टीएमसी की तेजतर्रार व खूबसूरत सांसद महुआ मोइत्रा ने धर्म की पोल उस संसद में खोल कर रख दी जिसे कुछ लोग मंदिर और मठ बनाने पर तुले हुए हैं. सोचने वाली इकलौती दिलचस्प बात यह है कि महुआ ने जैन युवकों के बारे में ही क्यों कहा कि वे घर से छिप कर अहमदाबाद की सड़क पर ठेले से काठी कबाब खाते हैं.

हकीकत तो यह है कि जैन धर्म की कट्टरता ने उन्हें यह मिसाल देने को मजबूर किया. बातबात पर, खासतौर से खानेपीने के मसले पर, सभी युवा रोकटोक से परेशान रहते हैं और चूंकि खुलेआम बगावत नहीं कर सकते, इसलिए धार्मिक उसूल तोड़ कर अपनी इच्छा पूरी करते हैं.

महुआ की मंशा और धर्म का सच सलीके से समझे. उन के कहे शब्द तमाम कट्टरवादियों को मिर्च की तरह लगे: ‘…आप हमें बताना चाहते हैं कि क्या खाना चाहिए… क्या पहनना चाहिए… किस से प्यार करना चाहिए…’

इंदौर में यूपी का सट्टा बा

गरमी के साथसाथ देशभर का सट्टा बाजार भी गरमा रहा है, जिस की तपिश इंदौर में कुछ ज्यादा है. भाजपा से शुरुआती लगाव के बाद सपा को बराबर का भाव दे कर सटोरियों ने योगी और भाजपा का दिल तोड़ दिया है.

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इंदौर के एक खाईबाज की मानें तो सभी को मालूम है कि सट्टा टीवी के डब्बों की तरह प्रायोजित आंकड़े नहीं देता, बल्कि सच के बहुत नजदीक होता है. इस के अपने अलग पैमाने और सोर्स हैं. इस बार सीएम अखिलेश यादव भी बन सकते हैं और योगी आदित्यनाथ भी रिपीट हो सकते हैं.

यूपी की लड़ाई को नेक-टू-नेक फाइट बता रहे सटोरिए पश्चिम बंगाल चुनाव की तरह कोई रिस्क नहीं उठा रहे क्योंकि वहां भी भाजपा ने खूब हल्ला मचवाया था लेकिन फिर भी कुरसी हाथ नहीं लगी थी. आंकड़ों के इस मायावी बाजार में दिलचस्प दांव इस बात पर भी लग रहा है कि बसपा और कांग्रेस दहाई का आंकड़ा छू पाएंगी भी या नहीं.

अपनेअपने अहंकार

जब कोई बड़ा आदमी कहीं जाता है तो उस की स्वाभाविक इच्छा होती है कि तमाम छोटेमोटे लोग उस की अगवानी में विमान तल के तले हाथ बांधे खड़े मिलें. इस दृश्य, जिसे कोईकोई प्रोटोकौल कहता है, से बड़े आदमी को अपने बड़े होने की तसल्ली हो जाती है. तेलंगाना में इस का उलटा हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शमशाबाद पहुंचे तो मुख्यमंत्री  के चंद्रशेखर राव अगवानी के लिए मौजूद नहीं थे. उन्होंने प्रोटोकौल का पालन करते हुए अपने एक छोटे मंत्री तलसानी श्रीनिवास यादव को भेज दिया.

इस पर महज 2 विधायकों वाली भाजपा ने उम्मीद के मुताबिक हल्ला मचाया और इस हरकत को नरेंद मोदी व देश की बेइज्जती करार दिया. इस होहल्ले से केसीआर के कानों पर जूं तक न रेंगी क्योंकि उन्होंने कहीं ऐसा नहीं पढ़ा कि जब पीएम आएं तो सीएम का उन की अगवानी करने जाना संवैधानिक बाध्यता है. अब यह तो भाजपाइयों को चाहिए कि इस तरह की बेइज्जती हो जाने के बाद वे उस का ढिंढोरा पीट कर उसे रास्ता न बनाएं.

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सपा के सारथी

कहने को भले ही किसान आंदोलन खत्म हो गया हो लेकिन किसानों की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. किसान नेता राकेश टिकैत ने 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर फतवा जारी कर दिया है कि किसान भाजपा को वोट नहीं, बल्कि सजा दें. उत्तर प्रदेश में सपा के लिए यह फरमान उम्मीद जगाने वाला है क्योंकि मैदान में वह प्रमुखता से शुरू से ही है. 10 मार्च को सरकार किसी की भी बने, उस में किसानों का रोल अहम होगा और वाकई में उन का भविष्य तय करने वाला होगा.

क्या राकेश टिकैत सपा के लिए अन्ना हजारे साबित हो पाएंगे, यह बात कहीं ज्यादा दिलचस्प है क्योंकि सवाल किसानों के स्वाभिमान का है जिन्हें भगवा गैंग शूद्र सम?ाते उन के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती रही है और उन की मेहनत पर पूंजीपति फलफूल रहे हैं. देखना यह भी दिलचस्प होगा कि भाजपा धर्म और जाति के नाम पर किसानों को दोफाड़ कर पाई या नहीं.

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