भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में राजनीति अब पुश्तैनी पेशा बन गई है. जो भी राजनीति में एक बार सफल हो जाता है वह अपने बच्चों को अन्य व्यवसाय में भेजने के बजाय राजनीति में ही भेजना पंसद करता है. भारत में गांधी परिवार, सिंधिया परिवार, मुलायम परिवार, लालू यादव परिवार, हेमवती नंदन बहुगुणा परिवार, बाल ठाकरे परिवार, देवीलाल परिवार, बादल परिवार और करुणानिधि परिवार जैसे बहुत सारे उदाहरण भरे पड़े हैं. विश्वस्तर पर देखें तो अमेरिका, श्रीलंका, क्यूबा, उत्तर कोरिया, सिंगापुर, बंगलादेश और पाकिस्तान तक तमाम देशों में राजनीति अब विरासत की बात हो गई है. इस के अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं.
भारत में नेहरू-गांधी परिवार की आलोचना कर राजनीति की शुरुआत करने वाले दल खुद भी परिवारवाद में डूब गए. भाजपा जैसे दल, जो परिवारवाद की आलोचना करते थे, अब वे भी परिवारवाद के शिकार हो गए हैं. विदेशों में भी विरासत की सियासत बहुत पुरानी है. अमेरिका में बहुत पहले ही जस्टिन और एडम्स के परिवार राजनीति में एक के बाद एक कर के आगे बढ़े. इस के बाद वहां पर ही कैनेडी और क्ंिलटन परिवार इस विरासत को आगे बढ़ाने में लग गए. ये परिवार तो ऐसे हैं जिन के लोग राजनीति में आगे बढ़े और सब से बड़े पदों पर बैठे नजर आते हैं.
अमेरिका में बहुत सारे ऐसे परिवार भी हैं जिन के बच्चे सीनेट तक पहुंचे हैं. अमेरिका का एक सर्वे बताता है कि एक सामान्य बच्चे के मुकाबले नेताओं के बच्चों में सीनेटर बनने की संभावना 6,000 गुना अधिक होती है. अमेरिका के अलावा दूसरे देशों में भी हालत वैसी ही है. यही वजह है कि नेताओं के बच्चे तेजी से इस दिशा में अपना कैरियर बनाने में लगे हैं. पाकिस्तान में नवाज शरीफ परिवार और भुट्टो परिवार लोकतंत्र के समर्थक जरूर रहे हैं पर वहां भी लोकतंत्र की आड़ में परिवारवाद खूब फलफूल रहा है. भारत के पड़ोसी मुल्क बंगलादेश और श्रीलंका में भी विरासत की सियासत का रंग देखने को मिलता है. शेख हसीना और खालिदा जिया ने बंगलादेश में परिवारवाद को बढ़ावा दिया. श्रीलंका में भंडरनायके, रणतुंगा परिवार राजनीति की मुख्यधारा में हैं. पूरी दुनिया में ऐसे देशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जहां लोकतंत्र में परिवारवाद पनप रहा है. इस की अपनी कुछ मूल वजहें भी हैं. आज के समय में चुनाव लड़ना सरल नहीं है. एक बार जो नेता अपने को स्थापित कर लेता है वह ब्रैंड बन जाता है. उस के ब्रैंड के सहारे पूरा परिवार आगे बढ़ता है. ऐसे परिवार में पैदा होने वाले लोगों को जनता स्वत: राजा मान लेती है. उन के पास पैसा और चुनाव लड़ने की समझ होती है. इस के प्रभाव को ले कर पूरी दुनिया में अलगअलग तरह के विचार हैं. कुछ लोग इस को लोकतंत्र के लिए सही मानते हैं, कुछ लोग इस को खतरा मानते हैं. दोनों विचारधाराओं के बीच परिवारवाद पूरी तरह से आगे बढ़ रहा है.