लेखक- रोहित और शाहनवाज

दिल्ली के सिंघु बौर्डर पर पिछले 1 महीने से सरकार द्वारा कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान डटे हुए हैं. उन का संघर्ष पहले की तुलना में और भी अधिक बड़ा हुआ है. पंजाब के कुछ घरों की छतों से शुरू होने वाले इस आन्दोलन ने अब इतिहास में अपनी जगह बना ली है. इसी के साथसाथ किसानों का यह आन्दोलन देश और दुनिया के लोगों के लिए लम्बे आन्दोलन का बेहतर नमूना बन कर उभरा है, जहां हर कोई कुछ न कुछ काम करता दिखाई देता है. सिंघु बौर्डर पर मौजूद ‘सांझी सत्थ’ उसी बेहतर नमूने का एक उत्तम उदाहरण है.

सिंघु बौर्डर पर आन्दोलन का जायजा लेने के दौरान हम ने ‘सांझी सत्थ’ का टेंट देखा. जहां पर ठीक ठाक संख्या में लोगों की भीड़ मौजूद थी. बच्चे पढ़ते हुए दिखाई दिए. 24-26 आयु के युवा उन्ही बच्चों को पढ़ाते हुए दिखाई दिए. लोग छोटे छोटे गोल घेरों में बातें करते दिखाई दिए. एक कोने में कुछ युवा प्रदर्शन के लिए प्लेकार्ड बनाते हुए दिखाई दिए. और भी बहुत तरीके का काम वहां चल रहा था. यह सब देख कर ‘सांझी सत्थ’ को जानने के लिए हमारी उत्सुकता बढ़ी और हम ने वहां मौजूद लोगों से बात की.

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आखिर क्या और क्यों बनाया गया ‘सांझी सत्थ’?

सांझी सत्थ के टेंट में मौजूद विशाल कुमार ने हमें सांझी सत्थ का मतलब समझाते हुए कहा, “जिस तरह से लोगों के मिलने और सामाजिकता बढ़ाने वाली जगह को हिंदी में चौपाल कहा जाता है, ठीक उसी तरह से पंजाब में उसे सांझी सत्थ कहा जाता है. यहां पर हम लोग हर दिन कोई एक विषय डिसाइड कर उस पर हर शाम 6 बजे से 8 बजे तक डिस्कशन करते हैं और इस आंदोलन में होने वाले कामों को डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है.”

“हम जिस दिन यहां इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आए तो हमें स्टेज के सामने बैठने की जगह नहीं मिली. लोगों का हुजूम इतना ज्यादा था कि हमें मेन स्टेज दिखाई तक नहीं दे रहा था. इसीलिए यही सोचा गया कि हमारे गांव में जिस तरह से सांझी सत्थ बनाई जाती है उन की बात पहुंचाने के लिए उसी तरह से हम भी छोटे छोटे मंच का निर्माण करें ताकि हर इंसान को बोलने का मौका मिल सके और इस आन्दोलन में हर किसी का सुझाव लिया जा सके.”

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इस के साथ साथ विशाल ने बताया कि सांझी सत्थ इस आन्दोलन में शरीक होने वाले युवाओं की एनेर्जी का सही इस्तेमाल हो सके इस के लिए एक इनिशिएटिव भी है. “सांझी सत्थ किसी तरह की कोई संस्था, कोई एनजीओ या कोई संगठन नहीं है. यह तो जरुरत के समय काम आने वाला इनिशिएटिव है जिस में कोई खामी नहीं है. सांझी सत्थ के होने से मेन स्टेज पर पड़ने वाला काम का बोझ कम हो जाता है. इस के साथ ही हम मेन स्टेज पर होने वाली सारी गतिविधियों पर नजर रखते है ताकि किसी को यदि न पता हो कि चल क्या रहा है तो उसे हम बता सके.”

किन चीजो की है व्यवस्था?

युवाओं और बच्चों के लिए किताबें: सांझी सत्थ के इस टेंट में शुरुआत में ही किताबों का स्टाल लगाया गया है जिस में कई तरह की किताबे रखी गई है. भगत सिंह की मैं नास्तिक क्यों हूं और जेल नोटबुक, रबिन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि, लेनिन की ‘वट इस टू बी डन’, आरएस शर्मा की भारत का प्राचीन इतिहास, आर चंद्रा की आधुनिक भारत में दलित आन्दोलन जैसी कई गंभीर विषयों पर किताबों के साथ साथ बच्चों के लिए कहानियों वाली किताबों कि भी व्यवस्था की गई है. ये सभी किताबों की व्यवस्था लोगों ने आपस में अपने दोस्तों से बात कर के की है. यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे युवाओं ने सांझी सत्थ में अपनी किताबों का कौन्ट्रिब्यूशन किया है.

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चर्चा का केंद्र: हर शाम को 6 बजे से 8 बजे तक सांझी सत्थ में तय विषय पर चर्चा होती है. विशाल ने बताया की हर शाम की “चर्चा में इतने लोगों की संख्या हो जाती है की कभी कभार तो रात के 10-11 बजे तक चर्चा चलती ही रहती है. चर्चा का मेन फोकस बिंदु इसी बात पर होता है कि इस आन्दोलन को किस तरह से आगे बढ़ाया जा सके. और जब चीजे तय होती है तो लोग खुद से ही जिम्मेदारी लेते हुए काम का बंटवारा कर लेते हैं. इस चर्चा में मुख्य रूप से अधिकतर युवाओं की संख्या होती है.”

पठन-पाठन का हो रहा काम: सांझी सत्थ के इस टेंट में इलाके के स्थानीय इलाके के बच्चे पढ़ने के लिए भी आ रहे हैं. जिन्हें पढ़ाने के लिए आन्दोलन में आए यही के प्रदर्शनकारी युवा हैं. इस से यह बात भी साफ हो जाती है की स्थानीय लोग अपने बच्चों को भेज कर इस प्रदर्शन में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार बन ही रहे हैं.

आन्दोलन के लिए बन रही है सामग्री: “आन्दोलन को चलाए रखने के लिए कई तरह की चीजो का सहारा लिया जाता है. लम्बे चलने वाले आंदोलन सिर्फ नेताओं के भाषण से नहीं चलाए जा सकते हैं. यहां लोग मिल कर नए नारे, गाने, या फिर मीडिया पर नजर रखने का काम करते हैं.” हम ने भी एक किनारे 5-6 युवाओं को नारों का पोस्टर बनाते हुए देखा. कुछ प्लेकार्ड बनाने में व्यस्त थे. कुछ लैपटोप पर सोशल मीडिया संभाल रहे थे.

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सांझी सत्थ में युवाओं की एनेर्जी का हो रहा सही इस्तेमाल

सिंघु बौर्डर पर किसानों के हो रहे आन्दोलन में सांझी सत्थ जैसे इनिशिएटिव ने इस प्रदर्शन में मौजूद युवाओं के उत्साह को, उन के जोश को, उन की एनेर्जी को सही राह दिखाने का काम कर रहा है. यह आंदोलन बाकि आन्दोलनों से इस तरह से अलग है कि यहां लोग खुद से काम लेना सीख रहे हैं. उदाहरण के लिए सांझी सत्थ में जो युवा वालंटियर के तौर पर काम कर रहे हैं, उन्हें किसी ने भी आदेश नहीं दिए, और न ही किसी ने मजबूर किया है कोई काम करने के लिए. वें खुद से आगे बढ़ कर काम ले रहे हैं.

हम ने वहां मौजूद युवाओं को पढ़ाते हुए देखा, पढ़ते हुए देखा, प्लेकार्ड बनाते हुए देखा, पोस्टर बनाते हुए देखा, नारे लिखते हुए देखा, आन्दोलन के गाने गा कर प्रैक्टिस करते हुए देखा, लैपटोप पर सोशल मीडिया हैंडल करते हुए देखा, सड़क पर मौजूद गन्दगी साफ करते हुए देखा, ट्रैफिक कंट्रोल करते हुए देखा, व्यवस्था को मैनेज करते हुए देखा.

विशाल ने बताया कि, “पंजाब में किसान आंदोलन की लहर आज इतनी है कि जो लोग खुद को इस आंदोलन में शामिल नहीं कर पा रहे हैं वह खुद को दोषी मान रहे हैं.” इस जज्बे को सुन हमारे भी चेहरे पर मुस्कान फूट पड़ी.

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