India China Relations : अमेरिका और भारत की खींचतान अब नहीं बल्कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से ही शुरू हो गई थी. वही ट्रंप जो कभी प्रधानमंत्री मोदी के जिगरी दोस्त कहे जाते थे. बेशक यह दो देशों की नहीं बल्कि उन के शीर्ष नेताओं की अकड़ है जिसे दोनों देशों की जनता भुगत रही है. मगर इस का त्वरित अंजाम भारत का चीन के करीब आने का दांव समझ से परे है. यह वही चीन है जिसे हमारा प्रतियोगी माना जाता है. आखिर चीन के करीब जा कर भारत क्या हासिल कर पाएगा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर डाला है. ट्रंप के टैरिफरूपी बम ने वैश्विक व्यापार को तो अस्थिर किया ही है, कई देशों के सामने एकदूसरे के नजदीक आने की मजबूरी भी पैदा की है, जो पहले कई मसलों पर एकदूसरे के विरोधी रहे हैं. अमेरिकी टैरिफ नीति के चलते भारत अपने प्रतिद्वंद्वी चीन के आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए मजबूर दिख रहा है. मोदी सरकार को लग रहा है कि यदि वे चीन के साथ सहयोग बढ़ाएंगे तो शायद वे अमेरिकी दबाव को संतुलित कर लेंगे लेकिन शायद वे भूल गए कि चीन के साथ हमारा भू-राजनीतिक तनाव, सुरक्षा चुनौतियां और एशिया में रणनीतिक वर्चस्व की होड़ लंबे समय से जारी है.

दोनों देशों में एकदूसरे के प्रति घोर अविश्वास भी है और चीन की हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान से नजदीकियां भी हमारे लिए नुकसानदायक साबित होती रही हैं. ऐसे में भारत ट्रंप के टैरिफ से डर कर चीन से गलबहियां करने लगे तो यह कोई अच्छी सम?ा की निशानी नहीं है. इस ‘दोस्ती’ से जहां अमेरिका के साथ हमारी बात पूरी तरह बिगड़ जाएगी वहीं व्यापार के मामले में चीन को फायदा होगा जबकि भारत को नुकसान ही होगा. भारत और चीन के रिश्तों में मजबूती और विश्वास पैदा होना बिलकुल अविश्वसनीय बात है. सवाल यह भी है कि क्या चीन ने पूर्वी लद्दाख में 5 साल से कब्जाए क्षेत्र को खाली कर दिया है? जवाब है नहीं. तो फिर, बीजिंग के साथ नई दिल्ली का व्यवहार सामान्य और मजबूत कैसे हो सकता है?

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