Piggy Bank : गुल्लक कभी घरों की शान हुआ करती थीं, बदलते समय में इस की अहमियत घटने लगी. मगर फिर से गुल्लक का ट्रैंड शुरू हुआ है. जानिए क्यों गुल्लक जरूरी होता है पैसों की अहमियत समझने के लिए.

अंशु को मेहमानों का बड़ा इंतजार रहता है. घर पर मेहमानों के आते ही उस की बांछें खिल जाती हैं. जितना इंतजार उस को मेहमानों के आने का होता है उस से ज्यादा जल्दी उस को उन के जाने की होती है. 6 साल का अंशु बारबार दादी से आ कर पूछता कि वे कब जाएंगे? कितनी देर में जाएंगे? अभी तक क्यों बैठे हुए हैं? फिर कब आएंगे? दादी मुस्कुरा देती. बोलती - मुझे पता है तुझे क्या चाहिए. तुझे बस अपनी गुल्लक भरनी है. अरे, मेहमान चाय-नाश्ता तो कर लें, फिर जाएंगे.

'अच्छा'.... दादी को छोटा सा जवाब देकर अंशु दौड़ कर वापस ड्राइंग रूम में घुस जाता. ऐसा न हो कि मेहमान निकल जाएं और उस की मुट्ठी खाली रह जाए.

दरअसल जब से दादाजी ने नन्हे अंशु को एक मिट्टी की गुल्लक ला कर दी है और कहा है कि यह जब पैसे से भर जाएगी तो वे अंशु के लिए उस पैसे से उस की साइकिल खरीद कर देंगे, तब से अंशु बस अपनी गुल्लक के लिए पैसे बटोरने में लगा है.

पापा के औफिस से लौटते ही वह उन की जेब में पड़े सारे चिल्लर निकलवा कर अपनी गुल्लक में डाल देता है. मम्मी जब दरवाजे पर आए सब्जीवाले से सब्जियां खरीदती तो बचे हुए पैसे में से अंशु को भी अपना हिस्सा चाहिए होता है. बाकी मेहमानों के आने पर तो उस का दिन ही बन जाता था क्योंकि मेहमान तो ढेर सारे नोट दे कर जाते हैं. अंशु को उम्मीद है कि उस की गुल्लक बहुत जल्दी भर जाएगी और दादाजी उस को साइकिल खरीदने के लिए मार्किट ले कर जायेंगे. हालांकि अंशु की गुल्लक के पैसे तो साइकिल के लिए पूरे नहीं पड़ेंगे, साइकिल तो दादाजी अपने ही पैसे से लाएंगे, मगर अंशु के मन में गुल्लक भरने वाली बात डाल कर उन्होंने उसे बचत करने की राह दिखा दी.

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