परम पूज्य, परम आदरणीय, प्रभुतुल्य श्री नरेंद्र मोदी जी,

सादर चरण तो चरण तलुवा स्पर्श भी

सबसे पहले तो मैं यह बता कर आपको बेफिक्र (वैसे आप किसी बात या चीत की फिक्र करते ही कहां हैं) कर दूं कि मैं कोई जिद्दी या बुद्धिजीवी नहीं बल्कि एक औसत से भी गई गुजरी बुद्धि बाला देहधारी भारतीय हूं जो आप की भक्ति की अनिवार्य शर्त है. इस पात्रता के नाते मैं अपनी व्यथा व्यक्त कर रहा हूं कि वे 49 कथित बुद्धिजीवी जिन्होंने आप को पत्र लिखने की बेहूदी हरकत की घोर राष्ट्र द्रोही हैं.

हे श्रेष्ठों में श्रेष्ठ, वे घोर अज्ञानी नहीं जानते कि ऐसे पत्रों से आप के कानों में जूं तक नहीं रेंगती इसलिए आप उन्हें मक्खी, मच्छर या खटमल (जैसे परजीवी जो बौद्धिक संकर्मण फैलाते रहते हैं) समझ कर क्षमा कर देना अब आखिर वे जैसे भी हैं हैं तो जन्मना आर्य ही.

यहां आपके श्री चरणों में दंडवत और करबद्ध प्रार्थना है कि आप इस आर्य और अनार्य के शाब्दिक फेर में मत पड़ना यह सब इतिहासकारों की चालाकी है इसलिए आप उन भूतपूर्व मूर्खों को भी क्षमा कर देना. इससे आपकी महानता में और कुछ चांद लग जाएंगे.

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हे इंद्रों के इन्द्र, वे मूर्ख जो मौब लिंचिंग पर चिंता जो दरअसल में खीझ है जता रहे हैं वे इस महान राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से बाकिफ हैं कि निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सब के सब मिथ्या हैं और कुछ स्वार्थी मानवों या दानवों कुछ भी कह लें, इनके द्वारा निर्मित और रचित हैं. न्याय कभी चार दीवारी और बंद कमरों में नहीं होता उसके लिए तो रण भूमि ही उपयुक्त है. जहां न देर होती और न ही अंधेर होता. जिन्हें वे अल्पसंख्यक और दलित कह रहे हैं वे पशुतुल्य जीव हैं इसलिए उन्हें औन द स्पौट दंड मिलना ही चाहिए .

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