अनिल अंबानी समूह एडीएजी और विवाद कभी दूर नहीं होते हैं. एडीएजी के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी इंडो-एशियन न्यूज सर्विस ने 13 मई को देश के चुनाव आयोग द्वारा लगाये, आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध रूप से एनडीए को मजबूती देता एक चुनाव सर्वेक्षण प्रकाशित किया, मगर उस पर कार्रवाई करना तो दूर चुनाव आयोग चुप्पी साध कर बैठा है. आखिर क्यों?

आम चुनाव 2019 के आखिरी चरण का चुनाव अभी बाकी है. वोटरों को गुमराह करने के लिए केन्द्रीय-सत्ता के समर्थक कैसे-कैसे दांवपेंच खेल रहे हैं कि देख कर आश्चर्य होता है. कहीं कोई लगाम नहीं, कहीं कोई कार्रवाई नहीं. ऐसा लग रहा है कि मोदी के पांच साल के शासनकाल में भ्रष्टाचार अपनी उस पराकाष्ठा पर पहुंच गया है, जिसने देश के सर्वोच्च संस्थानों में बैठे उन अधिकारियों तक का ईमान खरीद लिया है, जिनकी ईमानदारी और निष्पक्षता पर भरोसा करके ही देश की जनता अपने मत का प्रयोग लोकतंत्र को बचाये रखने के लिए करती है. जिस चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर देश का भविष्य टिका हुआ है, वह ऐसे कारनामों पर चुप्पी ओढ़ लें, यह आश्चर्यचकित करने वाला है. चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के प्रति अपना नरम और सहयोगात्मक रुख इख्तियार किया हुआ है, उससे उसकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है. चुनावी रैलियों और सभाओं में आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ा रहे मोदी एंड पार्टी को लगातार क्लीन चिट्ट देते जाना और विपक्षियों को लगातार घेरना चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाती है. ताजा मामला मोदी के खासमखास उद्योगपति अनिल अंबानी की स्वामित्व वाली कम्पनी के अन्तर्गत काम करने वाली समाचार एजेंसी आईएएनएस का सामने आया है, जिसने वोटरों को बरगलाने के लिए अवैध रूप से एक चुनाव सर्वेक्षण प्रकाशित किया, मगर चुनाव आयोग ने इस पर ध्यान देने या कोई कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठायी.

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