बहुजन समाज पार्टी से छोटे बडे नेताओं का पलायन जारी है. आने वाले दिनों में यह परेशानी और बढ़ सकती है. बसपा में मचे तूफान से पार्टी की चुनावी बढ़त पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं. बसपा के घर में मचे बवाल से विरोधी दलों में खुशहाली का माहौल है. सबसे बड़ी खुशी भारतीय जनता पार्टी खेमे में महसूस की जा रही है. बसपा के दलित और अति पिछडा वोट बैंक पर भाजपा की कड़ी नजर लगी है. चुनावी लाभ के लिये दलित और अति पिछड़ वर्गों को भाजपा अपने साथ जोड़ने की लंबी योजना पर काम कर रही है.
उत्तर प्रदेश के चुनावों में मुख्य मुकाबला सपा और बसपा के बीच था. भाजपा यहां पर तीसरे नम्बर की पार्टी बनकर रह रही है. भाजपा को अगर मुख्य लडाई में आना है तो उसे बसपा या सपा मे से किसी एक के उपर आना होगा. दल बदल के आइने से देखे तो बसपा में टूटन नई बात नहीं है. हर टूट के बाद बसपा मजबूत होती रही है.
बसपा के लिये परेशानी वाली बात यह है कि पहले अगडी जातियों के नेताओं की अगुवाई में दूसरे लोग दलबदल कर पार्टी की टूट का रास्ता बनाते थे. अब दलित वर्ग के नेता ही बसपा को तोड रहे हैं. यह बसपा में दूसरी जातियों के नेताओं में बढती की महत्वाकांक्षा के कारण हो रहा है. विरोधी दलों ने हमेशा बसपा की तोडफोड में अहम भूमिका अदा की है. ऐसे में 2017 के विधानसभा चुनावों के पहले हो रही भगदड के पीछे भी ऐसे कारणों से इंकार नही किया जा सकता है.
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