चोरी व लूट की वारदातें अब इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं कि घर, बाहर व सफर में बराबर इन का डर बना रहता है. ज्यादातर लोग चोरी व लूट का मतलब व इन में अंतर नहीं जानते. सो, जब एक आम आदमी चोरी व लूट की रिपोर्ट पुलिस में लिखवाने जाता है तो वह बारीकी नहीं समझ पाता. ऐसे में ज्यादातर मामलों में चोरी व लूट की तहरीरें भी गुमशुदगी में लिखी जाती हैं. नतीजतन, दोषी बच कर साफ निकल जाते हैं. इस से वारदातों को बढ़ावा मिलता है.
सूचनाओं का फैलाव बढ़ने के बावजूद जानकारी की कमी व लापरवाही बेहद अफसोसजनक है. 8 नवंबर, 2016 की बैठक में गहमर, उत्तर प्रदेश थाने के एसएचओ खुद अपने एसपी को चोरी व लूट का अंतर नहीं बता सके थे. ऐसे रखवाले आखिर किस तरह अपनी केस डायरी भरते होंगे और किस तरह वे अपराधियों को सजा दिलाते होंगे?
जानकार व जागरूक बनें
गलतफहमी के कुहासे से बचने के लिए चोरी व लूट को समझना व इन में अंतर जानना जरूरी है. कानून के लिहाज से चोरी व लूट में फर्क है. भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की दफा 378 के मुताबिक, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे से उस की चल संपत्ति या वस्तु को बिना उस की मरजी के बेईमानी से लेने के लिए हटाए, तो उसे चोरी कहते हैं.
चोरी और ऊपर से सीनाजोरी की कहावत बहुत पुरानी है. जुर्म की दुनिया में चोरी के दौरान जोरजबरदस्ती, मारपीट करने, डराने व हमला करने की वारदातें दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही हैं. यही वह बात है जो एक चोरी को लूट में बदल देती है. लूट का जिक्र भारतीय दंड संहिता की दफा 390 में किया गया है.