14 फरवरी से पहले नरेन्द्र मोदी चुनावी विकेट पर कमजोर दिख रहे थे. विपक्षी पार्टियों की एकजुटता ने उनकी धुकधुकी बढ़ा रखी थी. कांग्रेस महासचिव का पद ग्रहण करके प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में पदार्पण ने आसन्न चुनावों में अपनी जीत को लेकर भाजपा खेमे में, और खासतौर पर शाह-मोदी गैंग में खलबलाहट पैदा कर रखी थी. चिन्ता इस बात को लेकर थी कि अब वह कौन सा मुद्दा हो सकता है, कि मोदी को एक बार फिर देश के गौरव, देश के हीरो के रूप में प्रोजेक्ट किया जा सके. भाजपा के पक्ष मेंं जनता का धु्रवीकरण भाजपा की सबसे बड़ी चिन्ता थी. मोदी-राज में लगातार बढ़ती मंहगाई, नोटबंदी के तानाशाही फरमान के कारण निम्न और मध्यम वर्ग की बेहिसाब बढ़ी परेशानियां, 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी-दर, सबसे ज्यादा भुखमरी-कुपोषण से आम जनता का मोदी से मोहभंग हो रहा था. व्यापारी वर्ग जीएसटी से परेशान था. अधिकारी वर्ग आरबीआई से सरकार की टक्कर, राफेल घोटाला, देश की बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई में शीर्ष अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का कलंक और जांच एजेंसियों पर सत्ता का दबाव देख-देश कर खिन्न था. देश भर में किसान-मजदूर अपनी बढ़ती समस्याओं को लेकर आन्दोलनरत था. हिन्दुत्व के नाम पर गुण्डागर्दी, गौ-रक्षा के नाम पर नफरत फैलाने और कत्लो-गारत की खुली छूट से अल्पसंख्यक समुदाय भाजपा से दूरी बना चुका था. छात्रों-युवाओं-किसानों-मजदूरों के आन्दोलनों के दमन तथा विरोध में बोलने वाले बुद्धिजीवियों का गला घोंटने की हरकतें मोदी-सरकार के जनविरोधी चरित्र को नंगा कर चुकी थीं और राम मन्दिर मामले में साम्प्रदायिक जुनून पैदा करने के सारे दांव भी फुस्स पटाखा साबित हो चुके थे. मोदी-शाह के कारनामों के चलते संघ भी उखड़ा-उखड़ा नजर आ रहा था, तो नितिन गडकरी भी गाहे-बगाहे तंज कसने और बातों के बाण छोड़ने से बाज नहीं आ रहे थे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उग्र तेवरों ने मोदी की नींद उड़ा रखी थी, तो इधर प्रियंका गांधी वाड्रा के प्रचार-कार्यक्रमों से मोदी-शाह घबराये हुए थे. इन तमाम घटनाओं और आरोपों में घिरी मोदी-सरकार के आगे लोकसभा चुनाव में सीटें बचाना मुश्किल प्रतीत हो रहा था कि इसी दौरान 14  फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमला हो गया और इसके बाद के घटनाक्रम ने मोदी-शाह की चुनावी चिन्ताओं को लगभग दूर कर दिया. कहना गलत न होगा कि 14 फरवरी से लेकर 1 मार्च तक के घटनाक्रम से लोकसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मोदी के हाथ तुरुप का पत्ता लग गया है, मगर साथ ही यह डर भी बना हुआ है कि कहीं ममता बनर्जी की वजह से यह पत्ता उनके हाथ से फिसल न जाये.

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