रक्षा संबंधी हथियारों के मामले में भारत आज भी दूसरे देशों पर निर्भर है. एनडीए सरकार ने मेक इन इंडिया का नारा दिया था पर पिछले साढे चार साल के दौरान देश में कितनी कंपनियों ने आ कर उत्पादन शुरू किया, इस सवाल का जवाब नहीं होगा. हां, इस दौरान सरकार ने विदेशों से अनगिनत सौदे किए हैं. रूस के साथ एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली का सौदा भी उसी कड़ी का एक हिस्सा है.

अमेरिकी प्रतिबंध की धमकी के बावजूद भारत ने 5 अरब डौलर यानी 37 हजार करोड़ रुपए के इस सौदे पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए. यह सौदा ऐसे समय हुआ है जब अमेरिका हथियार खरीद पर काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेक्शन ऐक्ट के तहत प्रतिबंध लगा सकता है.

पुतिन 19वें भारत रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भारत आए हैं. सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर चर्चा हुई.

दोनों देशों ने साझा बयान में कहा कि दोनों पक्ष लंबी दूरी की क्षमता वाली एस-400 मिसाइल प्रणाली पर हुए समझौते का स्वागत करते हैं. दोनों देशों के बीच हुए समझौते का असर भारत और अमेरिका संबंधों पर नहीं पड़ेगा.

हालांकि समझौते के बाद अमेरिका ने कहा कि  प्रतिबंध रूस को दंडित करने के लिए लगाए गए हैं. इस का मकसद हमारे सहयोगी देशों की सैन्य क्षमता को नुकसान पहुंचाना नहीं है.

रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली चीन पहले ही खरीद चुका है. रूस से यह प्रणाली खरीदने वाला चीन पहला देश है. चीन और रूस के बीच 2014 में यह समझौता हुआ था. रूस ने चीन को एस-400 मिसाइल प्रणाली देना शुरू भी कर दिया है. भारत को यह प्रणाली अगले 24 महीने में मिलेगी.

6 सौ किलोमीटर की दूरी तक निगरानी करने की क्षमता वाली यह मिसाइल प्रणाली 36 लक्ष्यों पर एक साथ निशाना साध सकती है. यह बैलेस्टिक मिसाइलों से बचाव करती है. लंबी दूरी तक मार करने वाला यह सब से आधुनिकतम सिस्टम है.

दुश्मन की मिसाइलों का पता लगा कर उन्हें हवा में मार गिराने में सक्षम है. इस से पाकिस्तान के चप्पेचप्पे पर नजर रखी जा सकती है. भारत 4000 किलोमीटर लंबी भारतचीन सीमा के मद्देनजर सुरक्षा प्रणाली पुख्ता करना चाहता है.

एस-400 मिसाइल सुरक्षा प्रणाली के अलावा रूस के साथ 8 अन्य समझौतों पर भी हस्ताक्षर हुए हैं. इन में अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, रेलवे समेत अन्य क्षेत्रों में सहयोग शामिल हैं. दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ भी लड़ेंगे.

भारत को आजादी के करीब 70 साल बाद भी हथियारों के मामले में दूसरे देशों का मुंह ताकना पड़ना है. छोटेमोटे हथियार तक विदेशों से मंगवाने पड़ते हैं. इन सौदों को ले कर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ता है. आखिर यह विदेशी निर्भरता कब तक रहेगी.

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