सामाजिक, आर्थिक क्रांतियों का अगुवा फ्रांस एक बार फिर आंदोलन की वजह से सुर्खियों में है. फ्रांस में पिछले 3 हफ्तों से सरकार के खिलाफ जारी हिंसक प्रदर्शनों से राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है. युवा सड़कों पर हैं. प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है. विश्लेषक गृहयुद्ध जैसे हालात बता रहे हैं. फ्रांस में इस तरह की हिंसा कई दशकों बाद हुई है.

आंदोलन की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है जब बेकाबू हो रही हिंसा के चलते राष्ट्रपति मैक्रोन को आपात बैठक बुलानी पड़ी और देश में आपातकाल लगाने के विकल्प तक पर सोच लिया गया है.

फ्रांस का यह आंदोलन पैट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि, महंगाई और टैक्सों में बढ़ोतरी को ले कर लोगों के गुस्से का नतीजा है. इस आंदोलन का कोई नेता नहीं है. सोशल मीडिया पर सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना शुरू हुई और लोग विरोध में सड़कों पर उतरने लगे.

2 दिसंबर को पेरिस की सड़कों पर हिंसा उग्र हो गई. दर्जनों गाडि़यां और सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया गया. प्रदर्शन में 130 लोग घायल हो गए. येलो वेस्ट नाम से चल रहे आंदोलन में अब तक साढ़े तीन से अधिक लोग शामिल हो चुके हैं.

सरकार की नीतियों का सीधा असर आम लोगों पर पड़ रहा है. फ्रांस का यह आंदोलन यहां के मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग का सरकार की आर्थिक, सामाजिक नीतियों के खिलाफ गुस्से का नतीजा है. यह वर्ग पिछले एक साल से लगातार बढाए जा रहे टैक्सों और महंगाई से त्रस्त है.ऊपर से सरकार इन वर्गों को राहत पहुंचाने के बजाय अमीरों को राहत दे रही है.

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