वर्ष 2024 के लोकसभा समर को देखते हुए देश की समस्त विपक्षी पार्टियां कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल आदि जो भारतीय जनता पार्टी से इतर विचारधारा रखते हैं- बेंगलुरु में बैठक कर देश को एक संदेश देने का प्रयास किया. यह भी सच है कि विपक्ष की एकता का आगाज बहुत पहले हो गया था. मगर अब भारतीय जनता पार्टी की कुंभकर्णी निद्रा टूट गई और वह आननफानन उन राजनीतिक दलों को एक करने में जुट गई जिन्हें सत्ता के घमंड में आ कर उस ने तवज्जुह नहीं दी थी. इस का सब से बड़ा उदाहरण है रामविलास पासवान की पार्टी का जबकि चिराग पासवान आंख बंद कर के नरेंद्र मोदी की भक्ति करते देखे गए हैं.

यही नहीं, नीतीश कुमार के साथ भी भाजपा ने दोयम दर्जे का व्यवहार किया. इस तरह गठबंधन का धर्म नहीं निभा कर भारतीय जनता पार्टी ने एक तरह से अपने सहयोगियों के साथ विश्वासघात किया था. जिसे सत्ता की लालच में आज छोटीछोटी पार्टियां भूल गई हैं. सो, अब इस की क्या गारंटी है कि 2024 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इन के साथ समान व्यवहार किया जाएगा. दरअसल, देश के इतिहास में इस छलावे को कभी भुलाया नहीं जा सकता. कहा जाता है कि एक बार धोखा खाने के बाद समझदार आदमी सजग हो जाता है, मगर भारतीय जनता पार्टी के भुलावे में आ कर के 38 दल भारतीय जनता पार्टी के क्षत्र तले आ कर खड़े हो गए हैं. मगर, यह सच है कि यह सिर्फ एक छलावा और दिखावा मात्र है.

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