राजनीतिक संरक्षण में फलताफूलता पुलिसिया भ्रष्टाचार कभी किसी सुबूत का मुहताज नहीं रहा. इस के लिए किसी एक दल या नेता को ही गुनाहगार नहीं ठहराया जा सकता. असल जिम्मेदार तो वह सिस्टम है जिसे लोग अकसर कोसा करते हैं. महाराष्ट्र का ड्रामा इस का अपवाद नहीं, जिस पर मुद्दे की बात कम राजनीति ज्यादा हुई. साल 1983 में मशहूर निर्देशक गोविंद निहलानी की एक फिल्म प्रदर्शित हुई थी जिस का नाम था ‘अर्धसत्य’. पुलिसिया भ्रष्टाचार सैकड़ों फिल्मों में तरहतरह से दिखाया गया है लेकिन अर्धसत्य पूरी तरह इसी पर आधारित थी.

फिल्म का नायक अनंत वेलणकर एक ऐसा युवा पुलिस अधिकारी है जो समाज से जुर्म और भ्रष्टाचार मिटा देना चाहता है लेकिन जब वह हकीकत से रूबरू होता है तो घबरा उठता है और खुद को शराब के नशे में डुबो लेता है. अनंत वेलणकर की भूमिका अभिनेता ओम पुरी ने इतनी शिद्दत से निभाई थी कि दर्शक उस में डूब कर रह गए थे. वह देखता है कि उसी के विभाग के आला अफसर नेताओं व माफिया के इशारे पर नाचते हैं और जो इस गठजोड़ का हिस्सा बनने से इनकार करते हैं, उन का अंजाम कतई अच्छा नहीं होता. इस बाबत एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी माइक लोबो, जिस की भूमिका नसीरुद्दीन शाह ने निभाई थी, को दिखाया गया है जो अकसर शराब के नशे में धुत सड़क किनारे पड़ा रहता है. अनंत अकसर माइक लोबो का हश्र देख कर सहम जाता है.

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वह पूरी फिल्म में अपनेआप से लड़ता नजर आता है कि कौन सा रास्ता चुने- सिद्धांतों और नैतिकता वाला या सिस्टम का हिस्सा बन जाने का. पुलिस की नौकरी में बड़ेबड़े अरमान ले कर आने वाले देश के युवाओं का जोश क्यों और कैसे अनंत की तरह ठंडा पड़ जाता है, इसे ‘अर्धसत्य’ में बेहद सटीक तरीके से फिल्माया गया था. अर्धसत्य आज की वास्तविक जिंदगी में भी कायम है. अनंत जैसा ही कोल्हापुर का एक मध्यवर्गीय युवा साल 1990 में महाराष्ट्र पुलिस में सब इंस्पैक्टर के पद पर भरती हुआ था जिस की पहली पोस्ंिटग ही नक्सल प्रभावित इलाके गढ़चिरोली में हुई थी.

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