गंभीर अपराध के आरोपियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. अदालत ने राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण की तुलना कैंसर से की,हालात बेहद विनाशकारी होने की बात कही लेकिन अपनी लक्ष्मणरेखा का हवाला देते हुए कानून बनाने का जिम्मा संसद के पाले में डाल दिया. हालांकि, हर उम्मीदवार का क्रिमिनल रिकॉर्ड साफ शब्दों में जाहिर करने के कई निर्देश जारी किए.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि राजनीति का अपराधीकरण और भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र की जड़ को दीमक की तरह कमजोर कर रहा है. इस खतरे को रोकने के लिए जरूरी है कि संसद कानून बनाए ताकि क्रिमिनल केस का सामना करने वाले सियासी गलियारों में न घुस पाएं और राजनीतिक में अपराधीकरण का खात्मा हो सके. कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में नागरिकों को निसहाय की तरह पेश कर भ्रष्टाचार के प्रति मौन, बहरा और चुप रहने को मजबूर नहीं किया जा सकता. राष्ट्र बेसब्री से इस बात का इंतजार कर रहा है कि विधायिका और कानून बनाने वाले खुद इस बारे में आगे आएं और कानून बनाएं.

मौजूदा कानून के तहत, पांच साल या उससे ज्यादा की सजा वाले अपराध में दोषी साबित होने पर ही चुनाव लड़ने से रोकने का नियम है. याचिका में ऐसे मामलों में आरोप तय होते ही चुनाव लड़ने के अयोग्य करार देने की मांग की गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने का काम संसद पर छोड़ दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर नागरिक का ये अधिकार है कि वह चुनावी मैदान में उतरे लोगों के पिछले रिकॉर्ड और आपराधिक इतिहास की जानकारी रखें. जब उम्मीदवार अपने बारे में सभी जानकारियां पूरी तरह से उजागर करेंगे तो चुनाव ज्यादा निष्पक्ष और स्वतंत्र होंगे.

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