India-China : पूर्वी लद्दाख में सैनिकों को पीछे हटाने के लिए भारत के साथ हुए समझौते पर चीन ने सकारात्मक रुख दिखाते हुए अपने सैनिकों की वापसी शुरू कर दी है. उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच सीमा रेखा लगभग करीब साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी है. चीन इसे महज दो हजार किलोमीटर बता कर भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता रहा है. यह सीमा विवाद ही दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बनता है. 2020 में गलवान में हुई झड़प ने सीमा विवाद को थोड़ा और गंभीर बना दिया था. दरअसल विवादित सीमाएँ विवादित क्षेत्रों में प्रशासनिक उपस्थिति की कमी के कारण जटिल हुई हैं, जो कि दूरदराज के क्षेत्र हैं. असहमति इस तथ्य से भी उत्पन्न होती है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा को कभी भी स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं किया गया है, चीन और भारत अक्सर इसके सटीक स्थान पर असहमत होते हैं और भारतीय मीडिया बार-बार भारतीय क्षेत्र में चीनी सैन्य घुसपैठ की खबरें उछालता रहता है.
चीन काफी लम्बे समय से खुद को उन तमाम विवादों से बहुत दूर रख रहा है जिन विवादों में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैर जरूरी रूप से उलझे हुए हैं. जैसे चीन रूस यूक्रेन युद्ध या इजरायल फिलिस्तीन युद्ध पर कोई टिप्पणी नहीं करता. वह अपनी सेना भी कहीं नहीं भेजता, जबकि अमेरिका, भारत लगातार इन युद्धों से जुड़ाव बनाये हुए हैं और युद्ध को लेकर उनकी टिप्पणियां चलती रहती हैं. भारतीय मीडिया तो चार कदम और आगे है. वह बार बार दोहराता है कि रूस और इजराइल प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर युद्ध समाप्त करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी भी कभी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ अपनी फोटो मीडिया में फ़्लैश करवाते हैं तो कभी पुतिन और नेस्तन्याहु के साथ उनकी तस्वीरें वायरल होती हैं. ऐसा लगता है मानो युद्धों को रुकवाने के लिए सबसे ज्यादा भागदौड़ मोदी ही कर रहे हैं. कभी चीन के राष्ट्रपति या अमेरिका के राष्ट्रपति की ऐसी फोटोज मीडिया में नहीं आती क्योंकि वे अपने देश के विकास और समस्याओं के समाधान में लगे हैं, खासकर चीन.
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