देश की सबसे बड़ी अदालत ने बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों को देखते हुए देश भर में विशेष पाक्सो कोर्ट बनाने का आदेश दिया है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली बेंच ने 25 जुलाई 2019 को इस मामले की सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार को 60 दिनों के भीतर ये विशेष अदालतें स्थापित करने का आदेश दिया है. बेंच में जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस भी थे. कोर्ट ने कहा है कि जिन जिलों में बच्चों के उत्पीड़न, शोषण और बलात्कार के सौ से ज्यादा मामले दर्ज हैं, वहां साठ दिनों के भीतर विशेष पाक्सो कोर्ट बनाया जाए. इन विशेष अदालतों के गठन का खर्च केन्द्र सरकार वहन करेगी. यह अदालतें सिर्फ बच्चों के साथ हुए यौन अपराधों के मामले की सुनवाई करेंगी. कोर्ट ने इस मामले में सख्ती बरतते हुए यह आदेश भी जारी किया है कि चार हफ्तों के भीतर इसकी प्रगति रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल हो. कोर्ट ने राज्यों के मुख्य सचिवों को भी निर्देश दिया है कि वे अपने राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में ऐसे मामलों की फोरेंसिक रिपोर्ट समय पर भिजवाना सुनिश्चित करें. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को इन अदालतों के गठन के लिए धन उपलब्ध कराने, अभियोजकों एवं अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति करके विशेष अदालतें स्थापित करने की दिशा में होने वाली प्रगति की रिपोर्ट 30 दिनों के भीतर प्रस्तुत करने का आदेश भी सुनाया है. इस मामले में अगली सुनवाई अब 26 सितम्बर 2019 को होगी.

गौरतलब है कि बच्चों के साथ बढ़ते यौन अपराधों को देखते हुए वर्ष 2012 में संसद ने विशेष कानून ‘प्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल आफेंसेस’ यानी पाक्सो पारित किया था. इसके तहत इस तरह के मामलों की जांच के लिए विशेष पुलिस टीम बनाने, हर जिले में विशेष कोर्ट के गठन जैसे प्रावधान थे, लेकिन देश के ज्यादातर जिलों में इन पर अमल नहीं हो पाया. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह बात सामने आयी थी कि पूरे देश की निचली अदालतों में पाक्सो अधिनियम से जुड़े करीब 112628 मामले लम्बित पड़े हैं. जिसमें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 30883 मामले लम्बित हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र समेत गोवा, केन्द्र शासित प्रदेशों दीव एवं दमन, दादर एवं नगर हवेली में करीब 16099 मामले लम्बित हैं. इसके बाद मध्य प्रदेश में 10117, पश्चिम बंगाल में 9894, ओडिशा में 6849, दिल्ली में 6100, केरल व केन्द्र शासित प्रदेश लक्ष्यद्वीप में 5409, गुजरात में 5177, बिहार में 4910 और कर्नाटक में 4045 मामले लम्बित हैं. यह संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती ही जा रही है. रजिस्ट्री के माध्यम से जुटाये गये आंकड़े आश्चर्यचकित करने वाले हैं. वर्ष 2019 की शुरुआत से छह महीने के भीतर ही पॉक्सो के तहत देश भर में 24212 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं. इन मामलों में अब तक मात्र 6449 ही अदालत की पटल  पर सुनवाई के लिए पहुंचे हैं.

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बच्चों से बलात्कार और यौन शोषण की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट काफी गम्भीर है और उसने खुद ही संज्ञान लेकर ज्यादा अपराध वाले जिलों में विशेष पाक्सो अदालतों के गठन का आदेश दिया है. कोर्ट ने देश के हर जिले में लम्बित पाक्सो मामलों का ब्योरा भी मांगा है.

वहीं मंगलवार को दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर राज्यसभा ने बच्चों के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न के दोषियों को मौत की सजा के प्रावधान पर भी मुहर लगा दी थी. राज्यसभा ने बच्चों को यौन अपराध से संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2019 पारित कर दिया है. इसमें अति गम्भीर अपराध के आरोपी को मौत की सजा का प्रावधान है. 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार या छेड़छाड़ इस विधेयक के दायरे में है. यह विधेयक लड़के और लड़की दोनों को ही समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है. अब इस विधेयक को लोकसभा में पारित कराया जाएगा. महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने मंगलवार को राज्यसभा में पोक्सो विधेयक पेश किया था और सभी से समर्थन मांगा था.

इस पर चर्चा करते हुए तृणमूल सांसद डेरेक ओब्रायन ने अपने बाल्यकाल में बस में उनके साथ हुई छेड़छाड़ का जिक्र किया और कहा कि कई मामलों में शिकायतें ही नहीं होती हैं. सरकार को इस अपराध से सख्ती से निपटने के लिए कठोर प्रयास करने होंगे. कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने भी कहा कि वह विधेयक का स्वागत करते हैं लेकिन कड़े प्रावधान भी ऐसी घटनाएं नहीं रोक पा रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के पास भी 2016 के बाद से बच्चों के यौन उत्पीड़न के अपराधों का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. अन्नाद्रमुक की नेता विजिला सत्यनाथन ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए इन घिनौने अपराध के दोषियों का कैमिकल कैस्ट्रेशन करने की भी मांग की. सपा सांसद जया बच्चन ने भी समर्थन किया. उन्होंने कहा कि सिर्फ कानून में संशोधन से समस्या का हल नहीं निकलेगा इसके लिए तय समय में जांच और सजा होना भी जरूरी है. साथ ही उचित मुआवजा मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद कानून सख्त किया गया लेकिन ऐसी घटनाएं फिर भी नहीं रुकीं. अन्य दलों के नेताओं ने भी विधेयक का समर्थन किया.

सबसे ज्यादा चिन्ता की बात यह है कि बच्चों के प्रति हुए यौन अपराधों में सजा की दर बहुत कम है. ज्यादातर मामले लम्बे समय तक अदालतों में चलते हैं और इस बीच गवाहों और सबूतों की अनदेखी के चलते वे नष्ट हो जाते हैं. वहीं पैसे के जोर पर गवाहों को खरीद लिया जाता है. फोरेंसिक रिपोर्टस बदलवा दी जाती हैं. इसी चिन्ता के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने पाक्सो विशेष कोर्ट की संख्या बढ़ाने का आदेश पारित किया है, ताकि अपराधियों को सबूतों से छेड़छाड़ का मौका न मिल सके.

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हालांकि राज्यसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने मंगलवार को ही ऐसे मामलों में सख्ती और तेजी से निपटने के लिए 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का निर्णय लिए जाने की बात कही थी. उन्होंने स्पष्ट किया था कि जरूरत इसलिए है क्योंकि विभिन्न अदालतों में ऐसे 1.66 लाख मामले लंबित हैं. अब महिला एवं बाल विकास मंत्रलय ने पोक्सो कानून में संशोधन कर बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वालों को सख्त सजा देने का प्रावधान किया है. दोषियों को 20 साल से लेकर उम्रकैद और मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया है. कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया गया है ताकि सिर्फ बच्चियों को ही नहीं, बल्कि बालकों को भी यौन उत्पीड़न से बचाया जा सके. इसके अलावा कानून में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की परिभाषा भी तय की गयी है जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी की फोटो, वीडियो, कार्टून या फिर कंप्यूटर जेनेरेटड इमेज को इसके तहत दंडनीय अपराध माना गया है. ऐसी सामग्री रखने वाले व्यक्ति पर 5000 से लेकर 10000 रुपये तक के जुर्माने के दंड की व्यवस्था की गयी है. ऐसी सामग्री का व्यवसायिक इस्तेमाल करने वाले को जेल की सख्त सजा भी भुगतनी होगी. कानून में बच्चों का यौन उत्पीड़न करने के उद्देश्य से उन्हें दवा या रसायन आदि देकर जल्दी युवा करने को भी गैर जमानती अपराध बना दिया गया है, जिसमें पांच साल तक की कैद का प्रावधान है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुख्य बिंदु

  • पाक्सो एक्ट के प्रावधान के मुताबिक बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की जांच के लिए हर जिले में विशेष पुलिस टीम का गठन हो.
  • हर जिले में विशेष पाक्सो अदालत बनायी जाए. कोर्ट का माहौल बच्चों के अनुकूल रखा जाए.
  • पाक्सो मामलों को देखने के लिए अलग से सरकारी वकीलों की नियुक्ति हो. ये वकील बच्चों के प्रति संवेदनशील हों. इसके लिए उन्हें विशेष प्रशिक्षण मिले.
  • पाक्सो कोर्ट में सपोर्ट स्टाफ हो, जो बाल मनोविज्ञान को भलीभांति समझता हो. ये स्टाफ कोर्ट परिसर में अलग से बने कमरे में पीड़ित बच्चे से बयान ले. जज और वकील वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इसे देखें.
  • जांच में तेजी लाने के लिए हर जिले में फोरेंसिक टेस्ट लैब हो. ये लैब सिर्फ बच्चों के यौन शोषण से जुड़े सबूतों की जांच करे.
  • मुकदमों का निपटारा साल भर के भीतर हो.
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