GST Rate Cuts: सरकार द्वारा हाल ही में रियल एस्टेट क्षेत्र में जीएसटी दरों में की गई कटौती को आम लोगों के लिए “राहत” बताया जा रहा है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इस दावे के बिल्कुल विपरीत है। यह फैसला वास्तविक सुधार से ज़्यादा भ्रम फैलाने वाला प्रचार साबित हो रहा है।

दरअसल, निर्माण क्षेत्र में उपयोग होने वाले कई कच्चे माल की दरें अब पहले से ज़्यादा बढ़ा दी गई हैं। जो सामान पहले 12% जीएसटी पर मिलता था, अब वही 18% जीएसटी के दायरे में आ गया है। ऐसे में निर्माण कंपनियों की लागत घटने की बजाय बढ़ रही है। नतीजतन, बिल्डर्स अब अपने प्रोजेक्ट्स की कीमतें बढ़ा रहे हैं ताकि बढ़े कर का बोझ उपभोक्ताओं पर डाला जा सके।

सरकार के प्रचार के मुताबिक ईंट, टाइल और रेत जैसी वस्तुएँ सस्ती हुई हैं, लेकिन यह केवल पुराने स्टॉक पर लागू है। नए निर्माण की लागत में कोई ठोस कमी नहीं आई है।

छोटे बिल्डर्स और डेवलपर्स अब इनपुट टैक्स क्रेडिट की उलझनों से जूझ रहे हैं, जिससे परियोजनाओं की गति और धीमी हो रही है। खरीदारों को राहत देने की बजाय यह व्यवस्था उन्हें और अधिक भ्रमित कर रही है, क्योंकि टैक्स संरचना और भी जटिल हो गई है।

त्योहारी सीजन में इसे निवेश का “स्वर्ण अवसर” बताकर प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह कदम केवल सस्ते घर के सपने दिखाने वाला एक राजनीतिक दांव है। जमीन और स्टाम्प ड्यूटी पर कोई राहत नहीं होने के कारण कुल लागत में कोई ठोस कमी नहीं आई है।

रियल एस्टेट क्षेत्र पहले ही मंदी और अविश्वास से जूझ रहा था। ऐसे में जीएसटी कटौती का यह निर्णय विकास से ज़्यादा जनता को खुश करने का दिखावा प्रतीत होता है। GST Rate Cuts.

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