भक्तों ने पिछले साल केजरीवाल की खांसीजुकाम का खूब मखौल बनाया था. अब केजरीवाल के पास कलश तो है नहीं कि मार ?ाड़ा, मंतर फूंक श्राप दे दें. लेकिन अब पूरी दिल्ली खांस और कराह रही है तो लगता है कि एक बद्दुआ, जो उन्होंने दी ही नहीं, दिल्ली के लोगों के चिपक गई है.

ज ब राजनाथ सिंहजी ने राफेल के पहियों के नीचे नीबू रखे थे तब से मेरी टोनेटोटकों में आस्था बढ़ रही है. इस के पीछे एक व्यक्तिगत अनुभव या संक्षिप्त कहानी यह है कि अपनी जवानी के दिनों में मेरा दिल माया नाम की सहपाठिन पर आ गया था. लेकिन, वह राम को चाहती थी. राम और माया में फूट डालने के लिए मैं ने और मेरे चंद लंपट दोस्तों ने साम, दाम, दंड, भेद सब का सहारा लिया. फिर भी दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. माया के चालचलन को ले कर मेरे गुट ने खूब दुष्प्रचार किया और एकाध बार अकेले में ले जा कर राम की खूब कुटाई भी की पर वे अपने लैलामजनूं छाप प्यार के रास्ते से हटने को तैयार नहीं हुए.
फिर ‘तीन पत्ती’ के एक विशेषज्ञ दोस्त की सलाह पर मैं तत्कालीन नामी तांत्रिक से मिला जो चुटकियों में लड़कियां वश में करवा देने के लिए मशहूर था. उस तांत्रिक ने 51 रुपए लिए और पानी की एक शीशी अभिमंत्रित कर दी कि इसे जैसे भी हो, माया को पिला दो, वह मीरा की तरह तुम्हारे भजन गाने लगेगी. पर माया को पानी पिलाऊं कैसे? यह वैसी ही समस्या थी जैसी 11 दिनों से महाराष्ट्र में देखने में आ रही है कि सरकार बने कैसे. उन दिनों में स्कूल में लंचबौक्स और पानी की बोतल ले जाने का रिवाज नहीं था. लड़केलड़कियां टोंटी वाले नल से मुंह लगा कर पानी गुटकते थे. अब मैं वह बोतल अगर टंकी में उड़ेल देता तो पूरी लड़कियों के मेरे वश में हो जाने का अंदेशा था जिस से अफरातफरी मचती और मेरा स्कूल का दरवाजा पार करना भी मुहाल हो जाता.

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कई दिनों तक वह शीशी बस्ते में डाले मैं माया के आगेपीछे डोलता रहा. लेकिन बात नहीं बनी तो एक दिन हिम्मत करते मैं ने उसे शीशी दे कर कहा. ‘तुम अगर मु?ा को न चाहो तो कोई बात नहीं, लेकिन यह पानी पी लो.’ मैं उस वक्त हैरान रह गया जब उस ने बिना किसी विरोध के शीशी का पानी अपने हलक में उड़ेल लिया और फिर मुसकरा कर बोली, ‘इसे ले जा कर उस तांत्रिक बाबा को वापस कर देना. तुम से पहले और 6 लड़के मु?ो यह पानी पिला चुके हैं. पर, मु?ो कुछ नहीं हुआ. मेरी तो रगरग में राम है. प्यार खुद अपनेआप में इतना बड़ा टोटका है कि इस के आगे ये फुटपाथिए जतन कर कहीं नहीं ठहरते.

उस दिन मैं बिना किसी त्यागतपस्या के और बिना भूखेप्यासे रहे स्कूल के नीम के ठूंठ के नीचे ही बुद्धत्व को प्राप्त हो गया और तंत्रमंत्र वगैरह से मेरा भरोसा, जो दरअसल में था ही नहीं, हमेशा के लिए उठ गया. लेकिन राजनाथ सिंहजी ने राफेल के पहियों के नीचे नीबू रखे, तो मेरी टोनेटोटकों में अनास्था करोड़ों भारतीयों की तरह डगमगाने लगी, जिसे जैसेतैसे मैं ने स्वरचित तर्कों और बचेखुचे आत्मविश्वास के दम पर संभाल लिया और पूर्ववत परिवार का पेट पालने के अपने कर्तव्य में लग गया जो नोटबंदी के बाद से और दुष्कर काम हो चला है.

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पिछले दिनों दिल्ली के प्रदूषण पर जो बवंडर मचा वह मेरी भी चिंता का विषय नहीं था. लेकिन उत्तर प्रदेश के एक मंत्रीजी का यह बयान पढ़ कर कि, यह यज्ञ से दूर हो सकता है, मेरे दिमाग में भी अंधविश्वास का कीड़ा फिर कुलबुलाने लगा. इस के बाद तो 2 केंद्रीय मंत्रियों ने अचूक नुस्खे सु?ाए. स्वास्थ मंत्री बोले कि गाजर खाओ तो दूसरे ने अपना संसदीय ज्ञान बघारा कि सुबह संगीत सुनो तो स्वस्थ रहोगे. यानी, दिल्ली की जहरीली हवा ब्रह्मा द्वारा निर्मित फेफड़ों पर बेअसर रहेगी.

इस पर भक्त लोग खामोश रहे. उन्होंने इन तीनों में से किसी का मजाक नहीं उड़ाया क्योंकि ये राम दल के सैनिक हैं. लेकिन जाने क्यों मु?ो लग रहा है कि इन्हीं भक्तों ने पिछले साल तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सर्दीजुकामखांसी और मफलर तक का खूब मजाक उड़ाया था. केजरीवाल कोई दुर्वासा नहीं हैं, जो बातबात पर श्राप दें. लेकिन अब पूरी दिल्ली खांस और कराह रही है, तो लगता है एक बद्दुआ, जो उन्होंने दी ही नहीं, दिल्ली के लोगों को लग गई है. द्रौपदी ने दुर्योधन का मजाक उसे अंधे का बेटा कहते उड़ाया था, इस के बाद उस की जो दुर्दशा और महाभारत हुई, उसे सब जानते हैं.

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जमाना और दौर दुआओंबद्दुआओं का ही है, बाकी तो करने को किसी के पास कुछ बचा नहीं है. स्टोरी का मौरल यह है कि कभी किसी भले आदमी का मजाक महज इसलिए नहीं उड़ाना चाहिए कि वह पौराणिकवादी नहीं है. लेकिन, टोनेटोटके जरूर करते रहने चाहिए और इस के लिए अब कानून बनना चाहिए कि प्रदूषित शहरों के लोग कमाएंगेखाएंगे बाद में, पहले यज्ञहवन करेंगे और सुबह उठते ही गाजर खाते संगीत सुनेंगे और इस में भी सुंदर कांड को प्राथमिकता देंगे. वहीं, अगर दिल्ली के लोग वाकई प्रदूषण से छुटकारा बिना इन टोटकों के चाहते हैं तो उन्हें अरविंद केजरीवाल से माफी मांगनी चाहिए.

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यह बड़ा आध्यात्मिक टोटका है जिसे आजमा कर घंटों में दिल्ली प्रदूषण मुक्त हो सकती है. अगर इस व्यंग्य को आप 21 लोगों को फौरवर्ड करेंगे तो 2 दिनों में ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में धूप चमकने लगेगी और यदि फौरवर्ड नहीं करेंगे तो फिर से खांसने और छींकने को मजबूर हो जाएंगे.

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