‘‘15 रुपए प्रति किलोग्राम बिकने वाला नमक 50 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है. ऐसे में गरीब तो रोटीनमक भी नहीं खा सकता,’’ यह कहते हुए विनय थापा गुस्से में आ जाता है और उस की आंखों में चमकते आंसू उस के जैसे तमाम नेपालियों के दर्द को बयां कर देते हैं.
‘‘जिस आलू को 6 से 10 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर कोई पूछता नहीं था, उस के भाव 40 रुपए प्रति किलोग्राम हो गए. इस से गरीब जनता पिस रही थी. ऐसे आंदोलन का क्या फायदा कि गरीब जनता बिना वजह के पिसे. भारत, नेपाल और मधेशियों की तनातनी के बीच गरीब नेपाली घुन की तरह पिसने लगा था,’’ 55 साल का दिलीप यादव यह कहते हुए तैश में आ जाता है. आंदोलन की वजह से उस के दूध का कारोबार ठप हो गया था और वह भारत जा कर दूध नहीं बेच पा रहा था.
नेपाल की माली हालत का आटा जब गीला होने लगा और नेपाली जनता को आटेदाल का भाव महसूस होने लगा तो मधेशियों ने अपने आंदोलन के चूल्हे में पानी डालने में ही भलाई समझी. पिछले 5 महीने से चल रहा मधेशी आंदोलन आखिरकार काफी जद्दोजेहद के बाद पिछले माह खत्म हो गया. मधेशियों द्वारा की गई आर्थिक नाकेबंदी की वजह से सामान भारत से नेपाल नहीं पहुंच पा रहा था. वहां अराजक हालात पैदा हो गए थे. अपने हक की मांग कर रहे मधेशियों पर नेपाल की आम जनता, दुकानदार, रिकशा, ठेला वाले, टैक्सी वाले और ट्रांसपोर्टर्स ने अपना गुस्सा निकालना शुरू कर दिया था. वे लोग नेपाल में जरूरी सामानों की कमी की वजह मधेशियों को ही मान रहे थे और नेपाल सरकार भी बारबार मधेशियों व भारत सरकार को इस के लिए जिम्मेदार ठहरा रही थी.
पिछले साल 20 सितंबर को नेपाल का नया संविधान लागू होने के बाद से मधेशी इस बात से नाराज थे कि संविधान में उन की अनदेखी की गई है और पहाडि़यों को ज्यादा तरजीह दी गई है. उस के बाद से ही मधेशी संगठनों ने आर्थिक नाकेबंदी शुरू कर दी थी. भारत और नेपाल की सरकारें मधेशी आंदोलन को खत्म करने को ले कर माथापच्ची करते रह गईं और आम नेपालियों ने आंदोलन की आग को ठंडा कर दिया.
जनदबाव के आगे टिक न पाए
कुछ दिन पहले तक मधेशियों का साथ दे रहे बौर्डर इलाके के नेपालियों और भारतीयों ने 5 फरवरी को बीरगंज के मैत्री सेतु पर लगे आंदोलनकारियों के तंबुओं को तहसनहस कर डाला. आम लोगों के गुस्से को देख कर आंदोलनकारी भाग खड़े हुए. दूसरे दिन मधेशियों ने दोबारा नाकेबंदी की कोशिश की तो लोगों ने फिर से उन्हें खदेड़ कर भगा दिया. उस के बाद मधेशियों और आम लोगों के बीच जम कर पत्थरबाजी हुई. इस में दुकानदारों, छोटे कारोबारियों और ट्रांसपोर्टर्स ने भी नेपालियों का साथ दिया.
भारत के ट्रांसपोर्टर सुरेंद्र गुप्ता कहते हैं कि मधेशियों की आर्थिक नाकेबंदी की वजह से उन के जैसे कई ट्रांसपोर्टर्स को करोड़ों रुपयों का नुकसान हो गया. हजारों ट्रक 5 महीने तक खड़े रह गए और ड्राइवर, खलासी समेत सभी मुलाजिमों को बैठा कर वेतन देना पड़ा. भारत के रास्ते कोई भी सामान नेपाल नहीं जा पा रहा था, इस से आम नेपालियों समेत कारोबारियों व दुकानदारों के सामने भी भुखमरी की हालत पैदा हो गई थी. मधेशी नेता कहते हैं कि वे अपनी मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रखने के मूड में थे पर जनदबाव की वजह से उन्हें आंदोलन वापस लेना पड़ा. वहीं, कई मधेशी नेता दबी जबान में यह भी कहते हैं कि मधेशी दलों के भीतर भी आंदोलन को खत्म करने का दबाव था.
बिहार के पूर्वी और पश्चिमी चंपारण में नेपाल में चल रहे मधेशी आंदोलन की वजह से अराजक हालात बढ़ते जा रहे थे और आंदोलन की ओट में तस्कर चांदी काटने लगे थे. भिखनाठोढ़ी से ले कर रक्सौल तक तस्करों का बड़ा नैटवर्क कायम हो चुका था. इस नैटवर्क ने मजदूर तबके और छोटेछोटे बच्चों को जोड़ लिया. नेपाल में मजदूरी का काम बंद होने के बाद मजदूर पेट पालने के लिए आसानी से तस्करों के झांसे में फंस गए थे.
पिछले 5 महीनों से चल रहे मधेशी आंदोलन की वजह से खाने के अनाजों समेत जरूरी चीजें भारत से नेपाल नहीं जा पा रही थीं, जिस को देखते हुए तस्करों ने फायदा उठाने के लिए अपना नैटवर्क बना लिया था. डीजल, पैट्रोल और कैरोसिन तेल को बड़े गैलनों से ले कर छोटे डब्बों में भरभर कर भारत से नेपाल पहुंचाया जा रहा था और उन्हें ऊंची कीमतों पर बेचा जा रहा था. इस के साथ ही, भारतीय गैस के सिलैंडर को भी रिकशों, ठेलों और साइकिलों पर लाद कर नेपाल पहुंचाया जाने लगा था. भारतीय गैस सिलैंडर की गैस को नेपाली तुरंत छोटे गैस सिलैंडरों में भर कर बेचने का नया धंधा करने लगे थे. 800 रुपए में मिलने वाले बड़े गैस सिलैंडर को लोग 10 हजार रुपए तक में खरीद रहे थे. गौरतलब है कि भिखनाठोढ़ी में पंडई नदी के दक्षिणी सिरे पर सीमा सुरक्षा बल का कैंप है. उस के उत्तर की ओर नेपाल का ठोढ़ी बाजार है. नेपाल की ओर पंडई नदी के किनारे छोटेबड़े तंबुओं की एक बस्ती ही बस गई थी, जहां से खानेपीने समेत कई तरह के जरूरी सामानों को इधरउधर पहुंचाया जा रहा था. बड़े सामानों की बात तो दूर, नमक के पैकेटों की भी तस्करी होने लगी थी. एक किलोग्राम नमक का पैकेट भारत में 18 रुपए में खुदरा बाजार में बेचा जाता है, वह नेपाल में 40 से 50 रुपए में बिकने लगा था. तस्करी के काम में लगे बच्चे रोजाना 400 से 500 रुपए की कमाई करने लगे थे.
तस्करों ने भारत को भले ही नुकसान पहुंचाया लेकिन वे नेपाल के लोगों को राहत दे रहे थे. बीरगंज चैंबर औफ कौमर्स के अध्यक्ष प्रदीप केडिया बताते हैं कि करीब 1 लाख लिटर से ज्यादा डीजल रोज अवैध तरीके से भारत से नेपाल पहुंचाया जा रहा था. पहले तो मधेशियों ने पूरी तरह से नाकेबंदी कर रखी थी पर जनता की खराब होती हालत को देखते हुए पिछले कुछ दिनों से भारत सरकार बीरगंज को छोड़ कर बाकी बौर्डर से जरूरी सामानों को नेपाल भेजने लगी थी. उस के बाद से ही पहाड़ों पर मधेशी आंदोलन की पकड़ ढीली पड़ने लगी थी.
नेपाल सरकार मधेशियों के आंदोलन को लंबे समय तक लटका कर उन्हें थकाने की राजनीति कर रही थी और उस में आम नेपाल पिस रहा था. नेपाल सरकार बारबार यह रट लगा कर अपनी जवाबदेही से कन्नी काट रही थी कि मधेशी आंदोलन को भारत का समर्थन हासिल है. यह कह कर वह संयुक्त राष्ट्र समेत पूरी दुनिया में खुद को निरीह साबित करने की कोशिश करती रही पर उसे कामयाबी नहीं मिल सकी. उधर, चीन भी तिब्बत के रास्ते सामान ढुलाई के लिए तैयार नहीं हो कर नेपाल को झटका दे चुका है. नेपाल सरकार लगातार मधेशी आंदोलन को दबाने में लगी हुई थी, जिस से हर तरफ से उस की छीछालेदर होने लगी थी.
आंदोलन से सामान की किल्लत
मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट आने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की टीम नेपाल पहुंची. टीम ने मधेशी आंदोलनकारी और सरकार से बात की. नेपाल के प्रधानमंत्री खडग प्रसाद शर्मा ओली ने पिछले 21 दिसंबर को ही मधेशियों की मांगों के मुताबिक संविधान में संशोधन करने का ऐलान किया था. उपप्रधानमंत्री कमल थापा ने इस बारे में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को जानकारी दी थी. उस के बाद 4 जनवरी को मधेशी समस्या को सुलझाने के लिए 6 सदस्यों वाले कार्यदल का गठन किया गया. दल में मधेशियों की ओर से राजेंद्र श्रेष्ठ, रामनरेश राय और हृदयेश त्रिपाठी एवं सरकार की तरफ से महेश आचार्य, कृष्ण बहादुर माहरा को शामिल किया गया. सरकार ने दावा किया था कि 72 घंटे के भीतर कार्यदल मधेशी समस्या को निबटाने के लिए अपनी रिपोर्ट सौंप देगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. उस के बाद 13 जनवरी की तारीख तय की गई और वह भी फेल हो गई. उस के बाद फिर से नई तारीख 19 जनवरी रखी गई थी और वह भी बगैर किसी नतीजे के गुजर गई.
वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नेपाल में रसोई गैस की कीमत को तस्करों ने 600 फीसदी से ज्यादा बढ़ा दिया है. इस के साथ ही चावल, आटा, दाल, सब्जी आदि की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि गरीब नेपाली को एक टाइम का खाना भी ठीक से नहीं जुट रहा है. नेपाल में तस्करी का पैट्रोल 250 रुपए प्रति लिटर बिक रहा है. भारत में पैट्रोल 65 से 70 रुपए प्रति लिटर मिलता है. इस हिसाब से छोटा तस्कर भी नेपाल में पैट्रोल बेच कर प्रति लिटर 180 रुपए कमा रहा है यानी 100 लिटर भी अगर रोज बेचे तो उसे 18 हजार रुपए का रोज फायदा हो रहा है. मधेशी आंदोलन की वजह से भले ही नेपाल में जरूरी सामान की भारी किल्लत हो गई हो और इस की वजह से भारत व नेपाल के बीच रिश्तों में खटास पैदा हो गई हो पर संयुक्त राष्ट्र संघ समेत कई संगठनों ने मधेशी आंदोलन को सही ठहराया है.
संयुक्त राष्ट्र संघ, नेपाल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित 45 देशों ने साफ कह दिया है कि मधेशी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और वे हिंसात्मक नहीं हैं. सभी ने नेपाल सरकार को बातचीत के जरिए समाधान निकालने की सलाह दी है. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल नेता और मीडिया फौर बौर्डर हारमनी के संरक्षक रघुवंश प्रसाद सिंह कहते हैं कि मधेशी आंदोलन को ले कर भारत सरकार उदासीन है. आंदोलन कर रहे मधेशियों को नेपाल सरकार भारतीय बताती है जबकि भारत सरकार उन्हें नेपाली करार देती है. इसी से संकट गहरा होता जा रहा है. मधेशियों ने जनदबाव में फिलहाल अपना आंदोलन खत्म कर दिया लेकिन उन की समस्याओं और मांगों पर गौर करना जरूरी है. अगर नेपाल सरकार ने ज्यादा समय तक इन की अनदेखी की तो नेपाल को दोबारा आंदोलन की आग में जलना पड़ सकता है.