अपने घोषणा पत्र को वचन पत्र नाम देने वाली कांग्रेस ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने की बात क्या कही राज्य की सियासत में मानो भूचाल आ गया. इस भूचाल जिससे भगवा खेमा तिलमिलाया हुआ है से लोगों को लगा की मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं, नहीं तो चुनाव में वो लुत्फ नहीं आ रहा था जिसकी उम्मीद आम लोग करते हैं. आमतौर पर घोषणा पत्र बेहद उबाऊ होते हैं बिलकुल बैंक कर्ज के कागजों की तरह जिन्हें कोई पढ़ता ही नहीं बस मोटे तौर पर समझ लेता है कि जो राशि ली है उसके एवज में कितना और कैसे चुकाना है.
कांग्रेस ने अपने वचनपत्र में किसानों, युवाओं, महिलाओं, छात्रों, व्यापारियों और कर्मचारियों से क्या क्या लोक लुभावन वादे कर डाले इन्हें भी कोई नहीं पढ़ता लेकिन जैसे ही आरएसएस पर प्रतिबंध के उसके वचन पर बवाल मचा तो लोग वचनपत्र ढूंढ ढूंढ कर पढ़ने लगे. कांग्रेसी कूटनीतिकारों की यह पहली कामयाबी थी कि इस बहाने उन्होने लोगों को अपने वचनपत्र पर निगाह डालने मजबूर कर दिया .
इस वचनपत्र में पूरे आत्मविश्वास से कहा यह गया है कि कांग्रेस सरकारी इमारतों में आरएसएस की शाखाएं नहीं चलने देगी और शासकीय कर्मचारियों और अधिकारियों को शाखाओं में छूट सम्वन्धी आदेश रद्द करेगी.
बात छोटी सी ही है जिसे बड़ा बनाने का जिम्मा उठाते भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पलटवार करते हुये कहा, कांग्रेस ने संघ पर प्रतिबंध लगाने का वचन दिया है, अच्छा होता अगर कांग्रेस सिमी जैसे आतंकवादी संगठनों पर रोक लगाती. लेकिन वे वहां क्यों जाएंगे, आपकी राजनीति तुष्टिकरण और वोट बैंक की जो है. कांग्रेस को श्राप सा देते हुये विजयवर्गीय ने कहा, जनता कांग्रेस को कभी माफ नहीं करेगी.
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी अपना एतराज जताते हुये कहा, ऐसा लगता है कि कांग्रेस का इन दिनों एक ही एजेंडा है कि मंदिर नहीं बनने देंगे और शाखाएं नहीं चलने देंगे. राहुल और सोनिया गांधी नहीं चाहते कि अयोध्या में राम मंदिर बने. आरएसएस को राजनैतिक संगठन बताने पर राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए क्योंकि आरएसएस सामाजिक संगठन है.
इस वचनपत्र के अनूठे वचन यानि कांग्रेस के दुस्साहस पर देश भर से जो विभिन्न प्रतिक्रियाएं आईं उनमें से एक हरियाणा के मंत्री अनिल बिज की भी है कि कांग्रेस की मति भ्रष्ट हो गई है. अपने मेनिफेस्टो में देशभक्त आरएसएस के शाखा लगाने पर वह रोक की बात करती है और देशद्रोही नक्सलवादियों को क्रांतिकारी कहती है.
अव्वल तो आरएसएस की हकीकत बयां करने भाजपा नेताओं के ये बयान ही काफी हैं जिनमें जाने अंजाने में खुद उन्होने ही आरएसएस की तुलना नक्सलवादियों और सिमी यानि इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया से कर डाली है. मध्यप्रदेश की राजनीति के नजरिए से देखें तो इस वचन के अलग सियासी माने भी हैं. कांग्रेस ने राज्य में संघ के बढ़ते दबदबे और दखल को उधेड़ते न केवल मुस्लिम, ईसाई वोटों को हिफाजत की गारंटी दी है बल्कि निचले तबके के हिंदुओं को भी भरोसा दिलाया है कि कांग्रेस वर्ण व्यवस्था के खिलाफ थी और आज भी है.
लाख टके की बात यह भी है कि आखिर क्या वजह थी जो कांग्रेस ने जानबूझकर वचनपत्र में आरएसएस को निशाने पर लेते ऊंची जाति वाले हिंदुओं को नाराज करने का जोखिम उठाना घाटे का सौदा नहीं समझा. दरअसल में कांग्रेस अपने साफ्ट हिन्दुत्व के एजेंडे पर उतारू हो आई है जिसके तहत राहुल गांधी मंदिर जाते हैं, खुद को ब्राह्मण वह भी जनेऊधारी बताते हैं और खूब पूजा पाठ करते हैं. कांग्रेस खुद को पूरी तरह हिन्दू और हिन्दुत्व विरोधी भी नहीं दिखाना चाहती इसलिए वह गाय गौ मूत्र और गौ संरंक्षण का भी ढिंढोरा इस चुनाव में पीट रही है .
भाजपा के हार्ड हिन्दुत्व से लोग वाकई त्रस्त हो चले हैं जो अब फिर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का राग अलाप रही है. इस मसले पर खुद हिन्दू अब दो फाड़ होते जा रहे हैं. एक वर्ग की दलील है कि मंदिर शांति से और सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बने तो दूसरा वर्ग कह रहा है कि मंदिर निर्माण में अब किसी की नहीं सुननी चाहिए . जाहिर है भाजपा और आरएसएस अभी बारीकी से इन दोनों वर्गों की प्रतिक्रियाएं देख रहे हैं जिससे आगे की रणनीति बनाई जा सके लेकिन यह सभी जानते हैं कि मंदिर का जिन्न दोबारा आरएसएस ने ही बोतल से बाहर निकाला है और उसका मकसद पहले हालिया विधानसभाओं और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका असर देखना है.
दूसरे मध्यप्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में जिस तेजी से आरएसएस का दखल बढ़ा है उससे वे कर्मचारी अधिकारी परेशान हैं जिन्हें उससे कोई वास्ता नहीं. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की आरएसएस के प्रति निष्ठा कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही नतीजतन उनके तीसरे कार्यकाल में आरएसएस समर्थित सरकारी मुलाजिम खूब मौज कर रहे हैं उनकी पोस्टिंग और तबादले मनचाही जगह होते हैं जिसका खामियाजा उन कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है जिनकी कोई पहुंच या पकड़ नहीं है.
पर तीसरी बात ज्यादा अहम है कि सरकारी भवनों में आरएसएस की शाखाएं क्यों लगती हैं और इसका क्या प्रभाव पड़ता है. सरकारी कर्मचारियों को शाखाओं में जाने की छूट क्यों दी गई है. अघोषित तौर पर तो आरएसएस ही सरकार हांकता है लेकिन घोषित तौर पर अगर कांग्रेस ऐसा होने पर रोक लगाने की बात कर रही है तो तय है उसे इसमें अपना राजनैतिक फायदा कहीं न कहीं दिख रहा है जिसे वह छोड़ना नहीं चाहती.
जिस तरह राम मंदिर निर्माण का मुद्दा भगवा प्रयोगशाला में शोध और अनुसंधान का विषय बना हुआ है उसी तरह एक छोटा सा प्रयोग कांग्रेस भी कर रही है. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम को मध्यप्रदेश के कांग्रेसी वचनपत्र में कोई खोट नजर नहीं आती. उन्होने कहा, आरएसएस एक राजनैतिक संस्था है इसलिए उसकी सरकारी इमारतों में लगने वाली शाखाओं को बंद करना कोई गलत बात नहीं. बक़ौल चिदंबरम सरकारी कर्मचारी जब तक नौकरी कर रहे हैं तब तक उन्हें खुले तौर पर किसी भी राजनैतिक दल के साथ नहीं जाना चाहिए.
तूल पकड़ते इस विवाद में संबित पात्रा जैसे भाजपा नेताओं की इस आपत्ति के कोई माने नहीं हैं कि आरएसएस राजनैतिक दल नहीं हैं वजह वह मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में खुलकर हिस्सा ले रहा है. आए दिन के अखबारी समाचार इस बात की पुष्टि भी करते हैं. भोपाल के एक प्रमुख दैनिक ने उसके सूत्रों के हवाले से 9 नवम्बर के अंक में स्पष्ट लिखा है कि संघ ने चुनावी मैदान संभाल लिया है और आरएसएस के विभाग प्रचारक योगेश शर्मा का भाजपा कार्यकर्ताओं की मीटिंग को सम्बोधित करना इसी की एक कड़ी है.
इस खबर के मुताबिक योगेश शर्मा ने नोटा से लेकर एससी एसटी एक्ट के चलते सवर्ण व पिछड़े वर्ग में छा रही नाराजी को दूर करने के कई मंत्र उदाहरणों के साथ भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को दिये. दिलचस्प लेकिन चिंताजनक बात यह भी इस खबर में है कि इस बार प्रत्येक बूथ पर भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ स्वसंसेवक भी रहेंगे. मतदान के दिन भी ये स्वसंसेवक 15 – 15 घरों में जाकर एससी एसटी एक्ट के कारण भाजपा से नाराज लोगों को नोटा का बटन न दबाने के लिए मनाएंगे .
भाजपा की इस चिंता और दहशत को कांग्रेस ने प्रतिबंध की बात कर और बढ़ा दिया है और आरएसएस की गैर राजनतिक इमेज के चिथड़े भी उड़ा दिये हैं. वैसे भी आरएसएस हर जगह कट्टर हिन्दुत्व फैलाता रहता है यह अगर राष्ट्र भक्ति या राष्ट्र प्रेम है तो देश संविधान और लोकतन्त्र के लिए घातक होकर पंडा पुजारीवाद को बढ़ावा और शह देने वाला ही है जिस पर प्रतिबंध की बात कर कांग्रेस ने कोई गुनाह नहीं किया है बल्कि अपने हितों को साधा है और सरकारी महकमों में पसरती धार्मिक और जातिगत छूआछूत पर लगाम कसने के ही बात की है. इस बाबत वह कुछ फीसदी सवर्ण वोटों का नुकसान उठाने का जोखिम भी मोल ले रही है जो कितना कामयाब या कारगर साबित होगा यह तो 11 दिसंबर को वोटों की गिनती के दिन दिखेगा.