लेखक-रोहित और शाहनवाज

सरकार द्वारा किसानों पर खालिस्तानी, देशद्रोही, माओवादी, टुकड़ेटुकड़े गैंग, जैसे तमाम मनगड़ंतआरोपों और लांछनों को लगाने के बावजूद,किसान अनोदोलन पिछले एक महीने से और भी मजबूत होता दिख रहा है. यह आन्दोलन अपने मजबूत इरादों के साथ 21वीं सदी में किसान आन्दोलन का नया इतिहास भी लिख रहा है. और इस ने सरकार द्वारा लगाए गए आरोपों को न सिर्फ धुंधला किया बल्कि झूठा भी साबित कर दिया है. किन्तु सरकार के तरकश में मानो लग रहा है उन तीरों की कमी हो गई है जिन तीरों से उस ने छात्र, दलित, जनवादी और सीएए विरोधी आंदोलनों को कुचला था. इसीलिए अब लग रहा है कि सरकार के पास ‘विक्टिम प्ले’ का आखरी हथियार बचा है जिसे वह इस समय भुनाने पर लगी हुई है.

किसान, दिल्ली के अलगअलग बोर्डेरों पर 26 नवंबर से डेरा जमाएं हैं. इस सर्द मौसम में लगभग उन्हें 1 महीने से ऊपर हो चला है.किसान और सरकार के बीच शुरूआती6 राउंड की बातचीत हो चुकी हैं, कहने को सरकार की और से किसानों को 8 सूत्रीय प्रस्ताव भी दिया जा चूका है और अब चिठ्ठियों का दौर भी चल पड़ा है,लेकिन समाधान का कोई नामों निशान नहीं. आखिर वजह क्या है? क्या सरकार सच में मासूम है जिसे अड़ियल किसान लताड़ रहे हैं? या सरकार ही अड़ियलहै जो किसानों की मांग समझ कर भी मानने को तैयार नहीं है? आखिर पेंच कहां फसा हैं?

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23 दिसम्बर को मिनिस्ट्री ओफ एग्रीकल्चरल एंड फार्मर्स वेलफेयर की तरफ से 40 किसान नेताओं को 3 पेज का पत्र भेजा गया. पत्र में कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव था और साथ में किसान नेताओं से की गई एक उदार अपील भी थी. जौइंट सेक्रेटरी विवेक अग्रवाल ने पत्र के माध्यम से किसानों से कहा कि, “सरकार खुले दिल से और साफ नियत के साथ आप के सभी मुद्दों पर बात करने को तैयार है. कृपया दिन और समय बात करने के लिए तय करें.” इस लैटर में सरकार ने फिर से दोहराया कि इन कानूनों से एमएसपी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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