लेखक- रोहित और शाहनवाज
होशियारपुर म्युनिसिपल कारपोरेशन से भाजपा को मिली करारी हार के तथ्य और जानकारियां जुटाने के बाद हमारा अगला पड़ाव पंजाब के मोगा म्युनिसिपल कारपोरेशन की और है. यह तय है कि हौशियारपुर नगर निगम का जायजा लेने के बाद भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत के जो मुख्य समीकरण सामने आए हैं, वह एक लम्बे समय से भाजपा के इस इलाके में दबदबे के बावजूद, भाजपा पार्टी के इस तरह के प्रदर्शन की कई चीजें उजागर करती हैं. यहां चुनाव में भाजपा को मिली हार कहीं न कहीं भाजपा की ही वह रणनीति रही जिसे पार्टी पिछले कुछ सालों से ढोती आ रही थी. भाजपा द्वारा अपने कैंडिडेट को आगे करने की बजाय प्रधानमंत्री मोदी को सामने रखना इस जगह से भाजपा की हार का मुख्य वजह बनी.
भले भाजपा की हार के केंद्र में किसान आन्दोलन बड़ी वजह बन कर उभरा हो लेकिन मुख्य यह है कि यहां आम शहरी लोगों के जहन में पिछले 7 सालों से चलता आ रहा केंद्र का वह कार्यकाल रहा जिसे भाजपा ने चलाया था और बुरी तरह असफल साबित हुआ. वहीँ केंद्र के द्वारा बनाए वह तमाम तरह की आर्थिक नीतियों व जुमलों ने यहां के लोगों, खासकर युवाओं को काफी निराश किया.ये
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होशियारपुर इस बात का गवाह रहा की यहां भाजपा कैंडिडेट ने भाजपा को नहीं, बल्कि मोदी ने भाजपा कैंडिडेट को हराया. इस का सबूत यहां के लोगों से बात कर के मिला जिन्होंने मोदी के केंद्र में बनी सरकार को हराने के मकसद से अपना मत दिया था.
मोगा पहुंचने के लिए हम ने होशियारपुर के भगवान वाल्मीकि इंटरस्टेट बसअड्डे से जालंधर की बस पकड़ी, धुंध के बीचोंबीच लगभग 2 घंटे के सफर के बाद हम सुबह 9 बजे जालंधर पहुंचे. वहां पहुंचे तो चाय पीने के लिए हम चाय की टपरी पर गए. वहां हमारी मुलाक़ात 52 वर्षीय मोहन से हुई. मोहन बिहार की राजधानी पटना से लगभग 150 किलोमीटर दूर …. से है. वह पिछले 22 सालों से अपने परिवार के साथ जालंधर शहर के मिट्ठू बस्ती में रहते हैं जो कि एक स्लम एरिया है.
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जिस दौरान हमारी मोहन से मुलाक़ात हुई वह रोज की तरह बेचने वाले चने का इन्तेजाम कर रहे थे. एक हाथ में बाल्टी थामी हुई थी और हमारी आपस की बात सुन कर बोले, “क्या किसान मामले का निपटारा हो गया?” हमारे लिए यह हैरानी की बात थी कि किसी व्यक्ति ने एकाएक हम से यह सवाल पूछा. हम ने उन से कहा, “अभी तो नहीं हुआ, अब क्या जाने कब हो. वैसे आप यह क्यों पूछ रहे हैं?”
मोहन ने जवाब दिया कि, “किसान आन्दोलन के कारण हमारा धंधा बुरी तरह से पिट रहा है.”
“ऐसे क्यों?”
वह कहते हैं, “मामला यह है कि आजकल शहरों में भीड़ अधिक नहीं हो रही. पिंड के लोग शहरों में बहुत कम आ रहे हैं. मैं रोड़वेज बसों में चने बेचने का काम करता हूं. लेकिन आजकल कमाई बिलकुल नहीं हो रही है.”
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मोहन आगे कहते हैं, “मैं रोज 400 चना, प्याज, टमाटर, मसाला, नींबू चाट बनाने का सामान खरीदता हूं. लेकिन इस हिसाब से कमाई बिलकुल भी नहीं हो रही. मेरा लगभग 700-800 का सामान ही बिक पाता है. जिस में से 150 रूपए रूपए तो ठेकेदार तो देने ही पड़ते हैं चाहे सामान बेचो या ना बेचो. फिर हमारे पास सिर्फ 250-300 रूपए की कमाई हो पाती है.”
मोहन कहते हैं, “इस बार की केंद्र में सरकार सब से खराब है. हर समय महंगाई रहती है. अब देखो प्याज की कीमत आजकल 50 रूपए किलो चल रही है. कोई भी सब्जी लो सब महंगा रहता है. मैं परिवार के साथ किराए पर रहता हूं, मिट्ठू बस्ती झुग्गी इलाका है, वहां भी किराए 3-4 हजार रूपए है. हम गरीब लोग तो महंगाई में मारे जाते हैं.”
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मोहन बताते हैं, “जिस ठेकेदार (राकेश) के नीचे मैं काम करता हूं, वह अब 11-12 साल के बच्चों को नेपाल से काम करने के लिए यहां उठा लाया है. वह बच्चे भी हमारी तरह चलती बस में सामान बेचने के लिए चढ़ते उतरते हैं. कोई मास्क बेचता है, कोई पानी की बोतल, तो कोई मूंगफली समोसा. वे बच्चे गांजा-चरस पीते हैं. अब यह उन के लिए कितना खतरनाक है कि वह इतने छोटे हो कर बसों में ऐसे सामान बेचते हैं.”