Political Parties : राजनीतिक दलों के फैसले देख कर लग रहा है जैसे टीवी में सास बहू वाले सीरियल देख रहे हों. ऐसे नेता आदर्श नहीं कीचड़ में सने नजर आते हैं.

बहुजन समाज पार्टी की स्थापना कांशीराम ने बहुत सोच विचार कर की थी. वो इस के जरिए दलित और वंचित समाज को जाग्रत करना चाहते थे. विचारों में बड़ी ताकत होती है. इस का परिणाम यह हुआ की 1995 से ले कर 2007 तक 12 सालों में 4 बार बसपा की नेता मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. मायावती से जो आपेक्षा कर के कांशीराम ने उन को अपना उत्तराधिकारी बनाया था वह निराशा में बदल गई. मायावती ने अपने काडर वाले पुराने नेताओं को पार्टी से बाहर करना शुरू कर दिया. जिस का परिणाम यह हुआ कि 2012 की हार के बाद पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.

2019 में मायावती को समाजवादी पार्टी से गठबंधन करना पड़ा. इस के बाद भी राजनीति में जो धमक बननी चाहिए थी वह बनी नहीं. 13 साल का समय हो गया बसपा चुनाव में फकत तमाशाई की नजर आती है. इस की सब से बड़ी वजह मायावती की सोच और फैसले हैं. जिन के कारण विरोधी दल बसपा को भाजपा की बी टीम कहने लगे हैं. मायावती के फैसले विचारधारा और पार्टी के हित वाले नहीं रह गए हैं. इस का सब से बड़ा प्रमाण उन के भतीजे आकाश आनंद का प्रकरण है.

आकाश आंनद मायावती के भाई आनंद कुमार के बेटे हैं. मायावती ने उन को 2019 में पार्टी में शामिल किया. आकाश आंनद की शादी बसपा के ही नेता डाक्टर अशोक सिद्वार्थ की बेटी डाक्टर प्रज्ञा से बड़ी धूमधाम से कराई. उस शादी में मायावती शामिल हुई थी. शुरूआती दौर में मायावती पर परिवारवाद के आरोप लगे. सवाल यह भी उठे कि अगर कांशीराम ने अपना उत्तराधिकारी अपने घर से लिया होता तो क्या बसपा को मायावती जैसी नेता मिलती ?

यह सवाल इसलिए जायज था क्योंकि जब तक राजनीतिक दल अपने घर परिवार में नेता तलाश करते रहेंगे पार्टी का भला नहीं होगा. एक ही परिवार में दूसरी पीढ़ी का नेता भी काबिल निकले यह जरूरी नहीं है. 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रचार में ही बीच चुनाव मायावती ने आकाश आनंद को पार्टी से निकाल दिया. इस की वजह यह सामने आई कि आकाश आनंद अपने ससुर डाक्टर अशोक सिद्वार्थ और पत्नी डाक्टर प्रज्ञा की सलाह से काम कर रहे थे. जिस से बसपा को नुकसान पहुंच रहा था. यह लगा कि अब आकाश आनंद की राजनीति खत्म हो गई है.

आकाश आनंद के दूसरी पार्टियों में शामिल होने की खबरें भी उड़ने लगी थी. इसी बीच बड़ा उलटफेर हुआ. मायावती ने वापस आकाश आनंद को बसपा में वापस कर बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी. इस बार कहा गया कि आकाश आंनद ने मायावती से माफी मांग ली है और कहा है कि वह अपने सोच विचार से काम करेंगे किसी की राय नहीं लेंगे. जिसv का अर्थ यह है कि आकाश आनंद अब अपने ससुर और पत्नी की सलाह से कोई राजनीतिक फैसले नहीं लेंगे. बसपा जिस में फैसले विचारधारा और समाज के हित को ले कर होते थे वहां फैसला इस बात का ले कर हो रहा है कि आकाश आंनद अपनी पत्नी और ससुर की सलाह से काम नहीं करेंगे.

बसपा ‘बुआ, भतीजा और पत्नी’ जैसा टीवी सीरियल बना रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने संविधान और आरक्षण के बल पर चुनाव लड़ा. उस को बड़ी सफलता मिली. भाजपा तीसरी बार बहुमत से सरकार नहीं बना पाई. उस को 400 पार का नारा ध्वस्त हो गया. अगर बसपा ने जोर लगाया होता तो शायद नरेन्द्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री नहीं बनते. बसपा मुद्दों से हट कर ‘बुआ, भतीजा और पत्नी’ के आधार पर अपने फैसले ले रही है. अब कौन मायावती को अपना आदर्ष बनाएगा? और क्यों बनाएगा ?

बसपा में आकाश आनंद की वापसी में भी उन की पत्नी डाक्टर प्रज्ञा की भूमिका सब से अहम रही है. डाक्टर प्रज्ञा ने खुद पहल की और मायावती से बात की. जिस के बाद मायावती को लगा कि वह नाहक ही डाक्टर प्रज्ञा को दोश दे रही थी. प्रज्ञा तो बिना मायावती से पूछे कोई बड़ा फैसला नहीं लेती है. प्रज्ञा और मायावती की मुलाकात के बाद ही आकाश आनंद की वापसी हो सकी. जो फैसले पार्टी के पदाधिकारियों के बीच होनी चाहिए वह घर के भीतर किचन कैबिनेट में हो रहे हैं. यह पार्टी के लिए बहुत फायदेमंद नहीं है. इस से पार्टी पर परिवार की छाप साफ दिखती है. पार्टी के भीतर लोकतंत्र खत्म सा हो गया है.

बात एक मायावती की ही नहीं है. बहुत सारे दल इसी तरह के फैसले कर रहे हैं. बिहार में लालू प्रसाद यादव के फैसले भी इसी तरह के हो रहे हैं. वहां भी ‘पति पत्नी और वो’ वाले सीरियलों की तर्ज पर फैसले हो रहे हैं. लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप को राष्ट्रीय जनता दल से छह साल के लिए निकाल दिया है. राजनीति में परिवारवाद लंबे अरसे से विमर्श का हिस्सा रहा है. लालू ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट कर तेज प्रताप यादव को गैर जिम्मेदाराना, पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ आचरण के लिए यह कार्रवाई करने की बात कही. तेज प्रताप के खिलाफ पार्टी निकाला की यह कार्रवाई उन के सोशल मीडिया हैंडल्स से हुई उस पोस्ट को ले कर हुई, जिस में उन के 12 साल से अनुष्का यादव के साथ 12 साल से रिलेशनशिप में होने की बात कही गई थी.

तेज प्रताप यादव ने बाद में यह पोस्ट डिलीट कर एक अन्य पोस्ट में अकाउंट हैक किए जाने की बात कही थी. तेज प्रताप ने यह भी कहा था कि उन्हें और परिवार को बदनाम करने के लिए तस्वीरें एडिट कर पोस्ट की गई थीं. तेज प्रताप की सफाई काम न आई और लालू यादव ने उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने कहा कि निजी जीवन में नैतिक ईमानदारी की कमी सामाजिक न्याय के लिए पार्टी की व्यापक लड़ाई को कमजोर करती है. तेज प्रताप का व्यवहार उन के पारिवारिक मूल्यों या परंपराओं को नहीं दर्शाता है.

उत्तर प्रदेश में भी करीब 9 साल पहले 30 दिसंबर 2016 को सपा के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने ही बेटे अखिलेश यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया था. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में एक प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा था कि हम ने पार्टी को बचाने के लिए अखिलेश यादव को 6 साल के लिए निष्कासित करने का फैसला किया है. हमारे लिए पार्टी सब से महत्वपूर्ण है.

अखिलेश तब यूपी के मुख्यमंत्री थे, जब उन को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. मुलायम ने उसी प्रेस कान्फ्रेंस में यह भी कहा था कि अखिलेश अब सीएम नहीं हैं. सीएम कौन होगा, यह पार्टी तय करेगी. उन्हें सीएम मैं ने ही बनाया था और वह अब मेरी सलाह भी नहीं लेते. मुलायम सिंह यादव के इस ऐलान के बाद अखिलेश ने अगले ही दिन सपा विधायक दल की बैठक बुला ली थी.

अखिलेश की बैठक में तब सपा के 229 में से 200 से ज्यादा विधायक पहुंचे थे और मुख्यमंत्री के लिए उन के समर्थन की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी. विधायक दल की बैठक में बहुमत को ले कर आश्वस्त हो जाने के बाद अखिलेश ने 1 जनवरी 2017 को सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुला ली थी. इस कार्यकारिणी के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से मुलायम सिंह यादव को हटा कर अखिलेश की ताजपोशी का ऐलान कर दिया गया. मामला कोर्ट भी गया लेकिन पार्टी का निशान और कमान अखिलेश के ही पास रहे.

बाद में मुलायम सिंह यादव भी नाराजगी छोड़ कर बेटे अखिलेश के साथ आ खड़े हुए थे. परिवार में झगड़े का असर यह हुआ कि पिता मुलायम और चाचा शिवपाल के समर्थन देने के बाद भी 2017 और 2022 का विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव हार गए. बिहार में भी परिवार के घमासान का प्रभाव विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा. लालू यादव भले ही नाटक कर रहे हों क्योंकि सोशल मीडिया पोस्ट से किसी का उत्तराधिकार बनता बिगड़ता नहीं है. उस के लिए कानूनी रास्ते होते हैं.

लालू प्रसाद यादव हो या मायावती पुराने फैसलों से उनको समझना चाहिए कि राजनीतिक दल विचारधारा के लिए बने हैं. इन से पूरे समाज को उम्मीद होती है. अगर इन दलों के फैसले विचारधारा की जगह टीवी सीरियलों की कहानी ‘सास बहू और साजिश’ की तर्ज पर होंगे तो राजनीतिक दलों का नुकसान तो होगा ही उन के पूरे समाज को नुकसान होगा. इतिहास जब भी समीक्षा करेगा यह नेता आदर्श पुरूष नहीं कीचड़ में सने लोग नजर आएंगे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...