Nepal Revolution : नेपाल में क्रांति हुई है. कई लोग इसे रूस की क्रांति की झलक बता रहे हैं लेकिन कई लोग इसे एक नेतृत्वविहीन और अनियंत्रित भीड़ का आंदोलन मान रहे हैं. ट्यूनेशिया और बंगलादेश में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. 10-20 हजार लोगों की भीड़ आंदोलन की शक्ल में आती है और सरकारी प्रतिष्ठानों को घेर लेती है. स्थिति से निपटने के लिए सेना सक्रिय होती है और कई युवा मारे जाते हैं. इन मौतों के बाद युवाओं का गुस्सा बढ़ता है और आंदोलन उग्र हो जाता है.

युवाओं की यह भीड़ सत्ताधारियों की तलाश में सबकुछ तबाह करने पर तुल जाती है. सेना इस भीड़ को कंट्रोल नहीं कर पाती. इस बीच बड़े नेताओं के इस्तीफे का सिलसिला शुरू होता है और सेना इन्हें बचा कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देती है. भीड़ की यह टेंडेंसी बिलकुल वैसी ही है जैसे बंगलादेश और ट्यूनेशिया में देखी गई थी.

पिछले एक दशक में इसी तरह का तख्तापलट श्रीलंका, बंगलादेश, यूक्रेन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, ट्यूनीशिया, मिस्र, सूडान, माली, नाइजर, जौर्जिया, किर्गिस्तान, बोलीविया, थाईलैंड में भी हुआ.

इन सभी देशों में हुए जनआंदोलनों का परिणाम तख्तापलट के रूप में हुआ और सब से हैरानी की बात यह कि तख्तापलट के बाद जो भी नई सरकार बनी वो पूरी तरह अमेरिका कि पिट्ठू सरकार थी.

श्रीलंका में 2022 में इसी तरह का जन सैलाब उमड़ा और इस जनसैलाब ने तख्तापलट कर दिया. अमेरिका ने आर्थिक संकट से झूझते श्रीलंका की नई सरकार को 5.75 मिलियन डौलर की मानवीय सहायता भेजी. बंगलादेश में 2024 में जन आंदोलन के बाद बनी सरकार को अमेरिका ने समर्थन दिया. यूक्रेन में 2014 में हुए तख्तापलट के बाद अमेरिका ने नई सरकार को समर्थन दिया, जिस में सैन्य सहायता और आर्थिक पैकेज शामिल थे.

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