देश की आजादी के समय चाहे जैसी परिस्थितियां बनी, कश्मीर पर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने चाहे जो किया मगर राष्ट्रवादी  विचार धारा शनै: शनै: ही सही सदैव यह अलख जगाते रही कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.  एक देश में, दो संविधान, दो झंडे और धारा 370 जायज नहीं है और इसी धारा पर चलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुरलीमनोहर जोशी के साथ आतंकवादियों की चेतावनी के बाद भी लालचौक में जाकर तिरंगा फहराया था.

अब देश पर जनसंघ और आर एस एस विचारधारा की राष्ट्रवादी सरकार का वर्चस्व है. लोकसभा में पूर्ण  बहुमत के पश्चात राज्यसभा में भी भाजपा का बहुमत होने जा रहा है. ऐसे में यह सवाल प्रसांगिक है कि भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार कश्मीर मुद्दे पर क्या निर्णय लेने जा रही है? दशकों से कश्मीर पर अलग राग अलपाने वाली भाजपा हुर्रियत, अलगाववादी नेताओं को किनारे करते हुए राष्ट्रहित में आने वाले समय में क्या ऐतिहासिक निर्णय लेने जा रही है,आज हम इन्हीं महत्वपूर्ण सवालों पर चर्चा करने जा रहे हैं. जो आपको एक नई जानकारी देगा और मोदी की केंद्र सरकार के कदमों की जानकारी भी देगा कि कैसे  केंद्र की भाजपा सरकार कश्मीर में लागू 370 हटाने की तैयारी कर रही है कैसे अलगाववादी नेताओं पर अंकुश कस रही है, कश्मीर पंडितों की समस्या, कैसे घाटी में होने वाले पत्थरबाजी, उसके राडार पर है यह सब हम बता रहे हैं…

तूफां आने के पहले का सन्नाटा !

जम्मू कश्मीर राज्य के संदर्भ में केंद्र सरकार अति संवेदनशील है. भाजपा की मोदी सरकार का कश्मीर को लेकर एक-एक कदम बड़ी ही सूझबूझ के साथ रखा जा रहा है. भाजपा की मोदी सरकार नीतिगत निर्णय लेते हुए कश्मीर को  चंहु दिशाओं से घाटी में अमन-चैन बहाल करने की दिशा में प्रारंभ कर चुकी है. सन 2014 से 2019 के इस वक्फे में कश्मीर के मदृदे नजर केंद्र सरकार ने अनेक मास्टर स्ट्रोक  खेले हैं, जो अन्य शासन के दरम्यान संभव ही नहीं थे.

यथा- महबूबा मुफ्ती सरकार के साथ गलबहियां फिर ऐन मौके पर महबूबा सरकार को स्थानीय निकायों के चुनाव के मुद्दों पर समर्थन न मिलने पर अलग हो जाना, राज्यपाल शासन और एक मंजे हुए राष्ट्रवादी मलिक को राज्यपाल बनाना, पाकिस्तान से सिंपैथी रखने वाले पर तेज नजर रखना और पाकिस्तान में अलगाववादी नेता यासीन मलिक  नेता जम्मू कश्मीर लिबरल फ्रंट हुर्रियत के नेता सैयद अली शाह गिलानी आदि पाकिस्तान समर्थकों की नजरबंदी और जांच पड़ताल प्रारंभ कर देना, घाटी का माहौल बदलने का गंभीर प्रयास. पाकिस्तान पर शिकंजा और सबसे बड़ी चीज, दशकों से पंचायत चुनावो को टाला जा रहा था, उसे शांतिपूर्ण ढंग से बिना किसी खूनसंपन्न करवा कर दिखा देना कि कश्मीर की ओर भाजपा धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़ रही है. और आने वाले समय में कश्मीर पूरी तरह शांत और लोकतांत्रिक ढंग से भाजपा की मुट्ठी में होगा.

ये भी पढ़ें- सटोरिये कंगाल, बुकी मालामाल और विज्ञापन बेहाल

अमित शाह का ‘खेला’ !

नरेंद्र दामोदरदास मोदी की द्वितीय पारी की सरकार में होम मिनिस्टर के रूप में आत्मविश्वास से लबरेज अमित शाह विराजमान है अमित शाह के चेहरे को देखिए  चेहरे पर दृढ़ता है. जो  देशवासियों को आश्वस्त करती है  कि जो होगा देश हित में ही  होगा. देश के गृह मंत्री पद पर अमित शाह की नियुक्ति बहुत सोच समझ कर की गई है.और इस समय कश्मीर पर जो काम हो रहा है वह पूरी तरह से कश्मीर को अपने हाथों में लेकर देश को एक संदेश देने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.

अमित शाह के संदर्भ में  यह बताना लाजमी है की वह जो करते हैं  उसमें सफल होकर दिखा देते हैं. उनके राजनीतिक इतिहास को जानने वालो से पूछिए. अमित शाह एक तरह से आज के लालकृष्ण आडवाणी है जिनके नसों  में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व हिलोर मार रहा है

गृह मंत्री के अल्प समय में, देखिए कश्मीर के संदर्भ में ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं. जैसे पाकिस्तान परस्तों पर अंकुश, पत्थरबाजी की घटनाओं पर अंकुश, मुस्लिम परस्ती पर अंकुश, कश्मीर पंडितों को संरक्षण,संपूर्ण कश्मीर पर अपने श्रेष्ठतम अधिकारियों की तैनाती. अलगाववादी नेताओं के फंडिंग पर तेज निगाह और वह यही नहीं जांच पड़ताल भी तेजी से जारी. यही नहीं हाल में जब अमित शाह गृहमंत्री की बहैसियत कश्मीर प्रथम प्रवास पर पहुंचे, तो उन्होंने राजनीतिक दलों के नेताओं से नहीं मिल कर, सीधे हाल ही में निर्वाचित सरपंचों से मुलाकात की और उन्हें बता दिया कि वह कश्मीर के सच्चे जनप्रतिनिधि हैं. यही कारण है कि सरपंचों और गृह मंत्री अमित शाह के फोटो वीडियो आज संपूर्ण कश्मीर में वायरल हो रहे हैं. एक संदेश दे रहे हैं की केंद्र सरकार और भाजपा के काम करने का तरीका कुछ ऐसा है.

अपने प्रवास के दरमियान कश्मीर के बड़े नेताओं से मुलाकात नहीं करने पर अमित शाह की आलोचना हुई उन्होंने कहा यह जम्हूरियत का अपमान है .लोकतंत्र में जम्मू कश्मीर के नेताओं से केंद्र के गृह मंत्री की हैसियत से अमित शाह को मुलाकात हेतु समय दिया जाना था. मगर अमित शाह अपनी अनोखी    शैली से लबरेज बिना किसी की चिंता किए कान दिए  आगे बढ़ते चले जा रहे हैं जो उनकी अपनी एक विशिष्ट शैली है .

पंचायतों के माध्यम से सत्ता …!

भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार जमीनी स्तर पर काम कर रही है. जम्मू कश्मीर में  पंचायत चुनाव नहीं कराए जा रहे  थे.चुनी हुई राज्य सरकारे जम्मू कश्मीर में पंचायतों के चुनाव से मुंह चुराती थी. कुल स्थिति यही थी कि 3 कुनबे का कब्जा राजनीतिक तौर पर हावी था.

मोदी सरकार ने यह मास्टर स्ट्रोक खेला, उन्होंने सीधे पंचायत  चुनाव शांतिपूर्वक करा दिए और सत्ता 3 परिवारों के हाथ से निकालके स्थानीय निकायों के चुनाव के माध्यम से आम लोगो के हाथ मे सौंप दिया और दिखा दिया कि केंद्र सरकार चाहे तो सब कुछ संभव है. दरअसल यह पंचायती चुनाव दो धारी तलवार साबित होगी एक तरफ देश को दिखा दिया गया कि शांतिपूर्ण पंचायत चुनाव हो सकते हैं दूसरी तरफ भाजपा संगठन को गांव-गांव में मजबूत बनाया जा रहा है.

दरअसल पंचायती राज की कल्पना को साकार करने के पीछे केंद्र सरकार और भाजपा की यह मंशा है इसके माध्यम से राज्य की सत्ता पर भाजपा की सरकार. आप सोच रहे होंगे, यह कैसे संभव है ? मगर जिस गति से कश्मीर में काम हो रहा है उससे यह प्रतीत होता है की आगामी चुनाव में भाजपा अपरिहार्य रूप में कश्मीर में निर्णायक स्थिति में होगी. यह संवाददाता हाल में जम्मू कश्मीर के प्रवास पर था.यहां की परिस्थितियां धीरे धीरे भाजपा मय हो रही हैं यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है.

ये भी पढ़ें- साफ्ट हिंदुत्व को समर्पित कांग्रेसी बजट

एक सरपंच ने बताया- मोदी सरकार ने पंचायती राज को मजबूत  बनाया है और हमारा विश्वास जीता है. दरअसल केंद्र सरकार चाहती है गांव जमीनी स्तर पर आम  नागरिकों में यह संदेश जाना चाहिए केंद्र की मोदी सरकार आंतकवाद का खात्मा कर रही है. केंद्र ने पंचायतों को करोड़ों रुपए विकास मद हेतू सीधे प्रदाय किए है. अब यह राशि प्राप्त करके प्रतिनिधि मोदी राग क्यों नहीं गाएंगे. ऐसी स्थिति में माहौल भाजपामय, मोदी मय हो रहा है.  आने वाले समय में राज्य की सत्ता पर भाजपा का कब्जा संभव हुआ तो कश्मीर की तस्वीर बदल जाएगी इससे भला कौन इंकार कर सकता है.

फिलहाल केन्द्र की प्राथमिकता आतंकवादियों को विभिन्न माध्यमों से समाप्त करके तथा विदेशी स्रोतों से धन के बहाव को रोक कर ‘आतंकवाद की रीढ़ को तोडऩा है. ’ इसलिए राज्य को विधानसभा चुनावों के लिए कम से कम कुछ और महीनों तक इंतजार करना पड़ेगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...