महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण पर मुहर लगा दी है. राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी लेकिन कई तरह के विरोध और दावों के साथ मराठा आरक्षण के लिए सरकार के सामने अब चुनौतियां खड़ी रहेंगी.

पिछड़ा वर्ग आयोग ने मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की है. आयोग ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में 30 प्रतिशत आबादी मराठा है. ऐसे में उन्हें सरकारी नौकरी में आरक्षण देने की जरूरत है.

मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए सरकार एसईबीसी (सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग) नाम से स्वतंत्र श्रेणी बनाएगी पर राज्य में पहले से ओबीसी श्रेणी में शामिल कुनबी समाज ने यह कह कर विरोध शुरू कर दिया कि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मराठों की जो 30 फीसदी आबादी बताई है, वह आंकड़ा गलत है. मराठों और राज्य सरकार ने कुनबी आबादी की गिनती भी मराठा समुदाय के साथ की है यानी मराठा जनसंख्या में कुनबी समुदाय भी शामिल है.

कुनबी नेताओं का दावा है कि अगर कुनबी आंकड़ों को हटाते हैं तो राज्य में मराठों की संख्या 12 प्रतिशत ही है.

कुनबी समुदाय ने नई एसईबीसी श्रेणी में शामिल होने से इनकार कर दिया. कुनबी नेताओं का कहना है कि पहले से ओबीसी श्रेणी में शामिल हमारा नई श्रेणी में कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा.

राज्य में अभी कुल आरक्षण 52 प्रतिशत है. इस में 13 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 7 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 19 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग, 2 प्रतिशत विशेष पिछड़ा वर्ग, 3 प्रतिशत विमुक्ति जाति, 2.5 घुमंतु जनजाति बी श्रेणी, 3.5 प्रतिशत घुमंतु जनजाति सी (धनगर) और 2 प्रतिशत घुमंतु जनजाति डी बंजारा के लिए प्रावधान है.

दरअसल 2014-2015 में तब की कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था. इस के बाद इस मुद्दे को ले कर अदालत में कई याचिकाएं डाली गईं. नवंबर 2014 में एक अंतरिम आदेश में अदालत ने सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी गई थी.

महाराष्ट्र में पिछले समय से आरक्षण के लिए मराठों का आंदोलन तेज हो गया था. पहले मौन आंदोलन चला फिर हिंसक हो गया था.

महाराष्ट्र में मराठा जातियां खेतीहर हैं. ये जातियां राज्य में संपन्न मानी जाती हैं लेकिन इन में से कुछ लोग ही राजनीतिक, आर्थिक तौर पर मजबूत है. इस समुदाय के ज्यादातर लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं. खेती, जमीन होते हुए भी मराठा लोग कर्ज की वजह से तंगी के हालात में रहने पर मजबूर हैं. राज्य में आत्महत्या करने वाले किसानों में ज्यादातर मराठा जातियों के हैं.

इस समुदाय को लग रहा है कि सरकारी पदों पर इन लोगों की जातियों के सदस्य नहीं हैं. हरियाणा में जाट, गुजरात में पाटीदार, राजस्थान में गुर्जर जातियों की स्थिति भी मराठाओं की तरह है. ये जातियां सरकारी नौकरियों में अपनी भागीदारी हासिल करना चाहती हैं.

अब सरकार के सामने बड़ी चुनौती यह है कि मराठा आरक्षण को  किसी भी कानूनी चुनौती के लागू किया जाए. अगर राज्य मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देता है तो भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार हो जाएगी.

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