दुनिया में अत्याचारों और उन के प्रतिकार संघर्ष के किस्से, कहानियां तो सब ने बहुत सुनीपढ़ी होंगी, लेकिन क्या कोई विश्वास करेगा संसार में यहूदी कौम ऐसी है जिस ने एकदो सदी नहीं, बल्कि 3,500 सालों तक अत्याचार सहा है और अपने अदम्य साहस, संघर्ष, बलिदान के दम पर आज इसराईल देश के रूप में एक मिसाल कायम कर दी है. वह देश जिसे दुनिया में सब से स्वाभिमानी, सब से खतरनाक माना जाता है. जो कभी कुछ कहता नहीं, बल्कि कर के दिखाता है. वह ईंट का जवाब पत्थर से देता है.
यहूदियों के जीवट, अदम्य साहस, असंभव को संभव करने का जज्बा, दृढ़ इच्छाशक्ति और राष्ट्रप्रेम की परिणति है कि 14 मई, 1948 को यहूदियों का स्वतंत्र राष्ट्र कायम हुआ जो आज पूरी दुनिया के लिए उदाहरण बन गया है.
आक्रमक तेवरों का इसराईल इतना खतरनाक क्यों बना, इस की वजह उस के अतीत के संघर्ष की गाथाओं में छिपी है. हर राजवंश ने यहूदियों को उस की धरती से बारबार खदेड़ कर दरदर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया. नरसंहार का क्रम तभी रुका जब स्वतंत्र इसराईल का अस्तित्व स्थापित हुआ.
याकूब के एक पुत्र कानाम यहूदा अथवा जूडा था. सो उस के वंशज यहूदी अथवा ज्यूज कहलाए. यहूदियों के अतीत की जानकारी उन के धर्मग्रंथों विशेष कर बाइबिल के पूर्वार्ध ओल्ड टैस्टामैंट से मिलती है. एक रोचक तथ्य देखें, येरुशलम 3 धर्मों यहूदी, ईसाई और इसलाम के उदय से जुड़ा है. इन तीनों धर्मों को संयुक्त रूप से इब्राहिमी धर्म भी कहा जाता है. इस का कारण इब्राहीम का तीनों धर्मों के मूल से जुड़ा होना है. अब्राहम को अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण उर (सूमेरियन सभ्यता का प्राचीन नगर) से निर्वासित हो आजीवन संघर्ष झेलना पड़ा. उस के बाद हजरत मूसा यहूदियों के सब से महान स्मृतिकार हुए. उन्होंने 1500 ई.पू. में असीम कष्ट संघर्ष सहन कर टुकड़ों में बंटी यहूदी जाति, जो अत्याचार सहती आ रही थी, को मिला कर एक जगह फिलिस्तीन में बसा दिया.