1991 में केंद्र की कांग्रेस सरकार दिल्ली में विधानसभा गठन को मंजूरी दी. यह कानून बनाते समय केंद्र सरकार ने गुत्थी को उलझा दिया. दिल्ली न तो पूरी तरह से केंद्र शासित है और न ही यह पूर्ण राज्य है. ऐेसे में दिल्ली की जनता उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच फुटबौल बनी हुई है. दिल्ली का यह तमाशा पूरे देश की छवि को खराब कर रहा है. देश की राजधानी होने के कारण दिल्ली पर पूरी दुनिया की निगाह होती है. दिल्ली की तुलना दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों से नहीं की जा सकती है. दिल्ली को राज्य का दर्जा देते समय पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने अगर सही से काम किया होता तो यह हालत नहीं होते.
1991 में संविधान में 69वां संशोधन कर किया गया था. इस के तहत केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहा गया. जिस के बाद अनुच्छेद 239एए और 239एबी को लाया गया. इस के तहत दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहा गया है. उपराज्यपाल को इस का प्रशासक बनाया गया. इस के चलते ही दिल्ली की स्थिति अन्य राज्यों या केंद्र शासित क्षेत्र से अलग है. दिल्ली न तो पूरी तरह से केंद्र शासित प्रदेश रह गया है और न ही अब यह राज्य रह गया है. यही वजह है कि दिल्ली में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच टकराव होता रहता है.
अनुच्छेद 239एए के तहत मिले अधिकार:
केंद्र शासित क्षेत्र होते हुए भी दिल्ली की अपनी विधानसभा है, जहां अन्य राज्यों की तरह सुरक्षित सीटों का प्रावधान है. विधायकों का चुनाव सीधे जनता करती है. दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली में भी मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल का प्रावधान किया गया है, जो विधानसभा के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार होते हैं. दिल्ली में चुनाव कराने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग के पास है. निर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल को उपराज्यपाल पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं. दिल्ली के उपराज्यपाल के पास अन्य राज्यपालों की तुलना में अधिक शक्तियां हैं.