समूचे विश्व को सकते में डाल देने वाले पनामा पेपर्स लीक मामले में दुनिया भर के देशों में तहलका मचा हुआ है. इसे लेकर कई राष्ट्राध्यक्षों समेत भ्रष्ट शख्सीयतों में बेचैनी है तो ईमानदारी से टैक्स चुकाने वाले लोग स्तब्ध हैं. पिछले 10 सालों में नेताओं, कारपोरेट, अपराधियों, बिचौलियों और दूसरे नामीगिरामी लोगों द्वारा काली कमाई छिपाने वाले नापाक गठजोड़ का यह सब से बड़ा खुलासा है. पनामा पेपर्स में भ्रष्ट नेताओं, कारपोरेट्स और ला फर्म का ऐसा बेनाम गठबंधन सामने आया है जिस ने दुनिया के प्रभावशाली लोगों ने बेनामी शैल कंपनियों के माध्यम से अकूत दौलत छुपाने का काम किया है.
पनामा पेपर्स लीक मामला आर्थिक अपराध की दुनिया का अब तक का सब से बड़ा पर्दाफाश है. इस खुलासे ने दुनिया के आर्थिक तंत्र के पीछे छिपी खामियों को उजागर किया है. यह दुनिया भर के मीडिया की सामूहिक ताकत का इतिहास का सब से बड़ा उदाहरण है जिस ने एक साथ विश्व के भ्रष्ट नेताओं, उद्योगपतियों, खिलाडि़यों, अभिनेताओं, कुख्यात अपराधियों और नामीगिरामी शख्सीयतों की कमाई के काले कारनामों को उजागर किया है.
मामले के खुलासे के बाद शासकों के इस्तीफे हो रहे हैं. सरकारों के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए हैं पर भारत में खामोशी है. पनामा पेपर्स में भारत के भी 500 लोगों के नाम उजागर हुए हैं पर इस राष्ट्रद्रोह पर कोई अंगुली नहीं उठा रहा है. भारत के मीडिया में भी चुप्पी है.
दुनिया भर के रसूखदार लोगों के नाम सामने आने के बाद यह बातें कही जा रही है कि ये सभी गुप्त बैंक खाते और औफशोर कंपनियां गैरकानूनी नहीं हैं पर माना जा रहा है कि जिन लोगों के नाम आए हैं उन्होंने मनी लौंड्रिंग करते हुए रकम यहां लगाई और अपने देशों में टैक्स चोरी की है.
दरअसल जरमनी के म्युनिख शहर ने निकलने वाले ‘ज्यूडडायचे जाइटुंग’ अखबार ने अपने सूत्रों से पनामा की मोसैक फोंसेका नाम की ला फर्म के 1.15 करोड़ टैक्स दस्तावेज हासिल किए. यह फर्म कानूनी सेवा देने वाली कंपनी है जो कंपनियों की खरीदबिक्री में मदद करती है.
कहा जाता है कि 1977 में स्थापित इस कंपनी ने कई फर्जी कंपनियों को बिकवाने का खेल खेला जिस के जरिए विश्व के बड़े लोगों ने अपना पैसा सरकार से छिपा कर पनामा में जमा कराया ताकि टैक्स न देना पड़े. इस अखबार को 1970 से ले कर 2015 तक 2 लाख से ज्यादा कागजी कंपनियों के दस्तावेज मिले. विश्व के कई देशों से जुड़ी इतनी बड़ी संख्या वाली कंपनियों और उन के करोड़ों दस्तावेजों को पढना और जांचपरख करना आसान न था इसलिए इन दस्तावेजों को ‘इंटरनैशनल कंसोर्टियम औफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट’[आईसीआईजे] से साझा किया गया. अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकारों के इस संगठन में दुनिया भर के 100 से ज्यादा मीडिया संस्थानों के 370 पत्रकार जुड़े हुए हैं. लीक डाटा का साइज 2.6 टेराबाइट है. यह जूलियन असांजे के विकीलिक्स और सीआईए एजेंट एडवर्ट स्नोडेन के जारी किए डाटा से कई गुना ज्यादा हैं.
पनामा पेपर्स सब से पहले हासिल करने वाले जरमन अखबार ने कहा कि वह सभी 1.15 करोड़ पेपर्स सार्वजनिक नहीं करेगा. अखबार ने कहा कि दस्तावेजों में 2.10 लाख लोगों, कंपनियों, संस्थानों और ट्रस्टों की कमाई की जानकारी है. दुनिया भर के पत्रकार इन कागजातों की जांचपरख में जुटे हैं और आए दिन नए खुलासे हो रहे हैं.
भ्रष्टों की काली कमाई के अभेद्य किले में मीडिया की इस घुसपैठ की विश्व भर में प्रशंसा हो रही है. हालांकि फंसे हुए लोग मीडिया को कोस रहे हैं और खुद को पाक साफ बताते हुए बेतुके तर्क दिए जा रहे हैं.
पत्रकारों की इस पड़ताल से यह जाहिर हुआ है कि हर दौर में ताकतवर और अमीर लोग अपने देश का पैसा पनामा, कैमरून, बरमूडा, आइलैंड, ब्रिटिश वर्जिन, जिब्राल्टर, मकाऊ, स्विट्जरलैंड, लाइबेरिया और माल्टा जैसे देशों में छिपा कर रखता आया है.
आज जब लोकतंत्र का चौथ स्तंभ दुनिया भर में कारपोरेट और सत्ता तंत्र के आगे नतमस्तक नजर आ रहा है, ऐसे में जरमन अखबार और इंटरनैशनल कंसोर्टियम औफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स अपने दायित्व को निभाने में खरा उतरा है. भारत में तो मीडिया दिनरात धर्म, सत्ता तंत्र और व्यक्ति भक्ति में लीन दिख रहा है.
भारत में पिछले वर्षों में कौमनवेल्थ घोटाला, 2जी स्पैक्ट्रम, कोयला घोटाला जैसे मामलों का मीडिया ने पर्दाफाश नहीं किया. ये मामले सीएजी ने उजागर किए. ऐसे में जरमन अखबार और अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ जैसे पत्रकारीय दायित्व पर खरे उतरने वाले पत्रकारों की प्रशंसा करनी चाहिए. यही उम्मीद लोकतंत्र को बचा रही है.
जो काम सरकारों, विपक्षी पार्टियों और सरकारी एजेंसियों को करना चाहिए था, इस मामले में कहीं नहीं लगता कि ये अपना दायित्व निभा रहे थे. यह जोखिम भरा काम मीडिया ने कर दिखाया. यह काम खतरनाक है क्योंकि पनामा पेपर्स से पता चलता है कि मोजैक फोंसेका ने आतंकवादी संगठनों की मदद करने वाले, ड्रग माफिया से ले कर बैंक लूटने वाले और माफिया डौन दाऊद इब्राहिम जैसे खूंखार अपराधियों तक के पैसे यहां ठिकाने लगाए गए थे. यह सच है कि आज विश्व भर में मीडिया के दायित्व पर सवाल उठ रहे हैं. उसे कारपोरेट की गोद में जा बैठने वाला, पैसों का गुलाम बताया जा रहा है लेकिन फिर भी हर जगह ऐसी स्थिति नहीं है.
अब तो हमारे ज्यादातर मीडिया मालिक, संपादक, पत्रकार लगभग मुफ्त की जमीन, पदम पुरस्कार, राज्य सभा की मेंबरी के लिए लपलपाती लालसा में अपना दायित्व, पत्रकारिता के मूल उद्देश्य भूल गए हैं और सत्ता के साथ नाजायज संबंध कायम कर लिए हैं. मानो उसे अब जनता से समाज से कोई सरोकार नहीं रह गया है. इसीलिए लोग इसे प्रेस्टीट्यूट जैसे शब्द कहने पर मजबूर होने लगे हैं.
1977 में बने इंटरनेशनल कंसोर्टियम औफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स [आईसीआईजे] 76 देशों के विश्व के 109 मीडिया संस्थानों के खोजी पत्रकारों का ग्रुप है. इस संगठन का मकसद ग्लोबल दौर में पत्रकारिता किसी देश की सीमा के भीतर सिमट कर न रह जाए, बढते अपराध, भ्रष्टाचार किसी एक देश तक सीमित नहीं है इसलिए जरूरी था कि कई देशों के पत्रकार मिल कर काम करें. इस संगठन में कई तरह के अनुभवी लोग काम करते हैं जो खासतौर से सरकारी रिकार्ड पढने में माहिर होते हैं. तथ्यों की पड़ताल करने वाले वकील पत्रकार भी होते हैं.
पत्रकार संगठन ने बहुराष्ट्रीय तंबाकू कंपनियों द्वारा नशे की तस्करी और चोरी को उजागर किया. आईसीआईजे ने 2008 से 2011 में वैश्विक तंबाकू उद्योग की फिलिप मौरिस इंटरनैशनल व अन्य कंपनियों केरूस, मैक्सिको, उरुग्वे और इंडोनेशिया में अवैध कारोबार विकसित करने का खुलासा किया था. निजी सैन्य उत्पादक संघ, अभ्रक कंपनियों और जलवायु परिवर्तन वाले लौबिस्टों का भंडाफोड किया था.
पर उधर मोसैक फोंसेका ने हैकिंग का मामला दर्ज कराया है. कहा गया है कि यह इस फर्म के नेटवर्क में घुसपैठ का आपराधिक मामला है. उन के पास टैक्निकल रिपोर्ट है कि इसे विदेश के सर्वरों ने हैक किया है.
पनामा के वित्तीय सेवा सेक्टर को बुरी तरह हिला देने वाले इस मामले को कानूनी फर्म मोसेक फोंसेका और सरकार गैरकानूनी नहीं मानती. इन का कहना है कि औफशोर कंपनियां अपनेआप में कानून जायज हैं. मोसैक फोंसेका उस के ग्राहकों द्वारा किए गए कामों के लिए जिम्मेदार नहीं है इसीलिए दुनिया भर के राजनीतिबाज और दूसरे रसूखदार लोग अपने बचाव में यही राग अलाप रहे हैं कि उन्होंने कुछ भी गैर कानूनी नहीं किया.
पनामा पेपर्स खुलासे के बाद आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिंगमुदुर दावी गुनलुन और चिली के ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल के मुखिया की कुर्सी छीन ली. आइसलैंड में तो लोग प्रधानमंत्री के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे पर भारत में न तो मीडिया में, न राजनीतिक क्षेत्र में ज्यादा हलचल है. टेलीविजन चैनलों पर कोई बहस नहीं है न सोशल मीडिया में क्योंकि जिन लोगों के नाम सामने आए हैं वे तो इस देश के भगवानों के बराबर हैं, सत्ता के नजदीकी हैं और महान देशभक्त भी. विश्व प्रेस आजादी दिवस पर ह रिपोटर्स बिदाउट बौर्डर्स की ओर से जारी रैंकिंग में भारत का स्थान 180 देशों में 136वां है. अंदाज लगाया जा सकता है हम पत्रकारिता में कहां हैं.
अब भारत सरकार ने जांच की बात कही है जिस में एक बहुपक्षीय जांच समूह उन नामों से जुड़े देश और विदेश स्थित खातों की छानबीन करेगा और धन लगाने के स्रातों के बारे में पता करेगा. यह तय है कि इस से किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा. हालांकि अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्र्या राय, अडाणी जैसे फंसे हुए लोग ढुलमुल तर्कों से खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें पता है कि उन का बाल भी बांका नहीं होगा. सरकार ने पहले ही काले धन की घोषणा करने वालों के साथ रियायत दिखा रही है. उन के घोषित धन के करीब आधे पर टैक्स छूट देने की बात कही थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में काले धन को देश में लाने की खूब बातें की थीं. हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपए डालने का उन का चुनावी भाषण चर्चा में रहा था. सरकार ने काले धन को वापस लाने के मकसद से 13 देशों के साथ टैक्स इनफोरमेशन एक्सचैंज एग्रीमेंट भी किए लेकिन मोदी सरकार के दो साल के कार्यकाल में बात केवल स्वैच्छिक घोषणा से आगे नहीं बढ पाई. हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि विदेशों में जमा धन का खुलासा न करने वालों के खिलाफ कड़ी काररवाई की जाएगी पर ये मामले वर्षों जांच और फिर अदालतों में पड़े रहेंगे. कुछ ठोस नतीजा निकलेगा इस में संदेह है.
हालांकि पिछले साल सरकार ने काला धन विधेयक पास किया था जिस में भारी जुर्माने और आपराधिक मुकदमे की काररवाई का प्रावधान है. अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत वित्तीय संस्थानों को ग्राहकों की वित्तीय जानकारियां सरकार से साझा करनी होती है, जहां उस पर टैक्स देना पड़ता है. नियमों के तहत किसी भी देश में कानूनी रूप से अवैध संपत्ति रखने वाला व्यक्ति दोषी कहलाता है इसलिए वित्तीय पारदर्शिता लाना जरूरी है. अमेरिका में फोरेन अकाउंट टैक्स कंप्लायंस एक्ट के कारण देश का पैसा अवैध रूप से बाहर नहीं जा पाता. इस के तहत प्रत्येक व्यक्ति को विदेश में मौजूद अपने खातों की सही जानकारी देना आवश्यक होता है.
दुनिया के कई देशों में कमाई छिपाने, टैक्स चोरी करने और किसी सुरक्षित जगह पर पैसा रखने के लिए वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है. इन देशों को टैक्स हैवन कहा जाता है. यह कारोबार बहुत बड़ा है. इस का अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता. कई देशो की तो समूची अर्थव्यवस्था ही इसी पैसे पर टिकी है.
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गेब्रियल जकमैन लिखते हैं कि इन द्वीपों की शैल कंपनियों का पैसा न्यूयार्क के रियल एस्टेट से ले कर बांड इक्विटी और यूरोप तक निवेश होता है. प्रतिबंध की गतिविधियां रोकी जा सकती हैं. मनी लौंड्रिंग पर रोक लगाने से आतंकवाद और अपराध को वित्तीय मदद बंद करने में सहायता मिलेगी.
अनेक देशों में काला धन रोकने के लिए कानून भी बने हुए हैं. विश्व भर में टैक्स जानकारी साझा करने के लिए 500 से ज्यादा समझौतों और अमेरिकी कानून फोरेन अकाउंट टैक्स कंप्लायंस ऐक्ट के लागू होने की तैयारियों के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए यह साबित कर पाना बड़ा मुश्किल हो गया है कि टैक्स हैवन देशों में इकट्ठा खरबों डौलर चोरी के हैं या कानूनी तौर पर जमा किए गए हैं.
ऐसे खुलासे पहले भी हुए हैं. 2011 में विकीलिक्स ने भारतीयों समेत विश्व के कई नाम उजागर किए थे जिन्होंने स्विस बैंकों में धन जमा कराया था. विकीलिक्स मामला 5 अखबारों ने मिल कर किया था. इस में भारत के 22 लोगों के नाम सामने आए. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर स्पेशल इंवेस्टिगेटिव टीम बनाई. सीआईए के एक पूर्व कर्र्मचारी एडवर्ट स्नोडेन ने कई पत्रकारों के साथ मिल कर दस्तावेज जारी किए थे जिस से विश्व भर में खलबली मची रही.
भारतीयों द्वारा विदेशी बैंकों में चोरी से जमा किए गए धन का कोई निश्चित आंकड़ा तो नहीं है पर जानकारों का अनुमान है कि यह लगभग 7,280,000 करोड़ रुपए हैं.
भारत और दूसरे देशों में जहां पनामा पेपर्स खुलासे को सराहा जा रहा है वहीं चीन के राष्ट्रपति शीन जिनपिंग और उन के जीजा डेंग जियागुई सहित कई नेताओं के नाम सामने आने पर वहां की लाइव जानकारी दिखाने वाली वेबसाइटों पर सेंसर लगा दी गई है. इन में इकोनोमिस्ट और टाइम भी शामिल हैं ताकि चीन की जनता अपने नेतओं के भ्रष्टाचार के बारे में न जान सके. शी जिनपिंग के जीजा और उन की पत्नी ने अरबों डौलर रियल एस्टेट , शेयर होल्डिंग और अन्य निवेश क्षेत्र में लगाए थे. इस बात का 2012 में ब्लूमबर्ग न्यूज ने भी खुलासा किया था.
ओलिंपिक खिलाड़ी तात्याना नावका का नाम आने पर उन्होंने कहा कि मीडिया को कोई और काम नहीं है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मोदी से पूछ रहे हैं, मोदी सरकार पनामा पेपर्स पर क्यों नहीं बोल रहे हैं. वे काला धन रखने वालों पर काररवाई नहीं करेंगे क्योंकि अरुण जेटली हाल ही में नई फेयर एंड लवली स्कीम लाए हैं जहां कोई भी डाकू, लुटेरा, ड्रग डीलर, गैगस्टर अपने काले धन को कुछ टैक्स दे कर सफेद बना सकता है.
सोशल मीडिया पर पनामा पेपर्स में आ रहे नामों को महान देशभक्त कह कर कटाक्ष किए जा रहे हैं. अमिताभ बच्चन के बारे में कहा गया है कि वह देशभक्ति के गीत गाते हैं, कविताएं सुनाते हैं और टैक्स चोरी कर विदेशों में धन को छुपाते हैं.
मामले में दुनिया भर से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कुछ लोग इस में सीआईए का हाथ देख रहे हैं. कहा जा रहा है कि यह आपरेशन रूस और सीरिया के खिलाफ है जिस के पीछे वाशिंगटन और उस के पश्चिम पार्टनर हैं क्योंकि वे दोनों जगह सत्ता बदलना चाहते हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन का नाम भी सामने आया है. हालांकि वह स्वयं शामिल नहीं हैं पर उन के रिश्तेदार के नाम हैं. उधर सीरिया के राष्ट्रपति अल बशर असद का नाम भी है. इंटरनेशनल कंसोर्टियम औफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स को ओपन सोसायटी फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन का भी समर्थन हासिल बताया जा रहा है. फोर्ड फाउंडेशन द्वारा आईसीआईजे को आर्थिक मदद के दावा भी किया जा रहा है.
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पनामा पेपर्स खुलासे के दो दिन बाद कहा कि टैक्स चोरी से बचने के ये तरीके दुनिया भर के लिए समस्या है. इन में से बहुत से खाते और कंपनियां कानूनी हैं पर समस्या तो यही है. समस्या यह है कि ये कानून ही क्यों बने हैं.
ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी की काउंसल लिज कोंफालोन कहती हैं कि पनामा पेपर्स मामला बिचौलियों का ऐसा चित्रण है जिस में पनामाई ला फर्म मोजैक फोंसेका बेनाम मालिकों और कंपनियों के बीच स्क्रीन की तरह है. वह अमेरिका समेत कई देशों में सेवा देती है. अमेरिका में कोई भी व्यक्ति सही व्यक्ति का नाम उजागर किए बिना कंपनी खोल सकता है. अधिकारियों को पता होता है कि कंपनी गलत काम कर रही है पर उसे यह पता नहीं होता है कि गलत काम कौन कर रहा है. अगर उस का पता चल भी जाए तो राशि का पता नहीं चलता. इस तरह बेनामी कंपनी के मालिक को सजा से मुक्त होने का लाइसेंस मिल जाता है. यहां बेनामी कंपनी खोलना लाइब्रेरी कार्ड बनवाने से भी ज्यादा आसान है.
सोशल मीडिया में तरुण कहते हैं, ‘‘पनामा घोटाले में शामिल लोगों पर मोदी कोई काररवाई नहीं करेंगे. ज्यादातर उन के परिचित और करीबी हैं. सभी भ्रष्ट लोगों और काला बाजार करने वालों के लिए भाजपा सुरक्षित पनाहगाह है. अगर कोई भाजपा में शामिल होता है तो उस के सारे अपराध माफ हो जाते हैं.’’
सचिन ने लिखा है, ‘‘लालची, भ्रष्ट और सत्ता से ताकतवर बने लोग गैरकानूनी माध्यम से पैसे को दूसरे देशों में पहुंचाते हैं और बेनामी कंपनियों के जरिए उस पैसे का हस्तांतरण होता है. यह देश के साथ गद्दारी है. ऐसे लोगों को कड़ी सजा मिले.’’
नितिन धारीवाल ने सवाल उठाया है कि टैक्स चोरी करते वक्त तमाम सरकारी एजेंसियां कहां चली जाती हैं? इंफोर्समेंट डिपार्टमेंट, सीबीआई, सीआईडी, इंकम टैक्स विभाग क्या कर रहे होते हैं? जब किसी मामले का खुलासा होता है तभी सारे विभाग जागते हैं.
पनामा जैसी जगह पर हम ऐसी वित्तीय गतिविधियां क्यों चलने दे रहे हैं जिस के पैसों का उपयोग अपराध को बढावा देने में हो रहा है. एक सज्जन लिखते हैं कि बेनाम वाली कंपनियां अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होती हैं.
आज जब पत्रकारिता दम तोड़ रही है, निश्चित ही पनामा पेपर्स लीक मामला विश्व में जवाबदेही पत्रकारिता का बड़ी मिसाल है.जरमन अखबार और पत्रकारों के इस संगठन के अपने दायित्व से जिम्मेदार पत्रकारिता के मापदंड स्थापित हुए हैं.
अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ के सहयोगी
आईसीआईजे के साथ विश्व भर के जो अखबार और न्यूज एजेंसियां जुड़ी हुई हैं उन में ये प्रमुख हैं,
बीबीसी, ले मोंडो, फ्रांस, अल मुंडो, स्पेन, अल पेइस, स्पेन, द हफ्फिंगटन पोस्ट, अमेरिका, द एज, आस्ट्रेलिया, फोल्हा द साओ पाउलो, ब्राजील, ले सोइर, बेल्जियम, द साउथ चाइना मोर्निंग पोस्ट, हांगकांग, स्टर्न, जरमनी, द गार्जियन, ब्रिटेन, द संडे टाइम्स, ब्रिटेन, प्रोसेको, मैक्सिको, 24 चासा, बुल्गारिया, एबीसी कलर डिजिटल, पैरागुआ, द असाही शिंबुन, जापान, कनाडियन ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन, कनाडा, सीआईएन-आईजेसी, क्रोशिया, कौमनवेल्थ मैगजिन, हांगकांग, अल कोमेरियो, एक्वाडोर, अल कांफिडेंशिल, स्पेन, फिन्निश ब्राडकास्टिंग कंपनी, फिनलैंड, फोकस, स्वीडन, द इंडियन एक्सप्रैस, भारत, इसरा न्यूज एजेंसी, थाइलैंड, द आइरिश टाइम्स, आयरलैंड, न्यूजटपा, दक्षिण कोरिया, कीव पोस्ट, उक्रैन, ला नैशियन, अर्जेंटीना, ला नैशियन, क्रोशिया, ले मैटिन डामांचे व सोन्नटंग्स जेइटुंग, स्विट्जरलैंड, ले एस्प्रैसो, इटली, मलेशियन किनी, मलेशिया, मिंग पाओ, हांगकांग, एनडीआर, जरमनी, न्यू एज, बंगलादेश, न्यूज, आस्ट्रेलिया, नोर्वेजियन ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन, नोर्वे, नोवाया गजट, रूस, नोवी मैगजिन, सर्बिया, ओरिगो, हंगरी, पाक ट्रिब्यून, पाकिस्तान, पाकिस्तान न्यूज सर्विस, पाकिस्तान, प्रिमियम टाइम्स, नाइजीरिया, रेडिया फ्री यूरोप, रेडिया लिबर्टी, अजरबेजान, रुस्टवी टीवी, जार्जिया, सुडडायचे जाइटुंग, जरमनी, द न्यूयार्क टाइम्स, द सिडनी मोर्निंग हैराल्ड, आस्ट्रेलिया, टा निया, ग्रीक, ट्राउ, नीदरलैंड, द वाशिंगटन पोस्ट.
21 ज्यूरिस्डिक्शन में फैला काला कारोबार
मोसैक फोंसेका विश्व की 5 सब से बड़ी औफशोर कंपनियों में से एक है जिस का कारोबार दुनिया के 21 देशों में फैला हुआ है. इन में ब्रिटिश वर्जिन आइसलैंड में सब से ज्यादा 1,13,000 कंपनियां हैं. दूसरा स्थान पनामा का है जहां मोसैक फोंसेका का हैडक्वार्टर है. इन में ये देश हैं, बहामास, ब्रिटिश अंगुएला, कोस्टारिका, हांगकांग, जर्सी, नेवादा, नीए, रास अल खेमाह, सेसेल्स, ब्रिटेन, वायोमिंग, बेलिज, ब्रिटिश वर्जिन आइसलैंड, साइप्रस, एसले औफ मैन, माल्टा, न्यूजीलैंड, पनामा, समोआ, सिंगापुर, उरुग्वे.