उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के लोहारी गाँव का 25 वर्षीय सूरज वर्मा आगरा की जिस प्राइवेट कंपनी में काम करता था वह लॉकडाउन के चलते बंद हो गई तो वह परिवार सहित अपने गाँव लोहारी वापस आ गया. लोहारी में भी उसे कोई काम नहीं मिला तो उसने 14 मई को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. सूरज की शादी कोई सवा साल पहले कोर्रम गाँव की रजनी से हुई थी इन दोनों को इस साल के शुरुआत में ही एक बेटी हुई थी जो 8 दिन बाद ही गुजर गई थी लेकिन लॉकडाउन इनकी ज़िंदगी में उससे भी बड़ा कहर बनकर आया.
सूरज के पिता रामपाल वर्मा ने पुलिस को दिये अपने बयान में माना भी कि गाँव वापस आने पर भी सूरज को कहीं काम नहीं मिला था जिससे वह तनाव और परेशानी मे रहने लगा था यह पूरा परिवार ही मजदूरी करता है हालांकि इस परिवार के पास चार बीघा जमीन भी है लेकिन जाहिर है उससे पूरे परिवार की गुजर नहीं हो सकती . सूरज ने लोहारी आकर काम के लिए हाथ पाँव मारे लेकिन वह नहीं मिला तो उसने रजनी की साड़ी का फंदा बनाकर घर के खपरेल से लटककर जान दे दी. यह सूरज के यूं मरने की उम्र नहीं थी देखा जाये तो उसकी ज़िंदगी की तो अभी कायदे से शुरुआत ही नहीं हुई थी.
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लॉकडाउन से पैदा हो रही बेरोजगारी से ख़ुदकुशी का यह पहला या आखिरी मामला नहीं था बल्कि यह अब रोज रोज की बात हो चली है. 8 मई को मेरठ के नकारजान मोहल्ले के नईम ने भी सूरज की तरह फांसी लगाकर जान दे दी थी. मजदूरी कर पेट पालने बाला नईम भी लॉकडाउन के बाद काम न मिलने से परेशान चल रहा था. ख़ुदकुशी करने से पहले उसने अपनी माँ से कुछ पैसे मांगे थे लेकिन माँ की जमापूंजी भी खत्म हो गई थी इसलिए उन्होने भी हाथ खड़े कर दिये तो नईम को लगा कि अब जीना बेकार है सो उसने मौत को गले लगा लेना बेहतर समझा.
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