कोलकाता में हौस्पिटल के भीतर एक ट्रेनी डाक्टर की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या ने देश भर के डॉक्टर्स को आंदोलित कर रखा है. लम्बे समय तक डाक्टर्स हड़ताल पर रहे. ये और बात कि देश भर में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते इलाज ना मिलने पर अनेक मरीज असमय मौत के मुँह में समा गए. उनको समय पर इलाज मिल जाता तो शायद जान बच जाती मगर डॉक्टर्स किसी मरीज को देखने के लिए राजी ही नहीं थे. लाखों ऑपरेशन निलंबित हुए. कैंसर तक के मरीजों को अस्पतालों से लौटा दिया गया.
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ऐसा भी नहीं हुआ कि डाक्टर्स की हड़ताल के चलते देश में महिलाओं से छेड़छाड़, बलात्कार और हत्या की घटनाएं रुक गयीं. बिलकुल नहीं. वे उसी रफ़्तार से जारी रही जैसे पहले हो रही थीं. आगे भी ऐसे ही होती रहेंगी, क्या निर्भया केस के बाद समाज में महिलाओं के प्रति सोच में कोई बदलाव आया? क्या महिलाओं के प्रति अपराध का ग्राफ कम हो गया? नहीं, उलटा बढ़ गया क्योंकि कानून व्यवस्था को मजबूत करने की नीयत भारतीय जनता पार्टी सरकार में नहीं है. अपराध नहीं होंगे तो गैर भाजपाई सरकारों के खिलाफ जनता को भड़काएंगे कैसे? उकसायेंगे कैसे? सड़क पर कैसे लाएंगे?
कोलकाता में हुई हालिया घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी को ममता सरकार को हिलाने का बहुत बढ़िया मौक़ा हाथ लग गया है और वह लगी है ममता सरकार के खिलाफ देश भर की जनता को सड़क पर उतारने में. ममता बनर्जी की उन दो चिट्ठियों के जवाब का कोई अता-पता नहीं जो उन्होंने बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों पर कड़ी सजा की मांग करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी थीं.