दुनियाभर में हेरोइन की सप्लाई का 80 फीसदी हिस्सा अफगानिस्तान से जाता है. अफीम के निर्यात से अफगानिस्तान की 2 अरब डौलर से ज्यादा की सालाना कमाई होती है जो उस की जीडीपी का 11 फीसदी है. ऐसे में तालिबान अफीम की पैदावार पर रोक लगाएगा और मादक पदार्थों के कारोबार को खत्म करेगा, यह सोचना भी हास्यास्पद है. इस के लिए तो सभी देशों को मिल कर ड्रग्स कारोबार और उस से जुड़े गंभीर अपराधों का मुकाबला करने की रणनीति बनानी होगी.

मुंबई के पास समुद्र में एक कू्रज ‘कार्डेलिया द इम्पै्रस’ पर चल रही रेव पार्टी में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का छापा और उस में बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान समेत 19 लोगों को हिरासत में लिए जाने की बात काफी समय से मीडिया की सुर्खियों में है. आर्यन खान को जेल भेजा जा चुका है. इस मामले में पुलिस की तफतीश और पूछताछ जारी है. दबाव के चलते गिरफ्तार लोगों में से 3 को जमानत पर न छोड़े जाने का आरोप लग रहा है क्योंकि एक शाहरुख खान का बेटा है. कहा जा रहा है कि इस रेव पार्टी में ड्रग्स- एमडी कोक और हशीश – की बरामदगी हुई है. लेकिन यह कोई पहला मामला नहीं है जहां कुछ नामचीन लोग ड्रग्स के साथ पकड़े गए हैं. बौलीवुड में ड्रग्स का इस्तेमाल कई दशकों से काफी धड़ल्ले से जारी है. संजय दत्त से ले कर सुशांत सिंह राजपूत तक की बरबादी की वजह ड्रग्स है. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बौलीवुड के कई कलाकारों से लंबी पूछताछ हो चुकी है, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. पुलिस एकाध की गिरफ्तारी और पूछताछ तक ही सीमित रह जाती है, ड्रग्स सिंडिकेट तक नहीं पहुंच पाती.

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अभिनेता अर्जुन रामपाल, ऐक्ट्रैस दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर, अरमान कोहली, रिया चक्रवर्ती, कौमेडियन भारती सिंह और उन के पति हर्ष लिंबाचिया, अभिनेता एजाज खान, टीवी कलाकार गौरव दीक्षित सभी ने ड्रग्स से जुड़े सवालों का सामना किया है. इन में से कई गिरफ्तार भी हो चुके हैं. मगर बौलीवुड सहित पूरे देश में ड्रग्स की खरीदफरोख्त बदस्तूर जारी है और अब तो इस में लगातार इजाफा हो रहा है, जैसे पूरे देश को अफीमची बनाने की तैयारी हो. इस से पहले गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 3 हजार किलो हेरोइन पकड़ी गई. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उस की कीमत 21 हजार करोड़ रुपए है. गौरतलब है कि मुंद्रा पोर्ट को उद्योगपति गौतम अडानी चलाते हैं. इस मामले को देश का मीडिया एकदम अनदेखा कर रहा है और अब तक खास काररवाई नहीं की गई. पकड़ी गई ड्रग्स (हेरोइन) को 2 कंटेनरों में रखा गया था, जिन के ऊपर पाउडर रखे होने की बात लिखी गई थी. ये दोनों कंटेनर ईरान से आए थे. एक कंटेनर में 2 हजार किलो और दूसरे कंटेनर में एक हजार किलो हेरोइन थी.

अफगानिस्तान में तैयार इस हेरोइन को गुजरात बंदरगाह पर भेजा गया था, जहां से यह मुंबई से ले कर पंजाब तक पहुंचाई जानी थी. इतनी भारी तादाद में अतिपरिष्कृत नशीले पदार्थ का पकड़ा जाना एके-47 बंदूकों के पकड़े जाने से ज्यादा चिंताजनक है. यह हिंदुस्तान के युवाओं को अफीमची बना कर असमय मौत की ओर धकेलने का खतरनाक षड्यंत्र है. सामाजिक कार्यकर्ता और श्रमिक संगठन ‘सीटू’ के राज्य सचिव शैलेंद्र सिंह ठाकुर कहते हैं, ‘‘ये हेरोइन, स्मैक और ब्राउन शुगर सब चलताऊ नाम हैं. असली नाम है मार्फीन, जो अफीम को प्रोसैस करने के बाद पहले एल्केलाइड के रूप में बनता है. 120 किलो अफीम से 40 किलोग्राम मार्फीन बनती है. इस हिसाब से मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई 3 हजार किलो मार्फीन बहुत ही विराट मात्रा है.’’ मुंद्रा पोर्ट पर 3 टन हेरोइन की जब्ती से पहले 72 हजार करोड़ रुपए की 24 टन मार्फीन भी पहुंच चुकी थी, जो टैलकम पाउडर कह कर विजयवाड़ा से गुजरात तक गई और मार्केट में खपा दी गई. अक्तूबर माह में एक गुप्त सूचना के आधार पर राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) की टीम ने मुंबई पोर्ट पर छापा मारा, जहां उन्हें एक कंटेनर से 25 किलो हेरोइन बरामद हुई.

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अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उस की कीमत 125 करोड़ रुपए थी. इस संबंध में नवी मुंबई के 62 साल के एक कारोबारी जयेश सांघवी को गिरफ्तार किया गया. सांघवी ईरान से मूंगफली के तेल की खेप में इस हेरोइन को छिपा कर लाया था. यह कंटेनर वैभव एंटरप्राइजेज के संदीप ठक्कर ने इम्पोर्ट किया था, जिन का मुंबई के मसजिद बंदर इलाके में बड़ा औफिस है. हेरोइन लाने के लिए तस्करों की यह तरकीब नई थी. राजस्व खुफिया निदेशालय को शक है कि जयेश सांघवी एक बड़े सिंडिकेट का हिस्सा है और इस तरह की खेपें उस के जरिए भारत में पहले भी आई हैं, मगर अभी तक पुलिस उस से कुछ खास नहीं उगलवा पाई है. इसी साल जुलाई माह में राजस्व खुफिया निदेशालय ने मुंबई बंदरगाह से ही 293 किलो हेरोइन जब्त की थी, जिस की कीमत 2 हजार करोड़ रुपए आंकी गई थी. उस कंसाइनमैंट को नवी मुंबई के जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह से सड़कमार्ग के जरिए पंजाब भेजा जाना था.

उस मामले में डीआरआई ने पंजाब के तरणतारण के रहने वाले संधू एक्सपोर्ट पंजाब के मालिक प्रभजीत सिंह को गिरफ्तार किया है. पिछले महीने मुंबई एयरपोर्ट से 5 किलो हेरोइन के साथ 2 महिलाएं भी गिरफ्तार हुई थीं. यह किसी भी एयरपोर्ट में मिलने वाली ड्रग्स की सब से बड़ी खेप में से एक थी. उन के पास से मिली हेरोइन की कीमत 25 करोड़ रुपए थी. दोनों महिलाओं की पहचान मांबेटी के तौर पर हुई जो दक्षिण अफ्रीका के जोहानेबर्ग से आई थीं. साउथ दिल्ली के इलाके में जहां बड़ी संख्या में अफ्रीकी नागरिक बसे हैं और रामकृष्ण मठ के आसपास रहने वाले विदेशियों के पास अफीम, मार्फीन, हेरोइन, चरस, गांजा जैसे नशीले पदार्थो का मिलना बहुत आम है. ये चंद बानगी हैं जो यह बताने के लिए काफी हैं कि हर महीने कितनी भारी मात्रा में नशीले पदार्थ भारत में आ रहे हैं और ड्रग्स का कारोबार हिंदुस्तान में कितने बड़े पैमाने पर चल रहा है.

ऐसे बरबाद हुआ था चीन दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक चीन दोदो अफीम युद्ध ?ोल चुका है और इस का भारी खमियाजा भुगत चुका है. पहला अफीम युद्ध (1839-1842) ईस्ट इंडिया कंपनी को आगे रख कर ब्रिटेन ने लड़ा और पूरे चीन को अफीम का लती बना दिया. दुनिया के इस सब से बड़े देश को इस युद्ध में हारने की कीमत हौंगकौंग को ब्रिटेन के सुपुर्द करने और अपने 5 बंदरगाहों पर अंगरेजों को व्यापार करने व चीन के कानूनों से आजाद रह कर रहने की खुली छूट देने और ब्रिटेन को व्यापार के मामले में मोस्ट फेवर्ड नैशन का दर्जा देने के रूप में चुकानी पड़ी. इस के बाद जो अफीम व्यापार पहले छिपाछिपी चलता था, वह वहां खुलेआम चलने लगा. चीन में दूसरा अफीम युद्ध 1856-1860 में हुआ. इस बार अंगरेजों और फ्रांसीसियों दोनों ने हमला बोला और चीन के 11 बंदरगाह और छीन लिए. मगर चीन का असली नुकसान इन बंदरगाहों से ज्यादा था. बारबार प्रतिबंधों के बावजूद अफीम का सेवन करने वालों की संख्या बढ़ते जाने का जब कारण तलाशा गया तो पता चला कि प्रशासन, फौज और विद्यार्थियों का काफी बड़ा हिस्सा अफीमची बन चुका है. परिणाम यह निकला कि मानवता को समृद्ध करने वाली अनेक खोजों में अव्वल रहने वाला चीन औद्योगिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास के मामले में सदियों पीछे चला गया. हालांकि, 1948 की कम्युनिस्ट क्रांति ने इस स्थिति को तोड़ा. नशे की राह पर भारत भारत में नशे के विस्तार की भौगोलिकी पर नजर डालें तो यहां सब से ज्यादा पीडि़त व प्रभावित राज्य पंजाब है. उस के बाद हरियाणा, राजस्थान के एक बड़े हिस्से और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरफ ड्रग्स माफियाओं ने अपना जाल फैला रखा है. पंजाब और राजस्थान का प्रभावित हिस्सा एकदम सीमा से सटा है. यह वह इलाका है जहां से भारतीय सुरक्षा बलों में बड़ी संख्या में युवा जाते हैं. इन्हें बड़ी संख्या में नशे का आदी बना कर कमजोर करना, राष्ट्र को कमजोर करने की साजिश है.

इस के बाद ड्रग्स सिंडिकेट ने भारत की मेधा, कौशल और विशेषज्ञता के केंद्र, उच्चतर शिक्षण संस्थानों को अपना टारगेट बनाया है. यह संयोग नहीं है, बल्कि यह देश के संवेदनशील केंद्रों की शिनाख्त कर उन्हें निशाने पर लिया जाना है. अफीम उत्पादक देश अमेरिकी कब्जे में आने के बाद अफगानिस्तान एक बड़े अफीम उत्पादक के रूप में उभरा था. औरत के बुर्के की साइज और उस की पढ़ाई से बेहोश हो जाने वाले तालिबानी कट्टरपंथियों को इस धंधे से कोई परहेज न था और अमेरिका को अफीम के धंधेबाजों से बड़ा मुनाफा था. यूनाइटेड नेशंस औफिस औन ड्रग्स एंड क्राइम्स (यूएनओडीसी) के मुताबिक, दुनिया में अफीम का सब से बड़ा उत्पादक देश अफगानिस्तान है. दुनियाभर में अफीम के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा अफगानिस्तान में होता है.

2018 में यूएनओडीसी के आकलन के मुताबिक, अफगानिस्तान की कुल अर्थव्यवस्था में 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी अफीम उत्पादन की थी. हालांकि, तालिबान दावा कर रहा है कि उस ने अफगानिस्तान में अपने पिछले शासनकाल के दौरान अफीम की खेती पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी, जिस के चलते गैरकानूनी ड्रग्स का कारोबार थम गया था. 2001 में अफगानिस्तान में अफीम के उत्पादन में कमी जरूर देखी गई थी लेकिन बाद के सालों में तालिबान नियंत्रित इलाकों में अफीम की खेती बढ़ती गई. यहां अफीम को इस तरह से परिष्कृत किया जाता है कि उस से काफी अधिक नशा देने वाले हेरोइन और मार्फीन जैसे ड्रग्स तैयार हों. कार्ल मार्क्स ने कहा था, ‘जैसेजैसे मुनाफा बढ़ता जाता है, पूंजी की हवस और ताकत बढ़ती जाती है. पूंजी मुनाफे के लिए कुछ भी कर सकती है. वह 10 फीसदी के लिए कहीं भी चली जाती है, 20 फीसदी मुनाफा हो तो इस के खुशी का ठिकाना नहीं रहता. 50 फीसदी के लिए यह कोई भी दुस्साहस कर सकती है. 100 फीसदी मुनाफे के लिए तो यह मानवता के सारे नियमकायदे कुचल डालने को तैयार हो जाती है और 300 फीसदी मुनाफे के लिए तो यह कोई भी अपराध ऐसा नहीं जिसे करने को तैयार न हो जाए.

यह कोई भी जोखिम उठाने से नहीं चूकती, भले इस के मालिक को फांसी ही क्यों न हो जाए.’ अगर भूकंप और भुखमरी से मुनाफा बढ़ता हो तो यह खुशी से उन्हें आने देगी. तस्करी और गुलामों का व्यापार इस की मिसालें हैं. ड्रग्स के कारोबारी अपने मुनाफे के लिए मानवता और मानवजाति को खोखला व खत्म करने पर उतारू हैं. यही कुछ हाल अफगानिस्तान और अफीम कारोबारियों का है. अफगानिस्तान पर नियंत्रण हासिल करने के बाद तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने जब से यह कहा है कि, ‘जब हम लोगों की सरकार रही है तब ड्रग्स का उत्पादन नहीं हुआ है. हम लोग एक बार फिर अफीम की खेती को शून्य तक पहुंचा देंगे. कोई तस्करी नहीं होगी,’ तब से ड्रग्स के कारोबारियों में खलबली मची हुई है.

वे जल्दी से जल्दी अफगानिस्तान से अपना स्टौक हटाने और दुनिया के देशों में जल्द से जल्द खपाने में जुट गए हैं. यही वजह है कि बीते कुछ दिनों में भारत के बंदरगाहों और सीमाओं पर भारी मात्रा में ड्रग्स पकड़ी जा रही हैं. मगर चिंता इस बात की है कि जो नहीं पकड़ी जा रही है, वह बहुत तेजी से पूरे देश में फैल रही है. तालिबान भले अफीम के अवैध कारोबार को प्रतिबंधित करने की बात कर रहा है, लेकिन उस पर भरोसा करना आसान नहीं है. जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं किया था, उस समय भी वह ड्रग्स के अवैध धंधे से मोटी कमाई कर रहा था. नाटो की रिपोर्ट के अनुसार, ड्रग्स, सीमा पार करने वाली वस्तुओं पर टैक्स, अवैध खनन के जरिए तालिबान सालाना औसतन 1.5 अरब डौलर की कमाई करता रहा था और मार्च 2020 में यह कमाई बढ़ कर 1.6 अरब डौलर तक पहुंच गई थी, जिस में बड़ा हिस्सा ड्रग्स से होने वाली कमाई का था. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक, तालिबान के शासन में अफीम की खेती बढ़ी है. वर्ष 1998 तक जहां यह 41 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में होती थी वहीं 2000 में यह 64 हजार हैक्टेयर क्षेत्र तक पहुंच गई थी. दुनिया के कुल अफीम उत्पादन का करीब 39 फीसदी हिस्सा अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में होता है और इस प्रांत के अधिकांश हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण रहा है. अफीम से आमदनी अफगानिस्तान में अफीम की खेती रोजगार का सब से अहम जरिया है.

अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक, तालिबान को अफीम पर टैक्स लगाने से आमदनी होती है, इस के अलावा गैरकानूनी ढंग से अफीम रखने और उस की तस्करी करने पर भी अप्रत्यक्ष तौर पर आमदनी होती है. अफीम उगाने वाले किसानों से 10 फीसदी टैक्स लिया जाता है. अफीम से हेरोइन बनाने वाले प्रोसैसिंग लैब से भी टैक्स वसूला जाता है और इस के कारोबारी भी टैक्स चुकाते हैं. एक आकलन के मुताबिक, गैरकानूनी ढंग से इस ड्रग्स के कारोबार से तालिबान को कम से कम 100 से 400 मिलियन डौलर के बीच सालाना आमदनी होती है. अमेरिकी वाचडौग स्पैशल इंस्पैक्टर जनरल फौर अफगान रिकंस्ट्रक्शन के मुताबिक, तालिबान की सालाना आमदनी में 60 फीसदी हिस्सा गैरकानूनी ड्रग्स कारोबार से आता है. कहां होता है ड्रग्स का इस्तेमाल अफगानिस्तान में होने वाली अफीम से जो हेरोइन बनाई जाती है, उस के 95 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल यूरोप में होता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2020 के बीच 90 फीसदी से अधिक नशीले पदार्थों की तस्करी सड़क के रास्ते हुई है. लेकिन हाल के दिनों में हिंद महासागर और यूरोप के बीच समुद्रीमार्ग के रास्तों पर ज्यादा ड्रग्स जब्त की जा रही हैं.

अफीम की खेती, उत्पादन और उस को जब्त किए जाने के मामलों को अगर ग्राफ में देखें तो यह स्पष्ट है कि बीते 2 दशकों के दौरान अफगानिस्तान में यह लगातार बढ़ा है. अमेरिकी वाचडौग स्पैशल इंस्पैक्टर जनरल फौर अफगान रिकंस्ट्रक्शन के मुताबिक, अफीम को जब्त किए जाने और तस्करों की गिरफ्तारी का इस की खेती पर कोई असर नहीं पड़ता है. जानकारों का मानना है कि तालिबान के लिए ड्रग्स के कारोबार पर काबू पाना आसान नहीं है क्योंकि अफगानिस्तान के कई प्रांतों में अफीम की खेती ही लोगों की आमदनी का एकमात्र जरिया है. पिछले शासनकाल के शुरुआती वर्षों में तालिबान ने भी ड्रग्स को अपनी आय का स्रोत बना रखा था. अब की शासन में भी अफीम की खेती रोकना उस की प्राथमिकता नहीं होगी. इसलिए इस में बढ़ोतरी जारी रहेगी और यूरोप में अफीम से बनने वाले मादक पदार्थ हेरोइन की आपूर्ति में उछाल आएगा. लोगों को सस्ते में हेरोइन उपलब्ध कराई जाएगी ताकि इस की लत बढ़ती जाए.

ब्रिटेन के पूर्व मंत्री जेरमी हंट का कहना है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के विनाशकारी फैसले के जो बुरे परिणाम संभावित हैं, उन में एक पूरी दुनिया में हेरोइन की आपूर्ति में बढ़ोतरी भी है. ब्रिटेन की नैशनल क्राइम एजेंसी के मुताबिक भी अफगानिस्तान में अफीम की खेती बढ़ रही थी. अब पश्चिमी सेनाओं की वापसी से देश में पैदा हुई अस्थिरता का असर इस की पैदावार पर पड़ सकता है. इसलिए अब जरूरी है कि सभी देश मिल कर ड्रग्स कारोबार और उस से जुड़े गंभीर अपराधों का मुकाबला करने की रणनीति बनाएं. द्य भारत पर है बड़ा खतरा अफीम की खेती में बढ़ोतरी भारत के लिए बड़ा खतरा है. यूनाइटेड नेशन औफ ड्रग्स एंड क्राइम 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, एशिया में भारत अवैध ड्रग्स सप्लाई का बड़ा शिकार है.

तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत के लिए अवैध ड्रग्स कारोबार को रोकना नई चुनौती बन गया है. अवैध ड्रग्स कारोबारियों के लिए भारत की स्थिति भी बेहद मुफीद है. भारत के एक तरफ अफगानिस्तान है तो दूसरी तरफ म्यांमार है. इन दोनों देशों में ड्रग का अवैध कारोबार तेजी से फलफूलता रहा है. इसलिए भारत को गोल्डन ट्रायंगल (इस का केंद्र म्यांमार) और गोल्डन क्रिसेंट (इस का केंद्र अफगानिस्तान) के बीच फंसा हुआ कहा जाता है. दुनिया में इन दोनों देशों के जरिए बड़े पैमाने पर ड्रग्स का अवैध कारोबार चलता है. अफगानिस्तान से चीन, भारत, हौंगकौंग, सिंगापुर, थाईलैंड में अवैध ड्रग्स की सप्लाई की जाती है. उस की सप्लाई में पाकिस्तान, अफगानिस्तान की बड़ी मदद करता है. इस के अलावा ईरान और मध्य एशियाई देशों के जरिए हेरोइन की तस्करी की जाती है. 13 सितंबर को मुंद्रा बंदरगाह पर पकड़ी गई हेरोइन ईरान के बंदर अब्बास से होते हुए अफगानिस्तान के कंधार से आई थी.

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