‘सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं, लेकिन दिखाये हुए सपने अगर पूरे नहीं किये तो जनता उनकी पिटाई भी करती है, इसलिए सपने वही दिखाओ जो पूरे हो सकते हैं. मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं, जो भी बोलता हूं, वह डंके की चोट पर बोलता हूं.’ चुनावी मौसम में मोदी-कैबिनेट के केन्द्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का ऐसा बयान ‘सपनों के सौदागर’ पर सीधा और तीखा हमला है. यह पहला मौका नहीं है जब नितिन गडकरी ने अपनी ही सरकार और प्रधान पर चोट की है, वह इससे पहले भी कई अवसरों पर ऐसे तीखे बयान दे चुके हैं, जिसके चलते मोदी-शाह की जोड़ी बगलें झांकने को मजबूर हुई है. लेकिन गडकरी के बयानों पर मोदी-शाह की चुप्पी आश्चर्यजनक है. जिस मोदी-शाह की जोड़ी के सामने भाजपा के बड़े-बड़े नेता कभी कुछ नहीं बोल पाये, वहां नितिन गडकरी लगातार ऐसी हिमाकत कैसे कर रहे हैं, यह विश्लेषण का विषय है. मोदी सरकार में अपने कामकाज में दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करने वाले गडकरी इन दिनों जो कुछ भी बोल रहे हैं, उसे केवल चर्चा में बने रहने के लिए दिया जाने वाला बयान नहीं कहा जा सकता है, उनके बयानों की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह उनके बयानों को अनसुनी करने को विवश हो रहे हैं. इसके पीछे वजह है. माना जा रहा है कि भाजपाई किले के अन्दर आजकल मोदी-शाह रक्षात्मक स्थिति में हैं और आक्रामक तरीके से बयानबाजी कर रहे नितिन गडकरी के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ताकत काम कर रही है. गडकरी के बयानों के निहितार्थ गहरे हैं और मोदी के लिए इसमें स्पष्ट संकेत छिपा है. ये बात ठीक है कि नितिन गडकरी ने अब तक कोई मोर्चा नहीं खोला है, लेकिन वे ऐसा कभी नहीं करेंगे, इसकी गारंटी कोई नहीं दे रहा है.

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