तूबर के पहले महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के पास भेज कर उन के समय को शुभ बनाया जा सकता था. अब इसे दिल्ली में मनोज तिवारी के पास भेज दिया जाए तो भाजपा दिल्ली में महाराष्ट्र जैसी फजीहत से बच सकती है.
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डिप्रैशन में हैं मायावती
‘कुछ न कुछ किया कर, पजामा फाड़ कर सिया कर’ वाली कहावत पर अमल करते बसपा प्रमुख मायावती इन दिनों पहाड़ से दिन गुजारने के लिए थोक में पदाधिकारियों का निष्कासन कर रही हैं. उन्होंने नवंबर में एकएक कर कई निष्ठावानों को यों ही चलता कर दिया, तो इस पर बचेखुचे बसपाई हैरान हैं कि ऐसे तो एक दिन पार्टी में अकेली बहनजी ही बचेंगी.
दलितों की राजधानी कहे जाने वाले आगरा में निष्कासन की गाज ज्यादा गिरी. इस जिले से कभी बसपा ने भाजपा को दौड़ से बाहर ही कर दिया था. मायावती क्यों अपने गढ़ ध्वस्त कर रहीं हैं, इस का जवाब तो वही बेहतर दे सकती हैं, शायद वे दूसरों को इस का श्रेय नहीं देना चाहतीं. लेकिन बसपा के एक जमीनी नेता देवेंद्र कुमार चिल्लू की मानें तो जो पार्टी के लिए पैसों या चंदे का इंतजाम नहीं कर पाता उस पर अनुशासनहीनता का आरोप लगा कर बाहर कर दिया जाता है और जो दे देता है, उसे फिर अंदर कर लिया जाता है.
पेरियार इफैक्ट
रामास्वामी पेरियार घनघोर नास्तिक थे जिन्होंने 70 के दशक तक ब्राह्मण और पंडापुरोहितवाद के चिथड़े ऐसेऐसे तर्कों से उड़ा कर रख दिए थे कि पूरे दक्षिण भारत, खासतौर से तमिलनाडु, के दलित उन्हें मसीहा मानने लगे थे. अभी भी उन के अनुयायी खासी तादाद में हैं. योगगुरु कहे जाने वाले रामदेव को जाने क्या सू झी कि उन्होंने बैठेठाले पेरियार को बौद्धिक और दलित आतंकवादी कह दिया. कह तो दिया, लेकिन बाद में दलितों की प्रतिक्रिया देख कर वे लड़खड़ा भी गए.
जगहजगह रामदेव के खिलाफ प्रदर्शन हुए और पेरियारवादियों ने पतंजलि के उत्पादों के बहिष्कार की भीष्म प्रतिज्ञा भी कर डाली. गरीबी में गीला आटा इसी को कहते हैं. रामदेव पहले से ही अपनी कंपनी पतंजलि के घाटे को ले कर हैरानपरेशान हैं. लोग उन के उत्पाद खरीदना तो दूर की बात, उन के इश्तिहार देखने से भी कतराने लगे हैं. ऐसे में पेरियार की अतार्किक निंदा उन का घाटा और बढ़ाएगी.
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संसद से विरक्ति
अभी कुछ दिनों पहले ही मध्य प्रदेश कांग्रेस की एक दिग्गज नेत्री शोभा ओ झा ने भोपाल की साध्वी सांसद प्रज्ञा सिंह भारती को पागल तक कह डाला था. इस पर कुछ दिन प्रज्ञा शांत रहीं, लेकिन लोकसभा में वे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कह बैठीं तो इस पर खासा बवाल मच गया. बतौर सजा, भाजपा ने उन्हें रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति से हटा दिया. इधर, विपक्ष इस मांग पर अड़ा रहा कि प्रज्ञा को लोकसभा से ही बाहर कर दिया जाए.
सोचना बेमानी है कि प्रज्ञा भारती जैसी सांसद से भाजपा को कोई परेशानी होती है. उलटे, उन से इस तरह की बातें कहलवाई जाती हैं ताकि आम लोगों की प्रतिक्रिया देखी जा सके कि अब और कितने लोगों ने गोडसे दर्शन से इत्तफाक रखा. हिंदुत्व के पैरोकार सोशल मीडिया पर खूब प्रचार करते रहते हैं कि गोडसे ने गांधी की हत्या क्यों की थी. प्रज्ञा भारती तो एक बहुत बड़े व दीर्घकालिक षड्यंत्र का हिस्सा या मोहरा भर हैं.