आम तौर पर महिलाएं दो हालातों में ही सर मुड़वातीं हैं, पहला जब वे विधवा होतीं हैं तब और दूसरे तब जब सन्यासिन बनतीं हैं. पहली स्थिति अब हालांकि पहले की तरह बाध्यता नहीं रही है, लेकिन मध्यप्रदेश की अध्यापिकाओं की यह मजबूरी हो गई थी कि सरकार का ध्यान खींचने उन्होंने अपने सौन्दर्य के पर्याय लंबे घने केशों पर उस्तरा चलवा कर सूबे में हाहाकार मचा डाला. 13 जनवरी को भोपाल की सड़कों पर रथ ही रथ दौड़ रहे थे, एक सरकारी एकात्म यात्रा के और दूसरे अध्यापकों के जो प्रदेश के कोने कोने से आए थे.
भोपाल के जंबूरी मैदान पर हजारों की तादाद में अध्यापक इकट्ठा हुये थे. इनकी प्रमुख मांगे थीं कि अध्यापकों का संविलियन शिक्षा विभाग में किया जाये, अध्यापकों को सातवां वेतनमान दिया जाये, बंधनमुक्त तबादला नीति बनाई जाए और चाइल्ड केयर लीव सहित अध्यापकों को अनुकम्पा नियुक्ति दी जाये. सरकार अध्यापकों की इन मांगो पर ध्यान नहीं दे रही थी, लिहाजा इस दफा उन्होंने सर मुड़वा कर संकेत दे दिया कि अगर मांगे नहीं मानी गईं तो वे सर कटवा भी सकती हैं.
किसी को उम्मीद नहीं थी कि अध्यापिकाएं भी सामूहिक मुंडन करवा सकती हैं. जैसे ही आजाद अध्यापक संघ की प्रांताध्यक्ष शिल्पी सीवान ने मंच पर आकर मुंडन कराया, तो फिर देखते ही देखते सर मुंडाने वालों की लाइन सी लग गई, शिल्पी के बाद अलीराजपुर की सीमा क्षीरसागर, रायसेन की रेणु सागर और जबलपुर की अर्चना शर्मा ने भी निर्विकार भाव से बाल उतरवा दिये. आजाद अध्यापक संघ के कार्यवाहक प्रांताध्यक्ष शिवराज वर्मा सहित सौ से भी ज्यादा शिक्षकों ने बारी बारी से मुंडन कराया, तो माहौल तिरुपति बालाजी के मंदिर सरीखा हो गया जहां मन्नत मांगने आए श्रद्धालुओं में सर घुटवाने गजब का जोश रहता है.