दुनिया की सब से बड़ी आर्थिक शक्ति और ताकतवर मुल्क बनने की राह पर चल रहे चीन और इस मुल्क के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर सब की निगाहें हैं. चीन को इस मुकाम पर लाने में अहम भूमिका निभाने वाले जिनपिंग की असल जिंदगी, राजनीतिक व अंतर्राष्ट्रीय रणनीतियों और विवादों की परत दर परत पड़ताल कर रही हैं गीतांजलि.
दुनिया के कई देशों के नेतृत्व में बीते कुछ समय में उथलपुथल या व्यवस्थित तरीके से बदलाव आए हैं. इस में अमेरिका, रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान समेत कई खाड़ी देश हैं. लेकिन इन सब में से दुनिया की नजरें जिस देश और उस के नेतृत्व पर टिकी हैं, वह चीन है. इस की एक वजह यह है कि चीन के समाचार वहीं की सरकारी एजेंसियों के हवाले से ही दुनिया के सामने आ पाते हैं. दूसरी बात, अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सब से बड़ी आर्थिक ताकत बन चुके चीन पर उस से ज्यादा और कम ताकतवर देशों की नजरें हैं. तीसरी और सब से अहम बात यह है कि लंबे समय से चीन में माओत्से तुंग या डेंग शियाओपिंग जैसा प्रभावशाली और ताकतवर नेतृत्व सामने नहीं आया था जिस ने अपनी नीतियों से अमेरिका समेत दुनिया को प्रभावित किया था. चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस दिशा में धीरेधीरे ही सही, कदम बढ़ा रहे हैं. करीब 2 साल के भीतर ही उन्होंने घरेलू और विदेशी दोनों मोरचों पर अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी है.
वैसे तो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दिए नारे काफी पसंद किए जाते हैं लेकिन उन का यह कहना, ‘वे न तो पुराने रास्ते पर चलेंगे और न ही गलत रास्ते पर’ बताता है कि उन के पास चीन के भविष्य के लिए एक विजन है. उन्होंने चीन के सपने को पूरा करने का बीड़ा उठाया हुआ है. इस के तहत उन्हें अपने देश में निवेश की गति बरकरार रखते हुए आर्थिक विकास की दर को हरगिज नीचे नहीं आने देना है और जनहितकारी नीतियों को भी पूरा करना है.
ऐसे हुए लोकप्रिय
चीनी राष्ट्रपति शी जनता के बीच छा जाने की कला में माहिर हैं. इस के लिए वे सरकारी और गैरसरकारी मीडिया की भी मदद ले रहे हैं. राह चलते किसी रैस्टोरैंट में लंच करना हो या किसी मिनीबस में सफर करना या फिर लोगों के बीच जा कर उन से बातचीत करना, लोगों को उन का अंदाज पसंद आ रहा है. यही नहीं, वे अपनी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से भी देशवासियों को प्रभावित करने में सफल रहे हैं. उन्होंने एक समय में कड़ाई से पालन होने वाली ‘एक बच्चे’ की नीति में भी ढील दे कर थोड़ी वाहवाही बटोरी है. आज शी इतने लोकप्रिय हैं कि उन्हें देशवासियों से निक नेम ‘शी दादा’ भी मिल गया है.
माना जा रहा है कि चीन में माओ के बाद कोई इतना लोकप्रिय नेता सामने आया है. समयसमय पर शी के दिए नारे भी लोगों में काफी पसंद किए जा रहे हैं. चाहे वे ‘चीन के सपने’ की बात करें या भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में दिए गए नारे ‘ताकत को पिंजरे में कैद करना हो’, हाथोंहाथ लिया जा रहा है.
ऐसे बने ताकतवर
जैसे ही शी देश की कमान संभालने के लिए तैयार हुए, उन्होंने चीनी सेवान पीएलए को अपने करीब रखने के लिए विशेष अभियान शुरू किया. सत्ता संभालने के 100 दिनों के भीतर ही शी ने थलसेना, वायुसेना, अंतरिक्ष कार्यक्रम एवं मिसाइल कमांड केंद्रों का दौरा किया और सीएमसी के चेयरमैन के रूप में 4 सामान्य विभागों और 7 सैन्य क्षेत्रों में वरिष्ठ कर्मचारियों का बड़े पैमाने पर तबादला किया. उन का पहला महत्त्वपूर्ण दौरा दक्षिण चीन सागर में ग्वांगझू सैन्य क्षेत्र का था, जहां उन्होंने घोषणा की कि वे चीनी सेना यानी पीएलए को बेहतर प्रशिक्षण, उपकरण और पुनर्गठन के जरिए एक आधुनिक लड़ाकू बनाना चाहते हैं.
अपने सत्तासीन होने के 6 महीनों के भीतर ही उन्होंने सरकार, सेना और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ग्रहण कर लिया. पिछले 2 दशकों से चीन को पोलित ब्यूरो के सदस्य सामूहिक रूप से चला रहे थे लेकिन अब कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शी ब्यूरो के बाकी सदस्यों से ऊपर हैं जैसा कि माओ और डेंग ने अपने समय में किया था.
ब्रिक्स में चीन का दबदबा
ब्रिक्स देशों में भारत के अलावा ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश शामिल हैं और चीनी अर्थव्यवस्था अकेले ही बाकी सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से बड़ी है. पिछले वर्ष जुलाई में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ पर निर्भरता कम करने के लिए ब्रिक्स देशों ने आपात कोष के साथ ही एक विकास बैंक की स्थापना की.
चीन का दबदबा इसी बात से दिख जाता है कि विरोध के बावजूद वह इस बैंक का मुख्यालय चीन के शंघाई में ले जाने में सफल रहा और भारत को सिर्फ इस बात से संतुष्ट होना पड़ा कि इस बैंक का पहला सीईओ भारत से होगा.
ब्रिक्स दौरे पर ब्राजील पहुंचने के साथ ही चीनी राष्ट्रपति शी ने भारतीय प्रधानमंत्री को एपेक यानी एशिया ऐंड पैसेफिक सम्मेलन का न्योता दे कर अपनी कूटनीतिक समझदारी का परिचय दिया. इस दौरान चीनी राष्ट्रपति की कही गई लाइन दुनियाभर की मीडिया में सुर्खियां बनी. चीन और भारत जब मिलते हैं तो दुनिया देखती है. दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच 1 घंटे से लंबी चली वार्त्ता में चीन ने भारत के सर्विस सैक्टर में व्यापार बढ़ाने और शंघाई कोऔपरेशन और्गनाइजेशन में भारत की भागीदारी बढ़ाने के मामले उठाए. भारत ने सीमा पर शांति, आर्थिक रिश्ते सुधारने, भारत में निवेश बढ़ाने, आतंकवाद से मिल कर निबटने के मामलों को तरजीह दी.
हालांकि, इस दौरान चीन ने सीमा विवाद पर अपना पुराना रुख दिखाया और 4,057 किलोमीटर लंबी सीमा यानी एलओसी पर विवाद होने की बात को मानने के बजाय कहा कि अरुणाचल प्रदेश से लगी 2 हजार किलोमीटर लंबी सीमा जिसे चीन, दक्षिणी तिब्बत का नाम देता है, पर ही विवाद है. यही नहीं, इस सम्मेलन में भारत के विरोध के बावजूद व्यापार नियमों में ढील देने वाले व्यापार समझौते को लागू करने पर सहमति बनाई गई जिस में भारत के साथ चीन का भी हाथ था. भारत ने इस से अपने देश में सब्सिडीयुक्त अनाज पाने वाले गरीबों के प्रभावित होने की बात रखी लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया.
क्या कह गया भारत दौरा
भारत दौरे पर आने से पहले चीनी राष्ट्रपति शी और मुंबई में चीनी उपदूत ने भारत में 100 बिलियन डौलर निवेश की बात कही थी लेकिन इसी साल सितंबर में शी के दौरे पर महज 20 बिलियन डौलर निवेश की डील ही साइन हो सकी. माना जा रहा था कि शी भारत और जापान के बीच बढ़ती करीबी के बीच में पड़ने के लिए जापान के भारत में 35 बिलियन डौलर के निवेश से कम से कम दोगुने निवेश की घोषणा करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जबकि, शी के इस दौरे के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकाल तोड़ा और 1962 के बाद पहली बार किसी चीनी नेता का सार्वजनिक स्वागत किया गया.
इस दौरे में भारत ने सीमा विवाद के मामले को उठाया लेकिन दोनों नेताओं की बैठक के बाद के बयानों से साफ जाहिर हुआ कि इस पर एकराय नहीं बन सकी है. यही नहीं, इस मामले पर भारत के लिए सम्मान और कूटनीतिक तौर पर अहम माने जाने वाले मामले अरुणाचल प्रदेश के निवासियों के लिए नत्थी यानी स्टेपल वीजा पर भी कोई सुलह नहीं हो सकी, न ही तिब्बत में चीन के निर्माण पर बात हो सकी. बल्कि शी के दौरे के समय चीन के हजारों सैनिक भारतीय सीमा में 2 बार घुसे, हालांकि कुछ देर बाद वापस चले गए.
अमेरिका से तनातनी तो रूस से नजदीकियां
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल ही में अपने चीन दौरे पर अमेरिकी छात्रों, उद्यमियों और पर्यटकों के लिए वीजा नियमों को आसान बनाने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए. हालांकि चीन ने, अमेरिका की उस के समुद्री क्षेत्र में निर्माण न करने की अपील को नकार दिया और कहा कि उसे इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए वहां रडार आदि स्थापित करने की जरूरत है.
चीन वर्ष 2020 तक अमेरिका के प्रशांत महासागर में उतरने की योजना को ले कर भी नाराज चल रहा है. अमेरिका के बाद दूसरे नंबर की महाशक्ति चीन है और कहा जा सकता है कि चीन और अमेरिका एशिया और दुनिया को बिना आपस में लड़े जीतना चाहते हैं.
इसी तरह कुछ समय पहले रूसी दौरे पर शी ने कहा था कि वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तरह होना चाहेंगे. यहां उन का आशय घरेलू और विदेशी नीतियों को कड़ाई से सामने रखने और लागू करने से था, जैसा कि रूस ने देश में विरोध और दुनिया में अकेले पड़ने के बावजूद घरेलू नीतियों और यूक्रेन-यूरोप के मामले में किया.
जी-20 सम्मेलन से पहले ही चीन और रूस को पता चल गया था कि वहां उन के लिए कुछ खास नहीं रखा है, इसलिए शायद ठीक उसी समय रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू को चीन भेजा गया था जबकि अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के शीर्ष नेता साथ बैठकें कर रहे थे.
चीन और रूस को पता है कि पश्चिमी देश उन के साथ नहीं हैं. यूक्रेन के मसले पर रूसी राष्ट्रपति के साथ जी-20 में हुआ रूखा व्यवहार भी यही साबित करता है. इसलिए भी दोनों देश आपस में रक्षा क्षेत्र में करीब आ रहे हैं. बीजिंग में एपेक सम्मेलन के दौरान भी पुतिन और शी जिनपिंग ने एकदूसरे को सदाबहार दोस्त बताया और कहा कि चाहे दुनिया में कुछ भी हो, वे हमेशा दोस्त रहेंगे और इसी दौरान दोनों देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में अहम समझौता भी हुआ.
दक्षिण एशिया में समुद्र का बादशाह
चीन का भले ही इस समय पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर के संबंध में जापान, वियतनाम, फिलीपींस, मलयेशिया, ताइवान, ब्रूनेई और भारत के साथ विवाद चल रहा हो लेकिन वह इस इलाके में सब से ताकतवर देश है. सेनकाकू द्वीपों के खनिजों पर अधिकार को ले कर उस का जापान के साथ विवाद चल रहा है. स्पार्टली द्वीप पर उस के रनवे बनाने की खबरें आई हैं. श्रीलंका में समुद्र किनारे अहम निर्माण कर वह भारत को भी बांधना चाहता है.
हाल ही में चीनी सैनिकों की एक बोट भारतीय समुद्र सीमा में आ गई थी, जिसे ले कर भारतीय मीडिया और सुरक्षा तंत्र में काफी हलचल पैदा हो गई थी, भारत के सामने तो चीन की ताकतवर स्थिति का अंदाज लगाने के लिए यही उदाहरण काफी है कि जब हम अपनी सीमा में आई विदेशी नौका से घबरा गए थे.
सामरिक और विदेशी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और जापान की बढ़ती करीबियों जैसे पिछले साल जापानी प्रधानमंत्री को भारत में गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि बनाना, भारत में जापानी निवेश बढ़ाने से भी चीन के माथे पर बल पड़े हैं लेकिन वह इन में से किसी को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने के बजाय अमेरिका को ध्यान में रख कर कोई कदम उठाता है. भारतीय अर्थव्यवस्था के खुलेपन के कारण चीन पहले ही इसे काफी नुकसान पहुंचा चुका है और चीन की बनी हर छोटीबड़ी चीज आज हमारे देश में आसानी से उपलब्ध है.
भारत बनाम चीन या चीन बनाम अमेरिका
शी के गद्दी पर बैठने के बाद चीन के पड़ोसी और कूटनीतिक तौर पर एशिया में अहम माने जाने वाले भारत में भी लोकसभा चुनाव हुए और करीब 3 दशक बाद कोई पार्टी बहुमत ले कर सत्ता में आई. इस से दुनिया की नजरें भारत की ओर भी गईं.
चीन ने इस दौरान अपनी घरेलू और विदेशी नीतियों से वैश्विक राजनीति में अहम जगह बनाई और अपने लिए अहम रोल चुना है. इसी तरह भारत की नई सरकार ने भी अपनी घरेलू नीतियों और नेपाल, म्यांमार, पाकिस्तान, जापान, आस्ट्रेलिया के अलावा चीन व अमेरिका के साथ किए समझौते से अपनी स्थिति को महत्त्वपूर्ण बनाने की कोशिश की.
हालांकि, चीन के नए शासक के किए गए समझौतों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वह दुनिया के नंबर एक देश अमेरिका को आर्थिक व भौगोलिक तौर पर बांधने व मजबूर करने की कोशिश में लगा है. हां, नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान में उस के द्वारा निर्माण और रक्षा क्षेत्र में उठाए जा रहे कदम भारत को ध्यान में रख कर उठाए जा रहे हैं लेकिन यह भी पूरा सच नहीं है. पाकिस्तान को एशिया में अमेरिका का मददगार देश माना जाता है और चीन ने उसे अपने पाले में करने की कोशिश की है, इसी तरह श्रीलंका में भी वह प्रशांत महासागर में अमेरिका की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए बंदरगाह, रनवे आदि बना रहा है.
ऐसे में भारत के सामने भले ही पहला लक्ष्य चीन की बराबरी या उस की टक्कर हो लेकिन चीन का पहला लक्ष्य अमेरिका को टक्कर देना या उस की बराबरी करना है. चीन के सामने भारत एक बाजार के तौर पर खतरा हो सकता था लेकिन ऐसा होने से पहले ही उस ने खुले भारतीय बाजार को अपने उत्पादों से पाट दिया है. और चीन बारबार भारत के साथ नए आर्थिक रिश्ते और व्यापार बढ़ाने पर जोर दे रहा है.
शी के घरेलू अभियान
शी ने अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से दुनियाभर का नहीं तो अपने देशवासियों का ध्यान तो अच्छे तरीके से खींचा ही है. उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चलाई जिस में पार्टी, सेना और सरकार के, पहले तो जूनियर, फिर कई सीनियर अधिकारी भी फंसे. इस से लोगों में उम्मीद जगी है कि उन की मुहिम रंग लाएगी. यही नहीं, उन्होंने एकसाथ देश के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास का वादा किया है. इस के लिए वे अपने पूर्ववर्तियों से ही नहीं, बल्कि दुनिया के इतिहास से भी सीख लेने की बात कहते रहे हैं. उन्होंने कई क्षेत्रों में सरकारी क्षेत्र के निवेशकों को हटा कर प्राइवेट फर्मों को काम करने का मौका दिया है.
उन्होंने माओ के समय के घरों की गिनती करने वाले काम को फिर से आगे बढ़ाया है जिस से शहरीकरण और विस्थापन की समस्या से जूझ रहे चीन को कुछ नजात मिले. यही नहीं, डेंग के समय की व काफी आलोचना में घिरी नीति ‘एक कपल-एक बच्चे’ में भी राहत दी है.
सेना का विरोध
हाल ही में अमेरिका समर्थित एक प्राइवेट न्यूज सर्विस ने दावा किया था कि चीन में कई बार विद्रोह और तख्तापलट होतेहोते रह गया. इस के लिए उस ने सैनिकों की मूवमैंट, गुप्त बैठकों, चीन के कुछ शहरों में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाए जाने जैसी गतिविधियों का हवाला दिया. ठीक इसी समय, हौंगकौंग की एक पत्रिका ने भी दावा किया कि शी की कई बार हत्या की कोशिश हो चुकी है और वे इस में बालबाल बचे हैं. शायद इसलिए भी शी अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि उन्हें अपनी जान की कोई परवा नहीं है, वे देश में सुधार कार्यक्रम जारी रखेंगे. माना जा रहा है कि यह उन के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का असर है जिस में सरकार, सेना और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के कई शीर्ष नेता फंस रहे हैं.
इतना ही नहीं, शी के भारत दौरे पर सीमा विवाद पर होने जा रही वार्त्ता से ठीक पहले 1 हजार चीनी सैनिकों की दक्षिणी लद्दाख में घुसपैठ को भी शी के खिलाफ सेना के शीर्ष अधिकारियों की हरकत के तौर पर देखा जा रहा है. इन्हें हटाने के लिए भारत को अपने 1,500 सैनिकों को मौके पर भेजना पड़ा था. इस के अगले दिन भी कुछ चीनी सैनिकों ने टैंट गाड़ लिए थे जो सड़क बनाने का सामान भी साथ ले कर आए थे.
बहरहाल, शी जिनपिंग के कदमों से तो यही प्रतीत होता है कि वे आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए अपनी सरकार के कार्यक्रमों को न सिर्फ जारी रखेंगे बल्कि उन्हें और भी धार देते रहेंगे. उन्होंने अपने मुल्क को ‘सपनों का चीन’ बनाने का बीड़ा उठाया हुआ है और वे इस ओर आगे बढ़ते रहेंगे. वक्त और चीनी जनता का उन्हें कितना सा?थ मिलता है, यह भविष्य ही बताएगा. द्य
पेंग लियुआन शी जिनपिंग से कम नहीं
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दुनिया के कद्दावर नेताओं मे गिने जाते हैं. जितनी चर्चित शख्सीयत वे खुद हैं उतनी ही चर्चित उन की बेगम यानी चीन की फर्स्ट लेडी पेंग लियुआन भी हैं. कहा तो यह भी जाता है वे एक दौर में जिनपिंग से भी ज्यादा लोकप्रिय थीं. बीते दिनों पेंग लियुआन 2 कारणों से ज्यादा चर्चा में रही. पहली तो लियुआन ने अपने भारत दौरे के दौरान सब का ध्यान खींचा और दूसरी वजह रही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिलफेंक मिजाजी. दरअसल, बीजिंग में एशिया पैसिफिक सम्मेलन से पूर्व एक आतिशबाजी का शो देखने एकत्र हुए 3 विकसित देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी में व्लादिमीर पुतिन ने पेंग लियुआन को शाल उढ़ा दी. हालांकि ऐसा उन्होंने उन्हें सर्दी से बचाने के लिए किया था लेकिन पुतिन की कैसोनोवा छवि के चलते यह मसला चीन में काफी विवादित रहा. इस फुटेज के टीवी पर आते ही यह औनलाइन वायरल हो गया. लेकिन जल्दी चीन के इंटरनैट से यह वीडियो और इस से जुड़ी सभी सामग्री चीन प्रशासन ने हटा दी.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उन की पत्नी पेंग लियुआन की लवस्टोरी की भी चर्चा हर जगह फैली हुई है. बता दें कि दोनों की लवस्टोरी वाला एक म्यूजिक वीडियो इंटरनैट पर वायरल हो गया है. इस वीडियो को अब तक 2.2 करोड़ लोग देख चुके हैं. इस वीडियो का नाम ‘सी दादा लव्स पेंग ममा’ रखा गया है. वीडियो में दोनों काफी रोमांटिक मूड में नजर आ रहे थे.
बहरहाल, चीन की फर्स्ट लेडी को ले कर दुनिया भर में आकर्षण इसलिए भी है क्योंकि पेंग एक समय में सितारा हैसियत गायिका रही हैं. जब शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी औफ चाइना के मध्यम स्तर के अधिकारी थे तब पेंग पूरे चीन में एक गायिका के रूप में मशहूर थीं और उन के वहां करोड़ों प्रशंसक थे. 1986 में लियुआन और जिनपिंग की पहली मुलाकात हुई थी.
चीनी मीडिया की खबरों की मानें तो 40 मिनट की इस मुलाकात में जिनपिंग ने लियुआन से अपने प्रेम का इजहार कर दिया था. कहा जाता है पहले पेंग के मातापिता इस शादी के लिए तैयार नहीं थे लेकिन जिनपिंग ने उन से अकेले में मुलाकात कर शादी के लिए किसी तरह मनाया.
आखिरकार 1 सितंबर, 1987 को दोनों ने आपसी सहमति से शादी कर ली. शादी के बाद जब जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया तो उन्होंने संगीत कार्यक्रम करने कम कर दिए. हालांकि उन के मुल्क में आज भी उन की गीतों के जरिए देशभक्ति का भाव जगाने वाली पहली लोक गायिका के रूप में खास पहचान है. इतना ही नहीं चीनी मीडिया उन के फैशन व अन्य गतिविधियों पर बारीक नजर रखता है.
पेंग लियुआन का जन्म चीन के शौंगडौंग प्रांत के पेंग गांव में 1962 को हुआ था. उन की मां स्थानीय कला मंडली में थीं. पिता स्थानीय कल्चर ब्यूरो के प्रमुख के तौर पर एक संग्रहालय के क्यूरेटर थे. 80 के दशक में वे पहली चीनी महिला थीं, जिस ने लोक गायिकी में मास्टर डिगरी हासिल की. लियुआन 18 वर्ष की उम्र में ही सेना में शामिल हो गई थीं.
फिलहाल वे चीन की लाल सेना की आर्ट एकेडमी की डीन हैं और उन का पद सेना में मेजर जनरल के बराबर का है. उन की लोकप्रियता का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि इस साल फोर्ब्स ने उन को विश्व की 57वीं सब से ताकतवर महिला माना है जबकि 2013 में वह टाइम की 100 सब से प्रभावी हस्तियों की लिस्ट में शामिल थीं. फर्स्ट लेडी के तौर पर पेंग लियुआन चीन में एचआईवी एड्स और धूम्रपान विरोधी मुहिम की गुडविल एंबैसेडर भी हैं.
लियुआन की चर्चा इसलिए भी ज्यादा होती है क्योंकि बतौर फर्स्ट लेडी उन्होंने कई पुरानी मान्यताओं और प्रचलनों को तोड़ा है और दुनिया भर में चीन की एक अलग तसवीर पेश की है. राजनीति एक्सपर्ट बताते हैं कि लियुआन से पहले अन्य चीनी फर्स्ट लेडी जब विदेशी दौरे पर जाती थीं तो आमतौर पर शांत और रस्मअदायगी तक ही खुद को सीमित रखती थीं. लेकिन पेंग ने इस चलन को बदला. वे न सिर्फ हर मसले पर अपनी खुली राय रखती हैं बल्कि उन के फैशन, अंदाज और उन की गतिविधियां भी चर्चा का विषय बनती हैं. शायद यही वजह है कि इंटरनैशनल मीडिया में उन की तुलना अमेरिकी प्रैसिडैंट और इंगलैंड के प्रिंस की पत्नी से की जाती है.
51 साल की उम्र में भी वे जिस शाही ढंग से खुद को पेश करती हैं, उन की चर्चा होनी लाजिमी है. वरना याद कीजिए किसी भारतीय प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की पत्नी की विदेशी दौरों के दौरान मीडिया में इस तरह चर्चा हुई हो. इस में कोई शक नहीं कि दुनिया में जो मजबूत कद शी जिनपिंग का है, उन की पत्नी लियुआन उस कद के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. -राजेश कुमार
शी की चुनौतियां
घरेलू और विदेशी मोरचों पर बड़ी जंग लड़ रहे शी के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं. उन की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को विश्लेषकों का बहुत अच्छा साथ नहीं मिल पा रहा है. उन के आलोचकों का मानना है कि इस मुहिम में अब तक कम्युनिस्ट पार्टी औफ चाइना में शी के प्रमुख राजनीतिक विरोधी और विरोधियों के सहयोगी ही फंस रहे हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि सिर्फ हजारों अधिकारियों को पकड़ने से भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगाई जा सकती. इस के लिए आय का खुलासा, व्यवस्था में पारदर्शिता, इन घोटालों को उजागर कर सकने वाले मीडिया के अधिकारों को बहाल करना, सरकार की ताकत पर रोक लगाना, न्यायपालिका के अधिकारों को बहाल करना जैसे अहम मुद्दे हैं जिन पर काम करने की पहले जरूरत है.